नयी दिल्ली, 13 फरवरी (भाषा) कर्नाटक के कुछ शिक्षण संस्थानों में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने पर विरोध के बाद खड़ा हुआ विवाद इन दिनों सुर्खियों में है। शिक्षण संस्थानों में हिजाब पहनने का विरोध और समर्थन करने वालों के अपने-अपने तर्क हैं। इस विषय पर अधिवक्ता और महिला अधिकार कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर से ‘भाषा’ के पांच सवाल और उनके जवाब:
सवाल: कर्नाटक के कुछ शिक्षण संस्थानों में हिजाब को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ है, क्या उसका कानूनी या संवैधानिक आधार है?
जवाब: पूरे देश में कुछ मुस्लिम महिलाएं बुर्का या हिजाब पहनती रही हैं, लेकिन यह हमारी आंख को कभी नहीं खटका। यह आम बात है। इसको लेकर कभी विवाद नहीं रहा। अगर लड़कियां हिजाब पहनकर पढ़ाई कर रही हैं तो इससे किसी को आपत्ति क्या है। हमारा संविधान धर्म के पालन की आजादी देता है। अगर हम उच्चतम न्यायालय के पिछले कुछ वर्षों के फैसलों को देखें तो उनमें निजी स्वतंत्रता पर विशेष बल दिया गया। पुट्टूस्वामी मामले के फैसले में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया। निजता के अधिकार के अलग-अलग पहलू हैं, इस पर बहुत चर्चा हुई। अनुच्छेद 19 में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है। लड़कियां कॉलेज जा रही हैं, उनको शिक्षा का अधिकार है। ऐसे में हिजाब पर रोक संविधान में निहित कई स्वतंत्रताओं एवं अधिकारों का उल्लंघन है।
सवाल: विरोध करने वालों का तर्क है कि शिक्षण संस्थानों में ड्रेस कोड एक जैसा होना चाहिए और इसमें धार्मिक प्रतीकों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। इस पर आपकी क्या राय है?
जवाब: धार्मिक प्रतीक तो हमेशा से विशेष रूप से सरकारी स्कूल और कॉलेज में दिखते रहे हैं। मुझे नहीं पता कि किसी सिख छात्र को पगड़ी और कड़ा पहनने से रोका गया हो और रोका भी नहीं जाना चाहिए क्योंकि ये धारण करना उनका अधिकार है। कई लोग तिलक लगाते हैं और फिर स्कूल या कॉलेज जाते हैं। इससे कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए। ऐसा नहीं है कि इस देश में धार्मिक प्रतीकों को सम्मान नहीं दिया जाता है। यह बोलना गलत है कि यूनिफॉर्म से जुड़ा नियम धार्मिक प्रतीकों का सम्मान नहीं करता है। यही तो बहुलवादी समाज होता है जहां सबका सम्मान हो। सच यह है कि आज की तारीख में अल्पसंख्यक समुदायों पर आघात किया जा रहा है। पहले हमने ‘सुल्ली डील्स’ और ‘बुल्ली बाई’ के मामले देखे और अब यह देख रहे हैं। ऐसा क्यों किया जा रहा है कि मुस्लिम लड़की को हिजाब या पढ़ाई में से एक चुनना पड़े? वह दोनों चुन सकती है।
सवाल: बहुत से लोगों का कहना है कि हिजाब का विरोध संविधान में दिए गए धर्म के मौलिक अधिकार के खिलाफ है, आपका क्या मानना है?
जवाब: बिलकुल। यह आस्था से जुड़े संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन है। संविधान सभी को अपनी आस्था का पालन करने की पूरी स्वतंत्रता देता है।
सवाल: मामला कर्नाटक उच्च न्यायालय के विचाराधीन है। आपके मुताबिक अदालत इस मामले में किसी फैसले तक पहुंचने के लिए किन प्रमुख बिंदुओं पर गौर कर सकती है?
जवाब: यह तो अदालत का अपना विशेषाधिकार है। लेकिन मुझे लगता है कि अदालत को सारे आधार देखने चाहिए। संविधान में निहित सभी तरह की स्वतंत्रताएं देखनी चाहिए। किसी भी महिला के पास चयन की स्वतंत्रता है। मुझे लगता है कि उच्च न्यायालय पहले के कई फैसलों पर भी गौर करेगा। यह भी देखना होगा कि क्या किसी धार्मिक प्रतीक से स्कूल या कक्षा में पढ़ाई पर असर पड़ता है? यह भी देखना होगा कि किसी संस्थान ने जो नियम बनाए हैं वे संवैधानिक अधिकारों के हिसाब से तर्कसंगत हैं या नहीं। इस मामले को व्यापक नजरिये से देखने की जरूरत है। इस मामले में जो भी फैसला हो, लेकिन यह मामला आखिर में उच्चतम न्यायालय जरूर पहुंचेगा। आखिरी बात उच्चतम न्यायालय ही तय करेगा।
सवाल: क्या इस विवाद का सिर्फ अदालती समाधान ही संभव है या फिर बीच का कोई रास्ता निकल सकता है?
जवाब: यह हो सकता है कि अदालत बोले कि स्कूल में हिजाब नहीं पहनें। ऐसे में कुछ लड़कियां शिक्षा से कुछ समय के लिए दूर हो सकती हैं। लेकिन मुझे नहीं लगता कि अदालत हिजाब को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर सकती है। मेरा यह मानना है कि इस विषय पर समाज में बीच का रास्ता पहले से तय था। हिजाब या किसी अन्य धार्मिक प्रतीक के साथ भी पढ़ाई हो सकती है। इस विवाद को तूल देने की जरूरत नहीं थी।
भाषा हक नेत्रपाल
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