बनारस: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में छात्रों का विद्रोह थमने का नाम नहीं ले रहा है. अभी हाल ही में बीएचयू की शिक्षा संकाय की एक शोध छात्रा ने अपने विभागाध्यक्ष और डीन पर अटेंडेंस लगवाने के बहाने उनका यौन एवं मानसिक शोषण किए जाने का आरोप लगाया है, ये मामला अभी शांत ही नहीं हुआ था कि एक नया मामला छात्र के निष्कासन का सामने आया है.
क्या है पूरा मामला
बीएचयू के दर्शनशास्त्र विभाग में शोध छात्र अनुपम कुमार को कथित रूप से बिना कारण बताये ही बीएचयू प्रशासन ने निष्कासित करने का तुगलकी फरमान जारी किया है. शोध छात्र अनुपम कुमार का कहना है कि, ‘बीते 6 अगस्त को मैं विभाग पहुंचा और अपनी उपस्थिति बनानी चाही तो मुझे विभागाध्यक्ष के द्वारा यह सूचना मिली की मेरी पीएचडी पंजीकरण बीएचयू प्रशासन द्वारा कैंसिल कर दी गई है, पर कारण क्या था इसकी स्पष्ट सूचना मुझे नहीं दी गयी है. मौखिक रूप से प्रशासन से बताया कि मुझे 3-4 मई 2018 की घटना में छात्राओं के आन्दोलन में भाग लेने और उसका आधार बनाकर वर्तमान चीफ प्रॉक्टर रोयाना सिंह द्वारा किये गये एफ़आईआर के कारण निष्कासित किया जा रहा है. मालूम हो कि अनुपम कुमार पिछ्ले सात महीने से शोध में पंजीकृत हैं.
यह भी पढ़ें: थम नहीं रहा है बीएचयू में छात्राओं का शोषण, संकाय प्रमुख ‘हाज़िरी’ के बहाने करता था प्रताड़ित
बिहार के पटना से आकर बीएचयू में पढ़ाई करने वाले अनुपम कुमार बताते हैं कि जिस समय एफ़आईआर दर्ज किया गया था उसी समय ही लोकल थानाध्यक्ष संजीव मिश्रा के उक्त एफ़आईआर को फर्ज़ी तरीके से किया बताया था और सभी छात्र-छात्राओं को आरोपमुक्त करते हुए एफ़आईआर रद्द कर दी थी. वो कहते हैं कि इस पूरे घटनाक्रम को लगभग 1 साल से उपर हो गया हो गया है और इतने समय बाद मुझे इस तरह से निष्कासित किया जा रहा है जबकि इस घटना के समय दर्शनशास्त्र परास्नातक का छात्र था, मैंने अपनी परीक्षा दी और उतीर्ण हुआ.
उसके पश्चात् मैंने सोशल साइंस फैकल्टी के सोशल एक्सक्लूशन विभाग में प्रवेश लिया और एक सेमेस्टर क्लास भी किया और परीक्षा भी दी. लेकिन शोध में प्रवेश होने के बाद मैंने उक्त पाठ्यक्रम को छोड़ दिया और पिछले 7 महीने में नियमित रूप से विभाग में उपस्थित रहकर शोधरत हूं.
अपने निष्कासन के बारे में लिखित जानकारी मांगने के बारे में अनुपम कुमार बताते हैं कि, ‘8 अगस्त 2019 को मैं विभाग पहुंचा और पंजीकरण निरस्त क्यों किया गया उसकी जानकारी लिखित में मांगी तो मुझे एक नोटिफिकेशन उपलब्ध कराया गया. नोटिफिकेशन में विश्वविद्यालय में घटित हुई कई सारी घटनाओं का जिक्र है और उस से सम्बंधित छात्रों की लिस्ट बनी हुई जिनको डिबार/निलंबित/निष्कासित किया गया है और इन लिस्ट में जिनका भी नाम है उन सबको अकादमिक सत्र 2019-20 में एडमिशन नहीं देने की बात कही गयी है.’
