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Saturday, 21 December, 2024
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बदहाल अस्पताल, बेदम सप्लायर, बिना तालमेल वाली सरकार—ये है गोवा में ऑक्सीजन संकट के पीछे की कहानी

1-12 मई के बीच, राज्य की प्रमुख सुविधा गोवा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में 417 कोविड रोगियों की मृत्यु हो गई – जिनमें से अधिकांश ऑक्सीजन की कमी के कारण थी.

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मुंबई: इस माह के शुरुआती 12 दिनों में गोवा के प्रमुख सरकारी अस्पताल गोवा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (जीएमसीएच) में 417 कोविड-19 रोगियों की मौत हो गई, जिनमें से कई मौतें ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई हैं. ज्यादातर मौतें देर रात 1 बजे के बाद हुईं.

गोवा एसोसिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स ने 1 मई को ही जीएमसीएच के डीन को पत्र लिखकर अस्पताल में कोविड-19 वार्डों में ऑक्सीजन की आपूर्ति पर जानकारी दी थी.

पत्र में बताया गया था, ‘मरीजों के लिए इस्तेमाल हो रहे ऑक्सीजन सिलेंडर आधी रात में खत्म हो जाते हैं और फिर उन्हें बदलने में 2-3 घंटे लगते हैं. बिना ऑक्सीजन के मरीजों में सैचुरेशन लेवल 60 फीसदी तक गिर जाता है.’

अकेले इस हफ्ते में सोमवार से गुरुवार के बीच लगभग 62 मौतें हुई हैं, जो कि ऑक्सीजन की आपूर्ति में समस्या के कारण होने की आशंका जताई जा रही है. गुरुवार और शुक्रवार की मध्य रात्रि को अस्पताल में ऑक्सीजन की आपूर्ति ऊपर-नीचे होने के कारण 13 और कोविड-19 मरीजों की मौत की खबर आई. हालांकि, राज्य सरकार की तरफ से इस आंकड़े की पुष्टि किया जाना अभी बाकी है.

दिप्रिंट ने जिन वकीलों, एक्टिविस्ट और डॉक्टरों से बात की, उन्होंने कहा कि ऐसी और भी घटनाएं हुई हैं.

साउथ गोवा एडवोकेट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एंटोनियो क्लोविस डा कोस्टा ने दिप्रिंट से कहा, ‘हमने कई सहयोगी गंवा दिए, यही नहीं कई सहयोगियों ने अपने परिजनों और नजदीकी रिश्तेदारों को खो दिया है. यह सब सरकार के कुप्रबंधन और ऑक्सीजन की कमी के कारण हुआ है. हम सभी मौतों के बारे में जांच कराने को कहेंगे. किसी को तो जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए.’

यह एसोसिएशन कोविड महामारी के बीच स्वास्थ्य ढांचे में कथित कुप्रबंधन को लेकर राज्य सरकार के खिलाफ दायर केस में एक याचिकाकर्ता है जिस पर बांबे हाई कोर्ट की गोवा पीछ सुनवाई कर रही है.

यह बात राजधानी पणजी में जीएमसीएच की स्थिति से ज्यादा अच्छी तरह साफ हो जाती है.

चौंकाने वाले इन आंकड़ों के पीछे अस्पताल में क्षमता से ज्यादा मरीज होने की त्रासदी भी छिपी है, जहां बुनियादी लॉजिस्टिक जरूरतें, जैसे ऑक्सीजन ट्रॉलियों की आपूर्ति, पूरी करने के लिए ड्राइवरों की कमी है; गोवा में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की सरकार के विभिन्न गुट अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं; और बेहाल ऑक्सीजन निर्माता बढ़ी मांग पूरी करने की चुनौती से जूझ रहे हैं.


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मुख्यमंत्री बोले-कोई कमी नहीं, स्वास्थ्य मंत्री बोले—सीएम को ‘गलत जानकारी’ मिली

जीएमसीएच की क्षमता 708 है, लेकिन अभी इसमें 953 मरीज भर्ती हैं. 708 बेड में से 160 आईसीयू यूनिट में हैं. हालांकि, जिन मरीजों के लए बेड उपलब्ध नहीं हैं, उन्हें ट्रॉली और फर्श पर लिटाया गया है, और उन्हें छोटे सिलेंडरों के माध्यम से ऑक्सीजन दी जाती है.

हालांकि, राज्य सरकार में विभिन्न स्तरों पर कोई तालमेल न होने से भी ऑक्सीजन की आपूर्ति में बाधा आ रही है—किसी भी गड़बड़ी के मामले में अस्पताल के डीन डॉ. एस.एम. बांदेकर, राज्य के स्वास्थ्य विभाग और मुख्यमंत्री कार्यालय की प्रतिक्रिया भिन्न होती है.

मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने कहा है कि ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है, और ये संकट अस्पताल में ऑक्सीजन पहुंचने में ‘कुप्रबंधन’ के कारण है. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे, जिनकी महामारी प्रबंधन को लेकर मुख्यमंत्री के साथ तनातनी चलती रही है, ने कहा सावंत को ‘गलत सूचना’ मिली है.

राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने बांबे हाई कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा है कि सरकार गोवा में ऑक्सीजन की जरूरतों को पूरा कर रही है, लेकिन डॉ. बांदेकर के हलफनामे, जिसकी एक प्रति दिप्रिंट के पास मौजूद है, में और भी भयावह तस्वीर पेश की गई है. इसमें कहा गया है कि 11 मई तक 6.5 मीट्रिक टन (एमटी) ऑक्सीजन की कमी थी, जबकि अस्पताल में भर्ती 953 रोगियों में से 330 ऑक्सीजन पर थे.

डॉ. बांदेकर ने गुरुवार को बांबे हाईकोर्ट को बताया कि मरीजों का सही तरह से इलाज करना है तो अस्पताल को निश्चित तौर पर कम से कम 72 ट्रॉली ऑक्सीजन की जरूरत होगी. फिलहाल ट्रॉलियों की सप्लाई 50 के आसपास है.

दिप्रिंट ने फोन कॉल के जरिये राज्य के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे, डॉ. बांदेकर और स्वास्थ्य सचिव रवि धवन से संपर्क साधा, लेकिन रिपोर्ट प्रकाशित होने तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.

मध्यरात्रि में जीएमसीएच का हाल

गोवा में हर रात सोशल मीडिया और वालंटियर्स के व्हाट्सएप ग्रुप जीएमसीएच में भर्ती मरीजों के परिजनों की गुहार से भर जाते हैं जो ऑक्सीजन लेवल घटने को लेकर हताशा भरे संदेश भेजते रहते हैं.

अस्पताल में ऑक्सीजन की आपूर्ति मैन्युफैक्चरर स्कूप इंडस्ट्रीज के करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित कोरलिम में लगे उत्पादन संयंत्र से ट्रैक्टर पर लाई जाने वाली ऑक्सीजन ट्रॉलियों पर निर्भर करती है. इन्हें यहां लाकर अस्पताल के मैनिफोल्ड पर लोड किया जाता है.

इस प्रक्रिया में शामिल कई सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि ऑक्सीजन सिलेंडर लोड करने की प्रक्रिया के दौरान आमतौर पर लगभग 15 मिनट की अवधि के लिए आपूर्ति में उतार-चढ़ाव की समस्या आती है.

बांबे हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वालों में शामिल वकील अमित पालेकर, जो महामारी के बीच मददगार बने कई स्वयंसेवी समूहों के सदस्य भी हैं, ने कहा, ‘एक ट्रॉली से दूसरी ट्रॉली में भरे जाने के दौरान ऑक्सीजन की आपूर्ति में उतार-चढ़ाव आता है. डॉक्टरों को इसकी जानकारी नहीं होती और इसलिए वे इसके लिए तैयार नहीं होते हैं। रात में, मरीजों का ऑक्सीजन सैचुरेशन लेवल वैसे भी कम होता है, इसलिए थोड़ी देर के लिए भी आपूर्ति में जरा सी कमी गंभीर मरीजों का सांस लेना दूभर कर देती है. इसे लेकर घबराहट और बेचैनी है.’

मैनिफोल्ड में ट्रॉलियों की लोडिंग और अनलोडिंग कई बार दिन में भी होती है, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि मरीज को इससे दिन में उतना नुकसान नहीं होगा, जितना रात में होता है.

दक्षिण गोवा के एक वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘आम तौर पर अगर किसी मरीज को दिन में एक लीटर ऑक्सीजन की जरूरत होती है तो रात में डॉक्टरों को उसे 1.5 लीटर ऑक्सीजन देनी होगी.’

उन्होंने बताया, ‘जब आप जाग रहे होते हैं और ऑक्सीजन का स्तर घटता है, तो इस पर शरीर तुरंत प्रतिक्रिया करता है और आप तेजी से सांसे लेने लगते हैं. लेकिन सोते समय ऑक्सीजन की जरूरत बढ़ जाती है, और यदि कोई उतार-चढ़ाव होता है तो शरीर के केमोरिसेप्टर, मस्तिष्क सहित, उतनी जल्दी प्रतिक्रिया नहीं करते.’

इस समस्या को ऑक्सीजन ट्रॉलियों की आपूर्ति में लॉजिस्टिक संबंधी दिक्कतों ने और भी बढ़ा दिया है.

डॉ. बांदेकर ने 12 मई को बांबे हाईकोर्ट को दिए हलफनामे में लिखा है, ‘…कई बार इन ट्रॉलियों और लूज सिलेंडरों की आपूर्ति के दौरान समस्या आई, जिससे ऑक्सीजन की आपूर्ति में गिरावट आ गई, यही जानलेवा साबित हुई.

राज्य सरकार ने ट्रैक्टर चालकों की कमी को ऑक्सीजन की निर्बाध आपूर्ति में बड़ी बाधा बताया है.

बुधवार देर रात 15 मरीजों की मौत के बाद गुरुवार को राज्य सरकार ने बांबे हाईकोर्ट को बताया कि ट्रॉलियों को अस्पताल लाने वाले ट्रैक्टरों की आवाजाही में कुछ समस्या आई थी.

