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Monday, 9 December, 2024
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अमृतपाल के ‘नशा मुक्ति केंद्र’ में यातना और हथियारों की ट्रेनिंग की दास्तां, सेवादारों ने किया खंडन

पंजाब पुलिस ने इस हफ्ते की शुरुआत में भगोड़े अमृतपाल सिंह के 'नशा मुक्ति' केंद्र को अवैध गतिविधियों की जगह बताते हुए बंद कर दिया था, लेकिन सेवादार इसे 'भगवान का घर' कहते हैं.

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जल्लूपुर खेड़ा, अमृतसर: पंजाब के जिले अमृतसर के जल्लूपुर खेड़ा गांव में बाबा कला मेहर गुरुद्वारे के बगल में एक परिसर में एक खाली हॉल है, सिवाय इसके कि कोने में पड़े फटे पुराने गद्दे, कंबल, कपड़े और आधे-अधूरे बैग पड़े हैं.

दीवारों पर पंजाब के मोस्ट वांटेड आदमी, खालिस्तान एक्टिविस्ट और ‘वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख अमृतपाल सिंह के साथ-साथ सिख उग्रवादी जरनैल सिंह भिंडरावाले और अभिनेता से एक्टिविस्ट बने दीप सिद्धू के पोस्टर लगे हैं. सभी पर “नशा मुक्ति” का संदेश लिखा है.

यह अमृतपाल द्वारा संचालित एक ‘नशा मुक्ति केंद्र’ है, जिसे पंजाब पुलिस ने मंगलवार को बंद कर दिया था. वर्तमान में ‘वारिस पंजाब दे’ के प्रमुख पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA) लगा है और वे फरार है.

पुलिस के अनुसार, जिस केंद्र में 70 से अधिक मरीज थे, वह काम तो कर रहा था लेकिन वहां कोई मेडिकल उपकरण, कोई डॉक्टर, सलाहकार या नर्स नहीं थे. हालांकि, तीन सेवादार थे, जो कार्यवाहक होने का दावा कर रहे थे और एक डॉक्टर के स्थान पर, एक फार्मासिस्ट सप्ताह में दो बार दर्द निवारक दवा देने के लिए आता था, लेकिन परिसर के अंदर किसी को आने की इजाजत नहीं थी.

परिसर के अंदर, एक सामान्य शौचालय और बाथरूम के लिए खुली जगह है, जबकि एक खंड को सेवादारों द्वारा पूरी तरह से खाली कर दिया गया था.

A pile of blankets and mattresses inside the centre | Photo: Ananya Bhardwaj | ThePrint
केंद्र के अंदर कंबल और गद्दों का ढेर | फोटो: अनन्या भारद्वाज | दिप्रिंट

वह पूरी इमारत एक रहस्य की तरह महसूस हो रही थी.

पंजाब पुलिस के सूत्रों के अनुसार, केंद्र बिना लाइसेंस के चलाया जा रहा था और अमृतपाल इस जगह का इस्तेमाल नशा मुक्ति के नाम पर “युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और उनका ब्रेनवॉश” करने, उसके बल में शामिल होने और खालिस्तान का समर्थन करने के लिए हथियार उठाने को “प्रोत्साहित” करने के वास्ते भी कर रहा था.”

लेकिन गांव के लोग सफलता की कहानियां सुनाते हैं कि कैसे अमृतपाल ने लोगों को अमृत पीने और नशा छोड़ने के लिए प्रेरित किया.

इस केंद्र में हथियारों की ट्रेनिंग के आरोपों पर सेवादार गुरमुख सिंह ने दिप्रिंट को बताया, “हमने इससे अधिक हास्यास्पद कुछ भी नहीं सुना है. हम भगवान के घर में बैठे हैं. केवल एक मूर्ख व्यक्ति ही इन आरोपों पर विश्वास करेगा कि अंदर हथियार रखे हुए हैं. साथ ही, अमृतपाल एक संत हैं, वे इन प्रथाओं में शामिल नहीं होते. उनके पास जो भी हथियार हैं, वे सभी लाइसेंसी हैं और अपनी सुरक्षा के लिए हैं.”

पुलिस ने इस केंद्र पर अपनी कार्रवाई के तहत, अब तक 17 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें से सात, “हथियार सहित थे और अमृतपाल के साथ उसके ‘बंदूकधारी’ बन कर घूम रहे थे.”

पंजाब पुलिस की कई टीमें कट्टरपंथी उपदेशक की तलाश कर रही हैं, जो 18 मार्च से फरार है. उसे और दीप सिद्धू द्वारा स्थापित सामाजिक संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ के अन्य सदस्यों को गिरफ्तार करने के लिए समूचे पंजाब में पुलिस ने एक अभियान शुरू किया हुआ है.