कौन हैं अनुपम कुमार
आपको बता दें कि अनुपम कुमार का पीएचडी पंजीकरण का सत्र सितम्बर 2018 है और एडमिशन जनवरी 2019 में हुआ है जो अकादमिक सत्र 2018-19 में अंतर्गत आता है. इस कारण से जिस नोटिफिकेशन के अनुसार अनुपम कुमार के ऊपर कारवाई हुई है वो उनके अकादमिक सत्र पर लागू ही नहीं होता है.
अनुपम कुमार का कहना है कि, ‘जो नोटिफिकेशन मुझे दिया गया है उस नोटिफिकेशन में 2 मई 2018 को चीफ प्रॉक्टर ऑफिस में एक घटना का जिक्र है जिसमे 11 छात्र-छात्राओं के नाम की लिस्ट बनी हुई है जिसमे सभी को आगे की पढ़ाई से डिबार किया गया है. इस लिस्ट में मेरा (अनुपम कुमार) भी नाम है. इसी घटना का आधार बनाकर 1 साल 3 महीने बाद मेरा पंजीकरण रद्द किया है.
आपको मालूम हो कि नोटिफिकेशन में जिस घटना का जिक्र है उस घटना में उस समय की चीफ प्रॉक्टर रोयना सिंह ने 11 छात्र-छात्राओं के खिलाफ एफ़आईआर दर्ज करवाई थी, जिसमे धारा 307 (हत्या का प्रयास ) समेत कई और धारा भी लगाया गया था. हालांकि लंका थानाध्यक्ष ने उसी समय एक रिपोर्ट बनाकर 4 जून को उस एफ़आईआर को फर्ज़ी करार देकर रद्द कर दिया था. लेकिन फिर भी बीएचयू प्रशासन ने 11 छात्र- छात्राओं को निलंबित कर दिया.
अनुपम कुमार बताते हैं कि जिस समय बीएचयू प्रशासन ने 11 छात्र- छात्राओं को निलंबित किया था उस समय निलंबित किए जाने का कोई लेटर मुझे या मेरे विभाग को नहीं दिया गया था न ही मेरे घर भेजा गया था जिससे मुझे पता चलता की मैं निलंबित हूं. वो कहते हैं कि अगर उस समय ऐसी कोई चिट्ठी मुझे दी गई होती तो मैं उसी समय इसके खिलाफ अपील करता. अनुपम का कहना है कि आज इस तरह 7 महीने शोध कार्य में लगे होने के बीच में मेरे भविष्य पर हमला करना बहुत बड़ी साज़िश मालूम जान पड़ती है.
क्या कहना है विभागाध्यक्ष का
अनुपम कुमार के निष्कासन के बारे में दर्शनशास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष मुकुल राज मेहता का कहना है कि, ‘उस केस को लेकर बात चल रहा है, मीटिंग हुई है.’
‘मीटिंग में तो जैसे होता है ना कि आगे बढ़ता है धीरे-धीरे, दिशा तय होती है. बस उसी दिशा में चल रहा है.’
‘आगे सवाल पूछने पर मुकुल राज मेहता कहते हैं कि, ‘जो प्रक्रिया होती है उसी प्रक्रिया के तहत…सिंपैथी तो रहती ही सभी छात्रों से. विभागाध्यक्ष मुकुल राज मेहता ने ये भी कहा कि अनुपम को भी बताया है उनसे बात की गई है और वो संतुष्ट हैं.’
आपको बता दें कि अनुपम कुमार पढ़ाई के साथ-साथ भगत सिंह छात्र मोर्चा से जुड़े हुए हैं, जो एक छात्र संगठन है. इसके अलावा राजनीतिक और सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. अनुपम कुमार बताते हैं कि न्याय के खिलाफ जहां तक संभव हो पाया, आवाज उठाता रहा हूं. क्योंकि मैंने बीएचयू आकर ही सीखा है कि आप अगर अन्याय के खिलाफ खड़े नहीं होते हैं तो आप इंसान कहलाने के काबिल नहीं है.
(रिज़वाना तबस्सुम स्वतंत्र पत्रकार हैं)