नई दिल्ली: मोदी प्रशासन धीरे-धीरे इस बात पर अपनी पकड़ लगातार मजबूत करता दिख रहा है कि राज्य सरकारें भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारियों की किस प्रकार से नियुक्ति और पदोन्नति करती हैं. पिछले आठ महीनों के भीतर इस तरह के अपने तीसरे कदम में, केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने राज्यों को वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को पदोन्नति देने या उन्हें नियुक्त करने से पहले इसकी स्वीकृति लेने या नियुक्ति के रद्द होने का जोखिम उठाने को तैयार रहने का आदेश जारी किया था.
हालांकि कई सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों ने दिप्रिंट से कहा कि यह ‘ओवररीच (अतिरेक या अधिकार क्षेत्र से परे की कार्रवाई), ‘हस्तक्षेप’ और ‘संघीय अधिकारों का अतिक्रमण’ कहा है; वहीं कुछ अन्य अधिकारियों का तर्क है कि गृह मंत्रालय का यह हस्तक्षेप आवश्यक था क्योंकि कुछ राज्यों ने वरिष्ठ पदों पर अधिकारियों की नियुक्ति के बाद ही केंद्र सरकार को सूचित करने की पुरानी परिपाटी का कथित तौर पर गलत लाभ उठाया है.
पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) और भारत पुलिस फाउंडेशन (आईपीएफ), जो एक पुलिसिंग और कानून प्रवर्तन मामलों का थिंक-टैंक है, के अध्यक्ष एन. रामचंद्रन ने कहा, ‘बेहतर कैडर प्रबंधन के लिए इस तरह के आदेश लाने के पीछे कुछ औचित्य प्रतीत होता है. हालांकि केंद्र के ऐसे सभी निर्देशों का दुरुपयोग होने का भी खतरा रहता है.’
उन्होंने कहा, ‘इस तरह के केंद्रीय हस्तक्षेप को न्योता देने के लिए राज्य सरकारें भी समान रूप से दोषी हैं. अनुचित रूप से पद सृजित करने और बारी से परे जाकर अधिकारियों को पदोन्नत करने के पिछले रिकॉर्ड काफी निराशाजनक थे. कुछ पदों को कुछ अधिकारियों को रिश्वत देने के लिए बनाया गया था, जबकि कुछ को असुविधाजनक लगने वाले अधिकारियों को किनारे लगाने के लिए बनाया गया था. ‘
एमएचए के इस नवीनतम निर्देश, जिसे दिप्रिंट ने भी देखा है, को 12 सितंबर को राज्यों के सभी मुख्य सचिवों को भेजा गया था. इसमें कहा गया है कि राज्य सरकारों के लिए किसी भी आईपीएस अधिकारी को ‘सलेक्शन ग्रेड’ – जिसका मतलब होता है पुलिस अधीक्षक (एसपी) और उससे ऊपर के रैंक – में पदोन्नत करने या नियुक्त करने से पहले केंद्र सरकार से अनुमोदन प्राप्त करना अनिवार्य है. एमएचए के इस संदेश में आगे कहा गया है कि कई राज्य अनुमोदन के बिना ही नियमित रूप से ‘उच्च श्रेणी (हायर ग्रेड) में पदोन्नति कर आईपीएस अधिकारियों को नियुक्त करते रहते हैं.’
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दो आदेशों और एक प्रस्ताव की कहानी
एमएचए का 12 सितंबर का पत्र आईपीएस (पे) रूल्स 2016 की धारा 3 (2) की ओर इशारा करता है, जो यह निर्धारित करता है कि सेलेक्शन ग्रेड और उससे ऊपर के स्तर पर नियुक्तियां ‘इन ग्रेडों में रिक्तियों की उपलब्धता के अधीन होंगी और इस उद्देश्य के लिए, राज्य कैडर या संयुक्त कैडर प्राधिकरण, जहां जैसा भी मामला हो, के लिए प्रत्येक ग्रेड में उपलब्ध रिक्तियों की संख्या के बारे में केंद्र सरकार की पूर्व सहमति प्राप्त करना अनिवार्य होगा.’