गुरुवार को जारी अपने आदेश में अदालत ने कहा, ‘… हमें बताया गया कि ऑक्सीजन ट्रॉलियों को पहुंचाने वाले ट्रैक्टर की आवाजाही और सिलेंडरों को मैनिफोल्ड में जोड़ने के दौरान आने वाली कुछ लॉजिस्टिक समस्याएं हैं. हमें यह भी समझाया गया कि कैसे इस प्रक्रिया के दौरान आई कुछ बाधाओं की वजह से मरीजों तक आने वाली ऑक्सीजन की सप्लाई लाइन में प्रेशर घट गया था.


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ऑक्सीजन का ट्रांसपोर्ट सरकार की जिम्मेदारी: मैन्युफैक्चर

स्कूप इंडस्ट्रीज की ओर से पेश हुए वकील विवेक रोड्रिग्स ने दिप्रिंट को बताया कि कंपनी की जिम्मेदारी उत्पादन के साथ पूरी हो जाती है, अस्पताल में ऑक्सीजन पहुंचाने की जिम्मेदारी पूरी तरह से राज्य सरकार की होती है.

उन्होंने डॉ. बांदेकर की तरफ से उत्तरी गोवा कलेक्टर को 20 अप्रैल को लिखे गए एक पत्र का हवाला दिया, जिसमें कहा गया है कि अस्पताल स्कूप इंडस्ट्रीज के कोरलिम संयंत्र में ऑक्सीजन ट्रॉलियों की निगरानी के लिए अधिकारियों की तैनाती कर रहा है, ताकि ऑक्सीजन की आपूर्ति में कोई देरी न हो, क्योंकि इसकी कमी यह मरीजों की जान के लिए खतरा है. इस पत्र की एक प्रति दिप्रिंट के पास है.

रोड्रिग्स ने कहा, ‘हमारा काम उत्पादन के साथ ही पूरा हो जाता है. स्कूप इंडस्ट्रीज परिसर से जीएमसीएच तक ऑक्सीजन टैंकों के पीछे पुलिस की दो कारें चलती हैं ताकि वे बिना किसी बाधा अस्पताल तक पहुंच सकें. पूरी आपूर्ति को सरकार ने अपने नियंत्रण में ले रखा है. ड्राइवर और लॉजिस्टिक संबंधी सभी मुद्दों की जिम्मेदारी सरकार की है.’

साथ ही जोड़ा अपने अनुबंध के मुताबिक, कंपनी को सिर्फ चार ऑक्सीजन ट्रॉलियों की आपूर्ति करनी थी लेकिन वह अभी 57 की आपूर्ति कर रही है. उन्होंने बताया, ‘कंपनी अतिरिक्त ट्रॉलियों की लागत वहन कर रही है. हमारे पास भी केंद्र से 10-11 मीट्रिक टन का कोटा आता है, हम इसके लिए भुगतान करते हैं, और इसे 30 मीट्रिक टन, जिसका हम उत्पादन करते है, के साथ मिलाकर सभी अस्पतालों में वितरित करते हैं.’

रोड्रिग्स ने आगे दावा किया कि निजी अस्पताल भुगतान में आगे रहते हैं लेकिन राज्य सरकार पर पिछले दो महीनों के दौरान का 3.75 करोड़ रुपया बकाया है.


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राज्य हरसंभव उपाय करने में जुटा

बांबे हाईकोर्ट की गोवा पीठ, विपक्षी दलों, एक्टिविस्ट और स्वयंसेवी समूहों की तरफी से कड़ी आलोचना किए जाने के बाद अब गोवा की भाजपा सरकार जीएमसीएच में छाए संकट को दूर करने के हरसंभव उपाय करने में लगी है.

राज्य सरकार की तरफ से 5 मई को जीएमसीएच के नए सुपर स्पेशियलिटी ब्लॉक को चालू किए जाने के बाद बेड की समस्या थोड़ी कम हुई है, शुरुआत में 150 ऑक्सीजन बेड की व्यवस्था की गई जिसे अंतत 500 से ज्यादा किया जाना है.

केंद्र ने भी गुरुवार को गोवा में ऑक्सीजन की आपूर्ति 20 मीट्रिक टन बढ़ाकर 46 मीट्रिक टन करने का फैसला किया. इससे पहले, सरकार ने गोवा के लिए ऑक्सीजन आवंटन को पिछले सप्ताह लगभग 11 मीट्रिक टन से बढ़ाकर 26 मीट्रिक टन कर दिया गया था.

राज्य सरकार ने जीएमसीएच में ऑक्सीजन आपूर्ति से जुड़े मुद्दों की जांच के लिए आईआईटी गोवा के निदेशक बी.के. मिश्रा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमेटी बना दी है. इसने ट्रॉली सिस्टम पर निर्भरता घटाने के लिए अस्पताल में 20,000 लीटर की क्षमता वाले एक मेडिकल ऑक्सीजन टैंक का निर्माण भी शुरू कराया है.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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