नयी दिल्ली, 23 जून (भाषा) दुनिया का सबसे बड़ा महाद्वीप और विश्व की 60 प्रतिशत आबादी का निवास स्थान एशिया वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी गति से गर्म हो रहा है। विश्व मौसमविज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा सोमवार को जारी एक रिपोर्ट में यह कहा गया है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन की ‘‘2024 में एशिया में जलवायु की स्थिति’’ रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया में समुद्री सतह भी पिछले दशकों में वैश्विक औसत से लगभग दोगुनी गति से गर्म हो रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक,‘‘दो सबसे हालिया उप-अवधियों (1961-1990 और 1991-2024) में आर्कटिक तक फैला सबसे बड़ा भूभाग वाला महाद्वीप एशिया वैश्विक भूमि और महासागर औसत की तुलना में अधिक तेजी से गर्म हुआ है।’’
आंकड़ों के मुताबिक, 2024 में एशिया में औसत तापमान 1991-2020 के औसत तापमान से लगभग 1.04 डिग्री सेल्सियस अधिक था। यह आंकड़ा इसे सबसे गर्म या दूसरा सबसे गर्म वर्ष बना देगा।
रिपोर्ट के मुताबिक, इस वर्ष एशिया के कई हिस्सों में भीषण गर्मी दर्ज की गई। अप्रैल से नवंबर तक पूर्वी एशिया में लंबे समय तक गर्म हवाएं चलती रहीं। जापान, कोरिया गणराज्य और चीन में बार-बार मासिक औसत तापमान के रिकॉर्ड टूटे। भारत में 2024 में भीषण गर्मी के कारण लू लगने के लगभग 48,000 मामले सामने आये तथा 159 लोगों की मौत हुई।
डब्ल्यूएमओ ने कहा कि एशिया के प्रशांत और हिंद महासागर, दोनों ओर समुद्र का स्तर वैश्विक औसत की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ा है, जिससे निचले तटीय क्षेत्रों के लिए खतरा बढ़ गया है।
रिपोर्ट में कहा गया कि सर्दियों में बर्फबारी में कमी और गर्मियों में उच्च तापमान की वजह से हिमनद बुरी तरह प्रभावित हुए।
डब्ल्यूएमओ के मुताबिक, मध्य हिमालय और तियान शान में 24 में से 23 हिमनदों में मौजूद बर्फ में कमी आई। इससे हिमनद की कगार टूटने, बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं का खतरा बढ़ गया है और जल सुरक्षा के लिए दीर्घकालिक खतरा पैदा हो गया है।
रिपोर्ट के मुताबिक, अत्यधिक वर्षा के कारण कई देशों में भारी क्षति हुई और जान-माल का भारी नुकसान हुआ, जबकि उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के कारण तबाही आई। सूखे के कारण बड़ी आर्थिक और कृषि संबंधी हानि हुई।
डब्ल्यूएमओ महासचिव सेलेस्टे साउलो ने कहा, ‘‘एशिया में जलवायु की स्थिति रिपोर्ट में सतह के तापमान, ग्लेशियर द्रव्यमान और समुद्र तल जैसे प्रमुख जलवायु संकेतकों में बदलावों को रेखांकित किया गया है, जिसका क्षेत्र में समाजों, अर्थव्यवस्थाओं और पारिस्थितिकी तंत्रों पर बड़ा असर पड़ेगा। चरम मौसमी स्थितियों की बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है।’’
भाषा धीरज सुभाष
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