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Thursday, 25 April, 2024
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तालिबान समर्थक पोस्ट के मामले में 16 लोगों की गिरफ्तारी के बाद असम के मुसलमानों में डर का माहौल, पूरे समुदाय को दोषी ठहराए जाने से आशंकित

पिछले चार दिनों के भीतर 16 मुसलमानों को सोशल मीडिया पर तालिबान समर्थक पोस्ट डालने के लिए गिरफ्तार किया गया है. उनमें एक एमबीबीएस छात्र, असम पुलिस का एक कांस्टेबल, एक शिक्षक और एक पत्रकार भी शामिल हैं.

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गुवाहाटी: सोशल मीडिया पर अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्ज़े का कथित रूप से समर्थन करने के लिए असम पुलिस ने शुक्रवार के बाद से 16 मुसलमानों के खिलाफ मामला दर्ज किया है और इसकी वजह से असम में अल्पसंख्यक समुदाय के बीच सांप्रदायिक प्रतिक्रिया की व्यापक आशंका पैदा हो गई है.

राज्य के मुस्लिम निवासियों के अनुसार, तालिबान समर्थक इन भावनाओं के लिए अब पूरे समुदाय को ‘दोषी’ ठहराया जा सकता है.

गौहाटी उच्च न्यायालय के एक वकील और राज्य के मुसलमानों के एक प्रमुख गैर-राजनीतिक संगठन असम सिविल सोसाइटी के सचिव, अब्दुस सबस तपदेर ने कहा, ‘हम इन सोशल मीडिया पोस्ट की कड़ी निंदा करते हैं. कुछ अनियंत्रित लोगों के कारण पूरे समुदाय को दोषी ठहराया जा सकता है. हम किसी भी कीमत पर कट्टरपंथ का समर्थन नहीं करते हैं. ऐसे लोग भी मौजूद हैं जो इस परिस्थिति का राजनीतिकरण करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन हमारी स्थिति बहुत स्पष्ट हैं, हम इस तरह के किसी भी जाल में नहीं फसेंगे.’

संस्था ने अपनी ओर से एक एडवाइजरी भी जारी की है – जिसकी एक प्रति दिप्रिंट को भी मिली है – जिसमें सभी मुसलमानों को इस तरह की सोशल मीडिया गतिविधि के प्रति सजग रहने को कहा गया है.

शुक्रवार से सोमवार के बीच गिरफ्तार किए गए 16 आरोपियों में एक 23 वर्षीय एमबीबीएस छात्र, असम पुलिस का एक कांस्टेबल, एक शिक्षक और एक पत्रकार भी शामिल हैं.

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उनमें से लगभग सभी पर आतंकवाद विरोधी कानून, अनलॉफुल एक्टिविटीज (प्रिवेंशन) एक्ट (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया गया है और उन्हें असम के 12 अलग-अलग जिलों – दरांग, कामरूप (ग्रामीण), कछार, बारपेटा, बक्सा, धुबरी, हैलाकांडी, दक्षिण सलमारा, गोलपारा, होजई, करीमगंज और कामरूप (मेट्रो). – से गिरफ्तार किया गया है

असम के विशेष डीजीपी (कानून और व्यवस्था), जी.पी. सिंह, ने पहले ही द इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में इस बात की पुष्टि की थी कि ‘ज्यादातर गिरफ्तारियां’ भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी, 153-ए, 505-1 सी और 505-2 (षड्यंत्र, मानहानिकारक सामग्री को पोस्ट करना, धार्मिक अपराध) तथा यूएपीए की धारा 39 (किसी आतंकवादी संगठन को समर्थन) के तहत की गई हैं.

गिरफ्तार लोगों में तीन मौलाना भी शामिल हैं और उनमें से एक – 49 वर्षीय मौलाना फजुल करीम – राज्य के प्रमुख विपक्षी दल ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के महासचिव और इस्लामी विद्वानों के एक राष्ट्रीय संगठन जमीयत- ए-उलेमा की राज्य इकाई के सचिव भी हैं.

हालांकि, एआईयूडीएफ के प्रवक्ता ने समाचार एजेन्सी पीटीआई-भाषा को बताया कि करीम को पार्टी से निलंबित कर दिया गया है.