इन नियमों में आगे कहा गया है कि ‘भारत सरकार की पूर्व सहमति प्राप्त किए बिना की गई ऐसी कोई भी नियुक्ति रद्द करने के योग्य होगी.’
एमएचए ने अपने पत्र में आगे लिखा है कि राज्य ‘अपर्याप्त जानकारी प्रदान कर रहे हैं जिससे (नियुक्तियों / पदोन्नति के लिए विचार किए जा रहे अधिकारियों के बारे में) ऐसे प्रस्तावों को संसाधित (प्रोसेस) करना मुश्किल हो गया है.’ इसमें यह भी कहा गया है कि ‘कुछ राज्य इस मामले पर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर नहीं देते हैं और इस प्रकार, प्रस्तावों में देरी होती है.’
सभी राज्य सरकारों को पदोन्नति और नियुक्तियों से सम्बन्धी प्रस्तावों को विचाराधीन अधिकारियों के बारे में विवरण के साथ गृह मंत्रालय की मंजूरी के लिए 15 नवंबर तक उसके पास भेजने के लिए कहा गया है.
इससे पहले, अप्रैल में, एमएचए ने प्रस्तावित किया था कि राज्यों के जिन आईपीएस अधिकारियों ने एसपी या डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल (डीआईजी) के रूप में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर अपनी सेवा प्रदान नहीं की है, उन्हें केंद्रीय एजेंसियों में वरिष्ठ स्तर पर अपनी सेवा देने से रोका जा सकता है. गृह मंत्रालय ने कथित तौर पर यह प्रस्ताव इसलिए रखा था, क्योंकि केंद्र सरकार के पास एसपी/डीआईजी स्तरों पर सबसे अधिक रिक्तियां हैं और राज्य इन रैंकों पर प्रतिनियुक्ति के लिए अधिकारियों को मुक्त नहीं करते हैं.
हालांकि, एक केंद्रीय एजेंसी में कार्यरत एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने कहा कि इस संबंध में कोई आदेश जारी नहीं किया गया है.
इससे कुछ ही समय पहले, फरवरी 2022 में, सरकार ने डीआईजी स्तर के लिए लंबी सूचीकरण प्रक्रिया (लॉन्ग इम्पैनल्मेंट प्रोसेस) – वह प्रणाली जिसके माध्यम से राज्यों के अधिकारियों को केंद्र सरकार में सेवा के लिए चुना जाता है – को समाप्त करने के लिए पेश एमएचए के एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी थी. यह कदम भी आईपीएस स्तर की रिक्तियों की समस्या को दूर करने के लिए उठाया गया था.
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‘दुःखद’ और ‘आपत्तिजनक‘
दिप्रिंट ने जिन कई सेवानिवृत्त और वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों से बात की, उन्होंने कहा कि एमएचए का यह नवीनतम आदेश राज्यों के प्रशासनिक कामकाज में ‘प्रत्यक्ष हस्तक्षेप’ का संकेत देता है.
एक राज्य के डीजीपी ने उनकी पहचान उजागर न किए जाने की शर्त पर दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, ‘अगर राज्य सरकारें यह तय ही नहीं कर सकती हैं कि उन्हें अपने अधिकारियों को कहां तैनात करना है और उन्हें कब पदोन्नत करना है, तो यह उनके प्रशासनिक कामकाज में गंभीर हस्तक्षेप है.’
इन डीजीपी ने कहा कि एमएचए के पत्र से पता चलता है कि केंद्र और राज्य सरकारें दोनों हीं ‘आईपीएस कैडर के नियंत्रण पर जोर दे रहीं हैं’. उन्हें विशेष रूप से इस बात की चिंता थी कि आईपीएस अधिकारी इस मुद्दे के खामियाजा भुगतते लग रहे हैं क्योंकि एमएचए के पत्र में कहा गया है कि केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना की गई किसी भी नियुक्ति को रद्द किया जा सकता है.
उन्होंने कहा, ‘साल 2015 में, ऐसा ही आदेश आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा) के अधिकारियों के लिए भी आया था, लेकिन इसमें (नियुक्ति) रद्द करने का प्रावधान नहीं था. आईपीएस अधिकारियों के मामले में सरकार ने ‘रद्द करने योग्य’ पक्ति जोड़ दी है, जो बहुत गंभीर बात है.’
