चंडीगढ़, 12 सितंबर (भाषा) हरियाणा के जींद जिले में साल 2012 में एलपीजी सिलेंडर से गैस रिसाव के कारण घर में आग लगने की घटना के दौरान 11 लोगों को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले व्यक्ति के पिता अपने बेटे की बहादुरी के लिए उचित सम्मान पाने की लगातार कोशिश कर रहे हैं।
दिवंगत सौरभ गर्ग के पिता चंद्रभान ने हरियाणा मानवाधिकार आयोग (एचएचआरसी) में शिकायत दर्ज कराई है, जिसके बाद आयोग ने संबंधित अधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं।
आयोग की पीठ ने भान की ओर से आयोग के समक्ष 2023 में दायर की गई शिकायत के आधार पर ये निर्देश दिए।
इस पीठ में एचएचआरसी अध्यक्ष न्यायमूर्ति ललित बत्रा, सदस्य (न्यायिक) कुलदीप जैन और सदस्य दीप भाटिया शामिल हैं।
दिसंबर की सर्द सुबह में पड़ोसी घर में आग लगने के बाद सौरभ वहां फंसे लोगों को बचाने के लिए घटनास्थल पर पहुंच गए। वह सीढ़ी लेकर आए और महिलाओं एवं बच्चों समेत सभी 11 लोगों को बाहर निकालने में कामयाब रहे। सभी लोगों के सुरक्षित निकलने के बाद घर में जबरदस्त विस्फोट हुआ, जिसमें सौरभ की जान चली गई।
एचएचआरसी ने अपने हालिया आदेश में कहा, ”सबसे पहले, यह आयोग इस बात की सराहना करता है कि ऐसी वीरता, जिसमें एक युवा नागरिक स्वेच्छा से दूसरों की सुरक्षा के लिए अपने जीवन को जोखिम में डालता है और अंततः प्राणों की कुर्बानी दे देता है, मानवता के सर्वोच्च आदर्शों का प्रतीक है और राष्ट्र द्वारा सम्मान का पात्र है। स्वर्गीय सौरभ गर्ग का बलिदान न केवल उनके परिवार के लिए व्यक्तिगत शोक का विषय है, बल्कि पूरे समाज एवं राज्य के लिए गौरव की बात है।”
भान 10 वर्षों से अपने बेटे के बलिदान को आधिकारिक मान्यता दिलाने के लिए प्रयासरत थे।
आयोग के आदेश में कहा गया है कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि जींद के उपायुक्त ने घटना के एक हफ्ते के भीतर ही मामले की सिफारिश अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) से कर दी थी, जिसके बाद 14 दिसंबर 2012; 15 जनवरी 2015; 23 अगस्त 2022; 27 सितंबर 2022; 29 सितंबर 2023 और 13 अगस्त 2024 को पत्र लिखे गए।
आदेश के मुताबिक, 22 फरवरी 2013 को हरियाणा विधानसभा ने इस घटना पर विचार-विमर्श किया और मौन रखकर सौरभ को श्रद्धांजलि अर्पित की। इसमें कहा गया है कि विधानसभा ने 13 मई 2013 को जींद के उपायुक्त को एक पत्र भेजकर शोक संतप्त परिवार के प्रति संवेदना भी जताई।
आदेश में कहा गया है कि इसके अलावा प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने 24 दिसंबर 2012 और 11 जनवरी 2013 को केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र जारी कर इस घटना को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दी।
आयोग के आदेश में कहा गया है कि उस समय वीरता और जीवन रक्षक कार्यों के लिए राष्ट्रीय पुरस्कारों की सिफारिश करने के वास्ते भारत सरकार की एक सुस्थापित नीति थी।
इसमें कहा गया है कि हरियाणा सरकार इस नीति के तहत सौरभ का मामला आगे बढ़ा सकती थी, लेकिन संबंधित अधिकारियों के निर्धारित समय सीमा के भीतर फाइल का निपटारा न करने के कारण उन्हें (सौरभ को) इस सम्मान से वंचित कर दिया गया।
आयोग ने कहा कि यह देरी प्रशासनिक लापरवाही और उदासीनता का परिणाम है, जिससे न केवल सौरभ के परिवार के साथ, बल्कि पूरे समाज के साथ अन्याय हुआ है।
उसने कहा, ”आयोग का मानना है कि पहले से मौजूद पुरस्कार नीति के तहत दिवंगत सौरभ गर्ग के कार्यों की सिफारिश पर कार्रवाई करने में अधिकारियों की विफलता मानवाधिकारों का गंभीर उल्लंघन है। वीरता और बलिदान की मान्यता व्यक्ति और परिवार की गरिमा से जुड़ी हुई है। केवल नौकरशाही की देरी के कारण उन्हें इस तरह की मान्यता से वंचित करना मानवाधिकार कानून के तहत निष्पक्षता, समानता और न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।”
भाषा पारुल माधव
माधव
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