इस बीच, कामरूप (ग्रामीण), जहां दो अन्य आरोपियों अबू बक्कर सिद्दीकी उर्फ अफगा खान अविलेख (55) और सैदुल हक (29) को गिरफ्तार किया गया है, के पुलिस अधीक्षक (एसपी) हितेश चंद्र रॉय ने कहा कि इन आरोपियों के खिलाफ जांच अभी जारी है.

उन्होंने दिप्रिंट को यह भी बताया कि 21वीं असम पुलिस इंडिया रिजर्व बटालियन के कांस्टेबल हक को दो दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.

मुस्लिम समुदाय के बीच दहशत का माहौल

इन गिरफ्तारियों के चलते पूरे राज्य की मुस्लिम आबादी को अब डर है कि स्थिति सांप्रदायिक हो सकती है. उनका कहना है कि यह अति दुर्भाग्यपूर्ण है कि मुट्ठी भर शरारती तत्वों की गिरफ्तारियों से पूरे समुदाय को नीचा दिखाए जाने की संभावना हो गई है.

असम की एक साहित्यिक संस्था, चार चापोरी साहित्य सभा, के अध्यक्ष हाफिज अहमद ने कहा, ‘डर इस बात का है कि इस तरह की पोस्ट से स्थिति सांप्रदायिक बन सकती है. लेकिन यहां यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि गिरफ्तार किए गए लोग असम के आम मुसलमानों की रहनुमाई नहीं करते हैं. हम किसी भी कट्टरवादी सोच का समर्थन नहीं करते हैं और असमिया मुसलमानों को तालिबान की किसी प्रकार की कोई फ़िक्र नही हैं.’

‘स्वदेशी’ मुसलमानों के लिए बनाई गई एक विकास परिषद, गोरिया विकास परिषद, के अध्यक्ष हाफिजुल अहमद के अनुसार, गिरफ्तार किए गए लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए.


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अहमद ने दिप्रिंट को बताया,‘असम के मुसलमान इस तरह के कृत्यों को सिरे से अस्वीकार करते हैं. इनका सामाजिक बहिष्कार किया जाना चाहिए. इन देशद्रोहियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जरूरत है,’

असम के एक मानवाधिकार मामलों के वकील अमन वदूद ने कहा, ‘मुस्लिम समुदाय द्वारा ऐसे किसी भी पोस्ट की भारी निंदा की जाती है जो तालिबान के सत्ता में आने का समर्थन करता है. हर वह मुसलमान जिसे मैं जानता हूं इस तरह की गिरफ्तारी का समर्थन कर रहा है. कोई भी इस तरह के मुश्किल सवाल भी नहीं पूछ रहा है कि उन पर यूएपीए के तहत आरोप क्यों लगाए गये हैं?’

उन्होने कहा, ‘असम के मुसलमानों ने हमेशा से कानून का पालन किया हैं. किसी भी प्रकार की सामाजिक अशांति का सवाल न केवल हास्यास्पद है, बल्कि पागलपन भरा होगा.’

क्या उनपर यूएपीए के तहत आरोप लगाए जा सकते हैं?

इस बीच, इस तरह के कुछ सवाल भी उठे रहे हैं कि क्या पुलिस सोशल मीडिया पोस्ट के आधार पर इन व्यक्तियों के खिलाफ आतंकवाद विरोधी क़ानून के तहत आरोप लगा सकती है.

राज्य पुलिस के अनुसार, वे ऐसा कर सकते हैं.

बारपेटा – जहां दो व्यक्तियों, 25 वर्षीय मोजिदुल इस्लाम और 32 वर्षीय फारुल हुसैन खान, को गिरफ्तार किया गया है – के एसपी अमिताभ सिन्हा ने कहा, ‘इनकी गिरफ्तारी एक ज्ञात आतंकवादी संगठन को समर्थन देने से संबंधित है. यहां यूएपीए के प्रावधानों को इसलिए लगाया गया है क्योंकि तालिबान को एक आतंकवादी संगठन के रूप में जाना जाता है और आरोपियों द्वारा सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से इन्हीं तालिबान का महिमामंडन किया है.’

