लखनऊ: कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा, बीजेपी नेता रितेश पांडे और सीपीआई(एम) की पोलित ब्यूरो सदस्य सुभाषिनी अली समेत कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने अली खान महमूदाबाद की गिरफ्तारी पर सवाल उठाए हैं. उनकी गिरफ्तारी ऑपरेशन सिंदूर पर टिप्पणी को लेकर हुई थी.
42 वर्षीय अली खान महमूदाबाद उत्तर प्रदेश के महमूदाबाद के पूर्व शाही परिवार से ताल्लुक रखते हैं. वह अशोक विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं और राजनीतिक विज्ञान विभाग के प्रमुख हैं.
हरियाणा पुलिस ने 18 मई को उन्हें दिल्ली से गिरफ्तार किया था. यह गिरफ्तारी हरियाणा भाजपा युवा मोर्चा के एक महासचिव की ओर से 17 मई को दर्ज कराई गई शिकायत के बाद हुई. अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है.
अंबेडकर नगर के पूर्व सांसद रितेश पांडे ने दिप्रिंट से कहा, “मैं अली महमूदाबाद के समर्थन में आज भी कायम हूं. उनके पोस्ट को गलत समझा गया. वह कभी विवादित व्यक्ति नहीं रहे। हमारे अच्छे संबंध रहे हैं. समाज के लिए उनका काम सराहनीय है.”
प्रयागराज से बीजेपी विधायक हर्षवर्धन बाजपेई ने भी अली का समर्थन किया. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “मैंने उनका फेसबुक पोस्ट पढ़ा. उसमें मुझे कुछ भी विवादास्पद नहीं लगा. फिर गिरफ्तारी की जरूरत क्यों पड़ी, समझ नहीं आया. एक बुद्धिजीवी को तथ्यों को लिखने पर गिरफ्तार करना अजीब है.”
सिर्फ राजनीतिक नेता ही नहीं, एमनेस्टी इंडिया और शिक्षाविदों सहित कई लोगों ने भी प्रोफेसर के खिलाफ की गई कार्रवाई की निंदा की है.
दिप्रिंट ने अली खान महमूदाबाद की पृष्ठभूमि और उनके राजनीति, शिक्षा और कला की दुनिया से जुड़े रिश्तों पर नजर डाली है.
पूर्व राजपरिवार, राजनीतिक संबंध
अली के पिता मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान, जिन्हें ‘सुलेमान’ के नाम से भी जाना जाता है, महमूदाबाद के आखिरी शासक राजा मोहम्मद आमिर अहमद खान के इकलौते बेटे थे. आमिर अहमद खान ने भारत विभाजन से पहले लंबे समय तक मुस्लिम लीग के कोषाध्यक्ष और फाइनेंसर के रूप में काम किया था.
सुलेमान खुद 1985 से 1991 के बीच दो बार कांग्रेस विधायक रहे. 1991 में वे महमूदाबाद सीट से बीजेपी के नरेंद्र वर्मा से हार गए। 1996 में कांग्रेस ने अपने पुराने भरोसेमंद और पूर्व विधायक अम्मार रिज़वी को उस सीट से उतारा.
सरकार द्वारा ‘शत्रु संपत्ति क़ानून’ के तहत जब्त की गई पूर्व शाही परिवार की संपत्तियों को वापस पाने के लिए सुलेमान की दशकों लंबी कानूनी लड़ाई प्रसिद्ध है.
एक वरिष्ठ यूपी कांग्रेस नेता के अनुसार, “सुलेमान ने कांग्रेस नहीं छोड़ी थी, लेकिन जब उन्हें अवध क्षेत्र में अपनी संपत्तियों को लेकर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से कोई मदद नहीं मिली, तो उन्होंने पार्टी गतिविधियों से दूरी बना ली थी.” सुलेमान का अक्टूबर 2023 में लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया.
अली की मां रानी विजय उदयपुर के एक प्रतिष्ठित परिवार से हैं. उनके नाना जगत सिंह मेहता एक प्रशासक, राजनयिक और शिक्षाविद थे। वे 1976 से 1979 तक भारत के विदेश सचिव रहे. अली के मामा विक्रम सिंह मेहता एक बिजनेस एक्ज़ीक्यूटिव से विश्लेषक बने और वर्तमान में नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक ‘सेंटर फॉर सोशल एंड इकनॉमिक प्रोग्रेस (CSEP)’ के चेयरमैन हैं.
