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Monday, 4 November, 2024
होमदेशचेन्नई में बैम्बू स्टिक से ओलंपिक में तलवारबाजी तक- भारत में एक नई स्पोर्ट्स स्टार भवानी देवी का उदय

चेन्नई में बैम्बू स्टिक से ओलंपिक में तलवारबाजी तक- भारत में एक नई स्पोर्ट्स स्टार भवानी देवी का उदय

अपनी बेटी की उपलब्धियों को लेकर उत्साह और गर्व से फूली नहीं समा रही रमणी ने कहा, ‘उसके साथ के कुछ सीनियर खिलाड़ी उसे सिखाते रहे होंगे और कोई कोच नहीं था लेकिन फिर भी वह बेहद दृढ़प्रतिज्ञ और अनुशासित थी.’

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चेन्नई: ओलंपिक में भारत के लिए नई उम्मीदें जगाने वाली सी.ए. भवानी देवी के चेन्नई के ओल्ड वाशरमैनपेट क्षेत्र स्थित घर का पता लगाना कोई आसान काम नहीं था. यह जगह महारानी थिएटर के नजदीक बताई गई लेकिन इस लैंडमार्क के पास उनका घर ढूंढना मुश्किल है. सही दिशा बताने के लिए राहगीर सड़क का नाम या फिर घर का नंबर पूछते हैं लेकिन यह सारी पूछताछ तब तक निरर्थक ही रहती है जब तक कोई उनसे यह नहीं पूछता कि भवानी देवी कहां रहती हैं.

स्थानीय नारियल विक्रेता आर. मुकैया ने फिर से इस रिपोर्टर के पास आकर थोड़े गर्व भरे उलाहने के साथ कहा, ‘आपको यह बात पहले बतानी चाहिए थी. उनका घर तो सबको पता है. उन्होंने हाल ही में ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया है.’

27 वर्षीय भवानी ने गत रविवार को, सैबर फेंसिंग वर्ल्ड कप क्वार्टर फाइनल में हंगरी के दक्षिण कोरिया से हारने के बाद आधिकारिक रैंकिंग में एशिया/ओशिनिया जोन के तहत अपनी जगह सुरक्षित कर ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय तलवारबाज बनकर इतिहास रच दिया.

हालांकि, यह सफलता उन्हें तलवारबाजी के खेल में अपनी पहली बड़ी उपलब्धि के काफी समय बाद मिली है. 2017 में वह आइसलैंड में महिला विश्व कप सेटेलाइट टूर्नामेंट में तलवारबाजी में अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण पदक जीतने वाली भारत की पहली खिलाड़ी बनी थीं.


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भवानी ने तलवारबाजी कैसे शुरू की

तलवारबाजी की प्रतियोगिता की शुरुआत 1896 में एथेंस में मॉडर्न ओलंपिक के उद्घाटन के साथ ही हुई थी लेकिन महिलाओं के लिए यह प्रतियोगिता 1924 में शुरू हुई. तलवारबाजी में तीन अलग-अलग तरह की ब्लेड इस्तेमाल होती हैं— फॉइल, एपे और सैबर. भवानी ने सैबर श्रेणी में हिस्सा लिया जिसे क्विक मूवमेंट के लिए जाना जाता है.

भवानी का इस खेल के मैदान में उतरना एक संयोग ही था. उसकी मां सी.ए. रमणी ने बताया कि जब भवानी 11 साल की थीं, तब तत्कालीन मुख्यमंत्री जे. जयललिता ने ‘स्पोर्ट्स इन स्कूल्स’ कार्यक्रम की शुरुआत की थी जिसके तहत तैराकी, स्क्वैश, तलवारबाजी और मुक्केबाजी आदि सिखाई जाती थी. इनमें से भवानी ने स्क्वैश और तलवारबाजी को चुना लेकिन जब दोनों ही खेलों की प्रतियोगिताएं एक ही दिन पड़ी तो उसे इनमें से एक चुनना था.