दिप्रिंट के पास अगस्त 2015 के उस पत्र की एक प्रति भी है जिसका उल्लेख इन पुलिस अधिकारी ने किया था. इसे कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डिपार्टमेंट ऑफ़ पर्सनेल एंड ट्रेनिंग- डीओपीटी) की ओर से सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को संबोधित किया गया था, और राज्यों से कहा गया था कि वे आईएएस अधिकारियों को पदोन्नत करने अथवा उन्हें कोई नियुक्ति प्रदान करने से पहले ‘भारत सरकार की पूर्व सहमति’ लें. हालांकि इस पत्र में नियुक्तियों को रद्द करने का कोई जिक्र नहीं है.
कैबिनेट सचिवालय में विशेष सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए पूर्व आईपीएस अधिकारी वप्पला बालचंद्रन ने कहा कि गृह मंत्रालय का यह प्रस्ताव अभूतपूर्व और ‘आपत्तिजनक’ है .
उन्होंने कहा, ‘यह स्पष्ट रूप से केंद्र सरकार द्वारा किया गया एक अतिरेक (ओवररीच) है. इस पर कुछ अध्ययन होना चाहिए. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था. राज्यों के लिए मानक परंपरा उच्च पदों पर किसी अधिकारी की नियुक्ति या पदोन्नति के बाद केंद्र को इसके बारे में एक संवाद भेजना था. यह संघीय सिद्धांतों में बाधा डालने और राज्यों के संघीय अधिकारों का अतिक्रमण करने का एक और उदाहरण है.’
उनके मुताबिक राज्यों को एमएचए के इस प्रस्ताव का विरोध करना चाहिए.
बालचंद्रन ने कहा, ‘राज्यों को अपना विरोध दर्ज करवाना चाहिए. यदि केंद्र किसी विशेष अधिकारी के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रसित है, तो वह उससे संबंधित प्रस्तावों को अस्वीकार कर देगा. यह अपने-अपने कैडरों को प्रबंधित करने से संबंधित राज्यों के अधिकारों में कटौती का एक तरीका भी है. ‘
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‘कुछ राज्य नियमों का पालन नहीं करते’
दिप्रिंट ने जिन वरिष्ठ आईएएस और आईपीएस अधिकारियों से इस मुद्दे के बारे में बात की, उनमें से कुछ ने तर्क दिया कि इस कदम से नियुक्तियों के मामले में और अधिक ‘अनुशासन’ लाने में मदद मिल सकती है.
एक विपक्षी दल द्वारा शासित राज्य के मुख्य सचिव ने इस पत्र के पीछे संभावित कारणों की पड़ताल की.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘इस पत्र की प्रकृति चीजों को बिगाड़ने के बजाए उन्हें कसने वाली प्रतीत होती है. यह एक अत्यंत सावधानीपूर्वक तैयार किया गया पत्र है, जो दी गई योजना से बाहर निकले बिना भी कई अघोषित चीजों को हासिल करने का इरादा रखता है. यह कैडर प्रबंधन प्राधिकरण के रूप में एमएचए के महत्व और अधिकार के बारे में भी राज्यों को फिर से याद दिलाता है.’
एक अन्य वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने कहा कि जो राज्य नियमों की धज्जियां उड़ा रहे हैं, वे केंद्र सरकार द्वारा निगाह रखे जाने की वजह से दूसरों की तुलना में अधिक ‘परेशान’ हो सकते हैं.
उन्होंने कहा, ‘कुछ राज्य ऐसे हैं जो रिक्तियों के प्रबंधन में नियमों का पालन नहीं करते हैं और अधिकारियों को पदोन्नत करने या उन्हें नियुक्त करने के बारे में केंद्र से उचित रूप से संवाद नहीं करते हैं. वे राज्य (इस आदेश से) तनाव में आ सकते हैं.‘
उन्होंने कहा, ‘कैडर प्रबंधन में अनुशासन अच्छा है, मगर तब तक जब तक कि केंद्र विशिष्ट अनुशासनात्मक कार्रवाइयों या शक्तियों को बढ़ावा देने में हस्तक्षेप कर राज्यों के अधिकार क्षेत्र में प्रविष्ट नहीं होता है.’
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