हैलाकांडी के एसपी गौरव उपाध्याय के अनुसार, यहां से गिरफ्तार किए गए तेजपुर मेडिकल कॉलेज के 23 वर्षीय एमबीबीएस छात्र नदीम अख्तर ने अपने सोशल मीडिया पोस्ट में ‘अफगानिस्तान पर तालिबान द्वारा कब्जा जमाए जाने का जश्न मनाया’ था.

उपाध्याय ने दिप्रिंट को बताया, ‘हम इस बारे में काफ़ी उत्सुक थे और यह जानना चाहते थे कि एमबीबीएस करने वाला कोई व्यक्ति उन्हें कैसे पोस्ट कर सकता है. लेकिन जब हमने उसके सोशल मीडिया फुटप्रिंट का विश्लेषण किया, तो इस बात में कोई संदेह नहीं था कि उसे कट्टरपंथी बनाया गया था. तालिबान एक प्रतिबंधित संगठन है और इसके प्रति दिखाए गये समर्थन ने यूएपीए के तहत आरोप लगाने का आधार बनाया.’

हालांकि वकीलों ने इस तरह के आकलन से असहमति जताई.

सुप्रीम कोर्ट के वकील अनस तनवीर ने दिप्रिंट को बताया. ‘अगर कोई व्यक्ति केवल तालिबान के बारे में बात कर रहा था, तो उस शख़्श पर यूएपीए जैसे कठोर कानून के तहत आरोप नही मढ़े जा सकते है. भारत ने तालिबान को आतंकवादी संगठन के रूप में नामित नहीं किया है. असम में गिरफ्तार आरोपी भारत के बजाय अफगानिस्तान के बारे में बात कर रहे थे.’

असम के कौशिक चौधरी, जो स्वयं सुप्रीम कोर्ट के वकील भी हैं, ने भी इसी तरह की भावनाए व्यक्त कीं.

चौधरी ने दिप्रिंट को बताया, ‘एक आतंकवादी संगठन का समर्थन करना नैतिक रूप से गलत हो सकता है. लेकिन कानूनी पहलू के हिसाब से यह सवाल कि क्या सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से तालिबान को इस तरह का समर्थन किया जाना स्पष्ट रूप से यूएपीए के प्रावधानों को लगाया जाना तय करेगा? एक तकनीकी मामला है.’

उन्होने आगे कहा कि, ‘आईपीसी के तहत लगाए गये अन्य दंड प्रावधानों के अलावा, इन 15 गिरफ्तार व्यक्तियों के खिलाफ यूएपीए की धारा 39 के तहत भी प्राथमिकी दर्ज की गई है. हालांकि, धारा 39, केवल किसी आतंकवादी संगठन को समर्थन देने के लिए नहीं लगाई जा सकती है. इसके तहत कोई अपराध तभी माना जाएगा जब किसी आतंकवादी संगठन की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के इरादे से उस संगठन के लिए समर्थन जुटाया जाता है.’

उन्होंने कहा, ‘अदालत को यह पता लगाना होगा कि क्या तालिबान का समर्थन करने वाली फेसबुक पोस्ट उस संगठन की गतिविधियों में मदद पहुंचाने लिए समर्थन जुटाने के बराबर होगी. अगर इस तरह का कोई तथ्य सामने नहीं आते हैं, तो इस तरह के मामलों में यूएपीए के लगाए जाने की संभावना कम है.’

वदूद के अनुसार, ‘तालिबान बेहद खूंखार और हिंसक लोग हैं, इस हद तक कि अफगान हवाई जहाज की पूंछ वाले भाग में छुपकर अपनी मातृभूमि से भागने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने दानिश सिद्दीकी की बेरहमी से हत्या कर दी और उनके शरीर को क्षत-विक्षत कर दिया. मैं तालिबान के प्रति ‘समझदार’ लोगों द्वारा सहानुभूति रखने से बहुत हैरान हूं.‘

वे कहते हैं, ‘लेकिन यूएपीए की धारा 39 के तहत लोगों पर आरोप लगाने का मामला अदालत के सामने ठहर नहीं सकता क्योंकि भारत सरकार ने अभी तक भी तालिबान को एक आतंकवादी संगठन के रूप में नामज़द नहीं किया है.‘

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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