कोलकाता, 25 अप्रैल (भाषा)पश्चिम बंगाल के 12 विश्वविद्यालयों में शिक्षक संघों ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि राज्य संचालित उच्च शिक्षण संस्थानों के कामकाज में हस्तक्षेप किया जा रहा है और विश्वविद्यालयों पर ‘मानव संसाधन प्रबंधन प्रणाली (एचआरएमएस) थोपने’ के प्रयास किये जा रहे हैं।
आरोप लगाने वाले शिक्षक संगठनों में यादवपुर विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (जेयूटीए), कलकत्ता विश्वविद्यालय शिक्षक संघ, रवींद्र भारती विश्वविद्यालय शिक्षक संघ, बंगाल विश्वविद्यालय शिक्षक संघ, प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय के शिक्षक और एमएकेएयूटी के शिक्षक शामिल हैं।
जेयूटीए के महासचिव पार्थ प्रतिम रॉय ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘‘हमारा मानना है कि अगर यह नीति (एचआरएमएस) लागू की गई तो उच्च शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता के जो भी निशान बचे हैं, वे भी खत्म हो जाएंगे। इसके अलावा, यह नीति विश्वविद्यालयों के सभी अधिकारों, खासकर वित्तीय अधिकारों को व्यवस्थित तरीके से छीनकर उन्हें उच्च शिक्षा विभाग के दफ्तरों में बदल देगी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह सर्वविदित तथ्य है कि मौजूदा विश्वविद्यालय अधिनियमों के अनुसार किसी विश्वविद्यालय के कुलपति/रजिस्ट्रार/वित्त अधिकारी ही उस विश्वविद्यालय के आहरण एवं संवितरण अधिकारी (डीडीओ) का पद संभालते हैं। एचआरएमएस से विश्वविद्यालयों के इन बुनियादी ढांचे में भी बदलाव आने का खतरा है।’’
रॉय ने कहा कि उच्च शिक्षा विभाग संबंधित विश्वविद्यालयों के डीडीओ (आहरण एवं वितरण अधिकारी) के रूप में कार्य करने के लिए एक अधिकारी को नियुक्त करने की योजना बना रहा है, जो ‘‘मौजूदा विश्वविद्यालय अधिनियमों और विधियों के विरुद्ध है।’’
उन्होंने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि विश्वविद्यालय अपने कर्मचारियों को वेतन देने, पदोन्नति या सेवानिवृत्ति लाभ देने, पीएफ और ग्रेच्युटी राशि वितरित करने का अधिकार भी खो देंगे। साथ ही, अगर सरकार किसी भी कारण से, चाहे वह राजनीतिक हो या व्यक्तिगत, किसी भी कर्मचारी का वेतन रोकती है, तो विश्वविद्यालय प्राधिकार का इसमें कोई अधिकार नहीं होगा।’’
विश्वविद्यालयों के शिक्षक संगठनों ने कहा कि यदि विभाग इस कदम पर अमल करता है तो वे विश्वविद्यालय कर्मचारियों के लिए न्याय की मांग करते हुए सड़कों और अदालतों दोनों मोर्चो पर सतत आंदोलन शुरू करने के लिए मजबूर होंगे।
भाषा धीरज माधव
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