अपने पिता की तरह अली ने भी लखनऊ के ला मार्टिनियर कॉलेज से पढ़ाई की और फिर उच्च शिक्षा के लिए विदेश चले गए। उन्होंने यूके के कैम्ब्रिज और सीरिया के दमिश्क में पढ़ाई की. इसके बाद अली भारत लौटे, जहां वे अब एक बहुभाषी राजनीतिक विद्वान के रूप में जाने जाते हैं और दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व की राजनीति, सांप्रदायिक सौहार्द और मुस्लिम पहचान पर लेखन करते हैं.
अली ने ‘Poetry of Belonging: Muslim Imaginings of India 1850–1950’ नामक एक किताब लिखी है, जिसमें उन्होंने उत्तर भारत के मुसलमानों की पहचान को कविता के माध्यम से समझाया है. वे कश्मीरी मानवविज्ञानी और लेखिका ओनाइज़ा दराबू से विवाहित हैं, जो जम्मू-कश्मीर के पूर्व मंत्री हसीब दराबू की बेटी हैं.
अपने पिता के रास्ते पर चलते हुए अली ने 2017 में राजनीति में कदम रखा, लेकिन उन्होंने समाजवादी पार्टी को चुना. उन्होंने एसपी में एंट्री तब की जब अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे. अपने संपर्कों के कारण अली ने कई विदेशी गणमान्य व्यक्तियों की अखिलेश से मुलाकात कराने में मदद की.
2019 में उन्हें समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया. 2022 तक वे अखिलेश के सबसे करीबी साथियों में माने जाते थे. 2022 के बाद से महमूदाबाद का पार्टी में कोई आधिकारिक पद नहीं है, लेकिन एसपी के नेताओं का कहना है कि वे अभी भी अखिलेश की कोर टीम का हिस्सा हैं और पार्टी हाईकमान तक सीधी पहुंच रखते हैं.
एसपी के एक पदाधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “एक समय था जब अली राष्ट्रीय अध्यक्ष (अखिलेश) की थिंक टैंक टीम के कोर मेंबर माने जाते थे. पार्टी के लिए अंग्रेज़ी में कंटेंट तैयार करने में उनकी बड़ी भूमिका थी, लेकिन पेशेवर प्रतिबद्धताओं और 2022 में सरकार न बनने की वजह से उन्होंने अकादमिक क्षेत्र पर ध्यान देना शुरू कर दिया. फिर भी वे पार्टी के साथ हैं. लगभग हर ईद पर अखिलेश जी उनके महल जाते हैं.”
अली के परिवार के करीबी लोगों का कहना है कि महमूदाबाद परिवार की संपत्तियां लखनऊ, सीतापुर और उत्तराखंड के नैनीताल में फैली हैं. लखनऊ में उनके पास बटलर पैलेस, हज़रतगंज मार्केट का एक बड़ा हिस्सा, हलवासिया मार्केट और महमूदाबाद किला जैसी संपत्तियां हैं, जिनकी कीमत हजारों करोड़ रुपये बताई जाती है.
लखनऊ के एक पारिवारिक मित्र सैयद हुसैन अफसर ने दिप्रिंट से कहा, “अली के परिवार की प्रतिष्ठा बहुत ऊंची है. उनके संपर्क सभी दलों और नौकरशाही में हैं. उनके पिता को ‘राजा साहब’ कहा जाता था, जो अपने बच्चों की शिक्षा पर बहुत ध्यान देते थे. अली ने विदेश की बड़ी संस्थाओं में पढ़ाई की है, लेकिन अपनी जड़ों से जुड़े हुए हैं. उन्हें कई भाषाओं का ज्ञान है और उर्दू पर भी अच्छी पकड़ है. यह विश्वास करना मुश्किल है कि हरियाणा पुलिस ने एक स्कॉलर को गिरफ्तार कर लिया. उनके सोशल मीडिया पोस्ट को गलत समझा गया.”
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