अमृतपाल के खिलाफ लोगों के बीच वैमनस्य फैलाने, हत्या के प्रयास, पुलिस कर्मियों पर हमले और लोक सेवकों के कर्तव्यों के वैध निर्वहन में बाधा उत्पन्न करने के आठ आपराधिक मामले दर्ज हैं.


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‘युवा गुमराह, गोपनीयता’

इस नशा-मुक्ति केंद्र के बारे में बात करते हुए, पुलिस के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया, “बेरोजगार युवा ड्रग के जाल में फंस गए और अमृतपाल ने उन्हें गुमराह किया और उनका दुरुपयोग किया. अलग-अलग गांवों के युवा, खासकर मोगा और गुरदासपुर इलाके के युवा उसके पास आते थे और वो उन्हें यहां भर्ती करता था और फिर हथियार उठाने के लिए उनका ब्रेनवाश किया करता था.”

उन्होंने आगे कहा, “वहां कोई डॉक्टर नहीं था, सिवाय एक फार्मासिस्ट के जो कभी-कभार आता था. वहां कोई दवाई नहीं थी, इलाज के लिए कोई सुविधा या स्टाफ नहीं था जो एक नशामुक्ति केंद्र के पास होना चाहिए. यह बिना लाइसेंस के चल रहा था.”

दिप्रिंट से बातचीत के दौरान, केंद्र का दौरा करने वाले फार्मासिस्ट ने कहा कि उन्हें कभी भी अंदर जाने की अनुमति नहीं थी और परिसर में “हमेशा पहरा” रहता था.

उन्होंने आगे दावा किया कि उन्हें सेवादारों द्वारा रोगियों के ब्लड प्रेशर को मापने और बुखार की जांच के लिए उपकरण ले जाने के लिए कहा गया था, जो उन्होंने सप्ताह में दो बार किया.

नाम न बताने की शर्त पर इस फार्मासिस्ट ने कहा, “मैं अमृतपाल से पहली बार दिसंबर (2022) में एक कार्यक्रम में मिला था. जब मैंने खुद को एक फार्मासिस्ट के तौर पर पेश किया, तो उनके सहयोगियों ने मुझे बताया कि उन्हें एक नशामुक्ति केंद्र के लिए कुछ दवाओं की ज़रूरत है अगर मैं उन्हें वो दे सकता हूं. मैं सहमत हो गया और कुछ दर्द निवारक दवाएं, उल्टी और दस्त के लिए दवाएं लेना शुरू कर दिया. उन्होंने मुझे एक सूची दी थी.”

उन्होंने आगे आरोप लगाया कि अमृतपाल के सहयोगियों ने उनसे यह भी पूछा कि क्या वह Addnok (या buprenorphine, opioid (मॉर्फिन) का इलाज करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है) की व्यवस्था कर सकते हैं. “यह एक ऐसी दवा है जो केवल सरकार द्वारा पंजीकृत नशामुक्ति केंद्रों पर उपलब्ध है, लेकिन मैंने मना कर दिया. मैंने उनसे कहा कि वे खुद इसकी व्यवस्था करें.”

Amritpal's 'drug de-addiction centre' | Photo: Ananya Bhardwaj | ThePrint
अमृतपाल का ‘नशा मुक्ति केंद्र’ | फोटो: अनन्या भारद्वाज | दिप्रिंट

फार्मासिस्ट के अनुसार, सेवादार बहुत “गुप्त” तरीके से रहते थे.

उन्होंने कहा, “कोई भी अंदर नहीं जा सकता था और दो सेवादार हमेशा जगह की रखवाली कर रहे थे, जिसे भी अपना ब्लड प्रेशर चेक कराना होता था वह बाहर आ जाता था.”

पुलिस सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि “जिस ज़मीन पर अमृतपाल ने सेंटर बनाया था वो उसकी थी ही नहीं”.

उन्होंने इसे गुरुद्वारा समिति से “जबरदस्ती” छीन लिया था, लेकिन कोई कुछ नहीं कह सकता था क्योंकि अमृतपाल ने कहा कि वह “नेक काम” के लिए जमीन का उपयोग कर रहे थे.


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‘मुझे पीटा, मेरे नाखून खींचे’

पुलिस के अनुसार, ऐसे कई उदाहरण थे जहां युवा यातनाएं झेलने के बाद इस केंद्र से भाग गए थे.

भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के पूर्व कर्मी मंजीत सिंह कर्णवाल पिछले दिसंबर में केंद्र में अमृतपाल के नशामुक्ति कार्यक्रम में शामिल हुए थे, लेकिन एक सप्ताह के भीतर उन्हें कथित रूप से पीटा गया और हथियार उठाने के लिए मजबूर किया गया.

उन्होंने इस संबंध में पुलिस को औपचारिक शिकायत भी दी और अमृतसर के कलचियां गांव में मामला दर्ज किया गया.

केंद्र के अंदर क्या चल रहा था, इस बारे में दिप्रिंट से बात करते हुए, कर्णवाल ने कहा, “नशामुक्ति प्रोग्राम एक दिखावा है. वो सभी को नींद की गोलियां, अल्प्रैक्स (चिंता का इलाज करने के लिए) और एक अन्य लाल गोली देते थे. कोई विरोध करता है तो उसे पीटा जाता था. अमृतपाल की टीम ने मुझे बेरहमी से पीटा. उन्होंने मुझे बांध दिया और डंडों से मेरी पिटाई की. जब मैंने कहा कि मैं पुलिस को बता दूंगा तो उन्होंने मेरे नाखून खींच लिए और मुझे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी.”

उन्होंने दावा किया कि उस केंद्र के बाहर कोई नहीं जानता था कि अंदर क्या हो रहा है.

कर्णवाल ने आगे आरोप लगाया कि कई युवाओं को हथियार उठाने के लिए कहा गया.

उन्होंने कहा, “उन्होंने (अमृतपाल के सेवादारों) तलवार, कृपाण और यहां तक कि बंदूकें चलाने की ट्रेनिंग दी. मैंने केंद्र के अंदर कई बंदूकें देखीं, जिन्हें वे नियमित रूप से बाहर निकालते थे.”

Inside the centre | Photo: Ananya Bhardwaj | ThePrint
अमृतपाल के नशा-मुक्ति केंद्र के अंदर का दृश्य | फोटो: अनन्या भारद्वाज | दिप्रिंट

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने दिप्रिंट से पुष्टि की कि कर्णवाल की शिकायत पर एक मामला दर्ज किया गया था और इस पर अभी भी “जांच” की जा रही थी.

‘हमारे पास जीरो रिलैप्स का रिकॉर्ड है’

हालांकि, नशामुक्ति केंद्र के सेवादारों की कहानी कुछ और ही है. उनका कहना है कि वे नशे की लत के इलाज के लिए दवाओं या डॉक्टरों पर निर्भर नहीं हैं, बल्कि जीवनशैली में बदलाव पर जोर देते हैं.

गुरमुख सिंह ने दिप्रिंट को बताया, “70-75 से अधिक लोग यहां थे. हम उन्हें कोई दवा नहीं देते हैं लेकिन जीवनशैली में बदलाव के साथ उन्हें नशा छोड़ने में मदद करते हैं. हम उनकी मालिश करते हैं, उन्हें धार्मिक बनने और गुरबानी सीखने के लिए प्रोत्साहित करते हैं और उनकी समस्याओं के बारे में बात करते हैं. हम उन्हें आत्म-संयम भी सिखाते हैं,”

एक अन्य कार्यवाहक राम सिंह ने कहा, “हम उन्हें लंगर खिलाते हैं, उन्हें एक साथ खाना और प्रार्थना करना सिखाते हैं. हम उनके जीवन को पटरी पर लाते हैं. एक बार जब वे समय पर उठना और स्नान करना शुरू कर देते हैं, तो आधी लड़ाई जीत ली जाती है.”

कैदियों को पीटने या हथियार उठाने के लिए प्रोत्साहित करने के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए, गुरमुख सिंह ने कहा, “यह केंद्र लोकप्रिय है क्योंकि जो एक बार यहां आ जाता है, वह साफ रहता है. कोई दिक्कत नहीं हैं. इतने लोग आए और चले गए. हम यहां किसी को उनकी मर्जी के खिलाफ नहीं रखते हैं.”

देखभाल करने वालों ने कहा कि मरीजों को परिसर में स्वतंत्र रूप से घूमने और कई खेल खेलने की अनुमति थी.

राम सिंह ने कहा, “यहां के कैदी वॉलीबॉल, बैडमिंटन, कबड्डी खेलते हैं और आज़ादी से घूमते हैं. वे गुरबानी पाठ के लिए भी जाते हैं और ध्यान करते हैं. किसी को बंधक बनाए जाने या हथियार उठाने के लिए कहने का कोई सवाल ही नहीं है.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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