A photograph of Bhavani as a toddler (in purple) at her family home in Old Washermanpet, Chennai | Photo: Revathi Krishnan | ThePrint
भवानी की बचपन की तस्वीर | फोटो: रेवथी कृष्णन | दिप्रिंट

रमणी ने कहा, ‘तब मैंने उसे सुझाव दिया कि वह तलवारबाजी को चुनो क्योंकि वह एक नया खेल है और इसे स्क्वैश के विपरीत, जो रैकेट से खेला जाने वाला खेल है, अलग तरह के इक्विपमेंट और गियर के साथ खेला जाता है.’

पांच भाई-बहनों में सबसे छोटी भवानी ने इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. उसने अपना पहला स्वर्ण पदक 2004 में मात्र 11 साल की उम्र में सब-जूनियर नेशनल चैंपियनशिप में जीता था. बाद में प्रशिक्षण हासिल करने के लिए बेंगलुरू चली गई भवानी ने तब तक चेन्नई के नेहरू स्टेडियम में सही मायने में किसी कोचिंग के बिना ही अभ्यास किया था.

अपनी बेटी की उपलब्धियों को लेकर उत्साह और गर्व से फूली नहीं समा रही रमणी ने कहा, ‘उसके साथ के कुछ सीनियर खिलाड़ी उसे सिखाते रहे होंगे और कोई कोच नहीं था लेकिन फिर भी वह बेहद दृढ़प्रतिज्ञ और अनुशासित थी.’


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संघर्ष करके ये मुकाम बनाया

प्रतियोगिता के दौरान लगने वाली चोटों के निशान उनकी मां की चिंता बढ़ा देते हैं लेकिन वह कहती हैं कि भवानी के लिए तो ये सब ‘छोटी-मोटी बातें’ हैं. भवानी के खुद के ट्विटर बायो में लिखा है, ‘जितनी कठिन जंग, उतनी सुखद जीत.’

और यह संघर्ष निश्चित तौर पर कठिन रहा है. उन्हें बेहतर प्रशिक्षण मिल सके इसके लिए परिवार ने काफी वित्तीय संकट का भी सामना किया. पहले तो वह बैंबू स्टिक के साथ ही अभ्यास करती थी, लेकिन बाद में प्रशिक्षण के लिए उचित गियर मिल गया. रमणी ने बताया, ‘तलवारबाजी में इस्तेमाल उपकरण की कीमत 6,000 रुपये है और यह बेहद नाजुक होता है और आसानी से टूट जाता है.’

भवानी के पिता आनंद सुंदरम पास के मंदिर में पुजारी थे और उनकी मां गृहिणी. उनके दादा के अलावा उनके एक बड़े भाई और बहन वकील हैं.

हालांकि, शुरू में परिवार उसके प्रशिक्षण पर आने वाला खर्च वहन करने में सक्षम था और जब वह ज्यादा से ज्यादा प्रतिस्पर्धाओं में हिस्सा लेने लगीं तो उन्हें इसमें थोड़ी मुश्किल आने लगी. यह भी बताया जाता है कि रमणी ने भवानी का प्रशिक्षण जारी रखने के लिए अपने गहने तक गिरवी रख दिए थे. जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘मैं इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहती.’

भवानी के पिता ने उनके प्रशिक्षण पर आने वाले खर्च की कभी परवाह नहीं की. रमणी ने बताया, ‘वह कहते थे कि इस पर खर्च किया गया धन कभी बेकार नहीं जाएगा. उन्हें हमेशा ही अपनी बेटी पर बहुत भरोसा रहा.’

भवानी के प्रति यह भरोसा उनके गृह राज्य तमिलनाडु के दोनों प्रमुख राजनेताओं में भी दिखा था— 2007 में जहां तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि ने उन्हें सरकारी सहायता के तौर पर 1 लाख रुपये दिए, वहीं अगले साल ही जयललिता ने उन्हें अपनी तरफ से 1 लाख रुपये दिए.

रमणी ने बताया, ‘मुझे अब भी याद है कि जयललिता ने 2011 में वेनेजुएला में एक टूर्नामेंट जीतने के बाद भवानी से कहा था कि उन्हें उस पर गर्व है.’

2016 और 2020 के बीच उसे तमिलनाडु सरकार की तरफ से सालाना 25 लाख रुपये दिए गए.

Ramani with her daughter's trophy cabinet | Photo: Revathi Krishnan | ThePrint
अपनी बेटी की ट्रॉफी को दिखाती रमणी | फोटो: रेवथी कृष्णन | दिप्रिंट

भवानी 2015 में गोस्पोर्ट्स फाउंडेशन का हिस्सा बनीं और मौजूदा समय में एक एथलीट मेंटरशिप प्रोग्राम के तहत ट्रेनिंग लेती हैं जिसका नाम भारत के दिग्गज क्रिकेटर राहुल द्रविड़ के नाम पर रखा गया है. अपना नाम जाहिर न करने के इच्छुक गोस्पोर्ट्स के एक एथलीट मैनेजर ने कहा, ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि क्या हो रहा है, भवानी हमेशा से फोकस्ड रही हैं. वह हर तरह का दबाव झेल सकती हैं.’

भवानी अपने परिवार से खेल के क्षेत्र में आई पहली सदस्य हैं, लेकिन उसकी मां ने यह बताने में जरा भी देर नहीं लगाई कि इसकी वजह से उनकी बेटी की पढ़ाई कभी प्रभावित नहीं हुई— उसने अन्ना यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई पूरी की है.

उनके स्कूल मुरुगा धनुषकोडि गर्ल्स हायर सेकेंडरी स्कूल में खेल सचिव पी. पोन्नी ने बताया कि भवानी हमेशा से ही एक शानदार छात्र और खिलाड़ी रही है. उन्होंने कहा, ‘वह अनुशासन और कड़ी मेहनत की मिसाल है.’

मां के साथ बॉन्डिंग

2019 में पिताजी आनंदा का निधन हो गया, जब भवानी इटली में प्रशिक्षण ले रही थीं. उनकी मां ने बताया, ‘हमने अंतिम संस्कार के लिए उसके वापस आने का इंतजार किया. मुझे आज भी याद है कि उसका चेहरा कैसा सफेद पड़ गया था और वह कांप रही थी.’

आनंदा के निधन के बाद भवानी और उसकी मां एक-दूसरे के और भी करीब आ गईं. उन्होंने कहा, ‘हम दिन में कम से कम 10 बार बात करते हैं. और उन्हें अपनी बात साबित करने की जरूरत ही नहीं पड़ी क्योंकि तब तक उनका हालचाल जानने के लिए भवानी का फोन आ चुका था. कोविड-19 लॉकडाउन, यद्यपि एक मुश्किल दौर था लेकिन मां और बेटी के लिए यह काफी खास रहा क्योंकि उन्हें पहले की तरह प्रशिक्षण के बीच एक या दो दिन के बजाये मार्च से अक्टूबर तक करीब आठ महीने साथ समय बिताने का मौका मिला.

रमणी ने कहा, ‘मुझे उसको देखे हुए पांच महीने से अधिक समय हो गया है. मैं अब 19 तारीख को उनसे मिलने के लिए उत्तराखंड रवाना होऊंगी.’

‘यह तो सिर्फ शुरुआत है’

गोस्पोर्ट्स में एथलीट के प्रबंधक के अनुसार, अब भवानी के लिए अपने खेल पर ज्यादा और ज्यादा फोकस करने और प्रशिक्षण में कोई सुस्ती न दिखाने का समय आ गया है. उन्होंने कहा, ‘अंतिम लक्ष्य ओलंपिक है, इसलिए हमें इसके लिए खुद को तैयार करने की जरूरत है और अपनी नजरें सिर्फ लक्ष्य पर टिकाए रखनी होंगी.’

वयोवृद्ध खेल पत्रकार वदुगनाथन सेल्वराज का कहना है कि भवानी की उपलब्धियां तमिलनाडु में महिला खिलाड़ियों को प्रेरित करती रहेंगी. उन्होंने भविष्यवाणी की, ‘यह तो सिर्फ शुरुआत है.’

(श्रेयस शर्मा द्वारा संपादित)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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