नई दिल्ली: भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) की सीईओ मनीषा कपूर ने दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि डार्क पैटर्न धीरे-धीरे उनका फोकस एरिया बनता जा रहा है. आगे उन्होंने कहा कि लगातार बढ़ते हुए ऐसे मुद्दों से निपटने के लिए टास्क फोर्स बनाया गया है. डार्क फोर्स का मतलब है विज्ञापनदाताओं द्वारा अपनायी जाने वाली उन टैक्टिक्स को कहते हैं जिनके द्वारा वे कंज्यूमर्स के निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करते हैं.
एएससीआई ने हाल के दिनों में एक रिपोर्ट जारी की है जिसने इस इंडस्ट्री के भीतर भ्रामक विज्ञापनों समस्याओं को उजागर किया. एड-टेक प्लेटफार्मों से लेकर क्रिप्टो कंपनियों तक, बहुत सारे उद्योग गलत तरीके से उत्पादों और सेवाओं को दिखाते हैं और सेल्फ – रेग्युलेटरी बॉडी के रडार के तहत आ गए हैं.
कपूर ने कहा, ‘डार्क पैटर्न एक ऐसी चीज है जो हमारे रडार पर है और मुझे लगता है कि बहुत जल्द, हम एक पोजीशन पेपर और कुछ सुझाव देंगे कि हम इससे कैसे निपटने जा रहे हैं.’ उन्होंने कहा, ‘हमने पहले ही एक टास्क फोर्स का गठन कर लिया है जो कि पिछले कुछ महीनों से इस मुद्दे और डार्क पैटर्न की जांच कर रहा है.
विभिन्न क्षेत्रों, विशेष रूप से अमेरिका और यूरोपीय संघ की रिपोर्ट्स ने ऑनलाइन विज्ञापनों में कुछ ‘डार्क कंज्यूमर पैटर्न’ का वर्णन किया है जिसमें संगठन भ्रामक प्रथाओं के माध्यम से कंज्यूमर पैटर्न को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं.
यह स्पैम ईमेल के प्रसार या किसी वेबसाइट को ब्राउज़ करते समय वीडियो या ऑडियो सामग्री के अचानक इनफ्यूज़ करने के रूप में हो सकता है, या एक बार्टर सिस्टम की पेशकश कर सकता है जिसमें कंज्यूमर्स को किसी मित्र को रेफर करने के बाद ही किसी एप्लिकेशन को ऐक्सेस कर सकता है.
इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय वर्तमान में एक नए डिजिटल इंडिया ऐक्ट के लिए रास्ता बना रहा है जिसमें ई-कॉमर्स, डेटा की गोपनीयता और भ्रामक विज्ञापनों से संबंधित पहलुओं को शामिल किया जाएगा. दरअसल, पिछले महीने आईटी नियमों में संशोधन जारी करते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा था कि ‘भ्रामक विज्ञापनों’ को एक बड़ी समस्या के रूप में पहचाना गया है.
डार्क पैटर्न के कुछ जिनकी पहचान की गई है, वे हैं: ग्राहकों द्वारा ऑनलाइन खरीदी जाने वाली वस्तुओं पर छिपी हुई लागतों के साथ गुमराह किया जा रहा है, स्क्रॉल करते समय पॉप अप होने वाले अचानक छिपे हुए विज्ञापन, एक्सचेंज में संलग्न होने से पहले सोशल मीडिया परमीशन के लिए पूछना, शॉपिंग वेबसाइटों और ब्रांडों से स्पैम ईमेल आदि.
कपूर ने कहा, ‘यह कुछ ऐसा है जो बढ़ती चिंता का विषय है और नए प्रकार की कंज्यूमर्स के लिए नई तरह की परेशानियां पैदा कर रहा है. उन्होंने कहा, ‘इसमें से कुछ (डार्क पैटर्न) भ्रामक विज्ञापनों के क्षेत्र में हैं; एक सिद्धांत स्तर पर वे पहले से ही हमारे दिशा-निर्देशों के तहत कवर किए जाते हैं – (डार्क पैटर्न) भ्रामक हैं, भले ही यह किस माध्यम पर हो और इसे कहां प्रकाशित किया गया हो. वे (हमारे दिशा-निर्देश) कुछ प्रकार के पैटर्न के खिलाफ पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते हैं.
विज्ञापनों में डेटा गोपनीयता
कपूर के अनुसार, एएससीआई उन दिशानिर्देशों पर भी विचार कर रहा है जो विज्ञापन के डेटा गोपनीयता पहलू को देखते हैं.
उन्होंने कहा, ‘हालांकि, गोपनीयता की चिंताओं और डेटा-शेयरिंग के बीच अंतर करना अपने आप में एक चुनौती है.
कपूर ने कहा, ‘गोपनीयता थोड़ा मुश्किल मुद्दा है; कुछ निश्चित डेटा जो विज्ञापनदाता या वेबसाइट आपके बारे में संगृहीत करते हैं. आपके अनुभव को भी सहज बनाते हैं.’ उन्होंने कहा, ‘ऐसा होता है कि आप कुछ साइटों पर अपने ईमेल पर लॉग इन रह जाएं; आपको हर बार अपना डेटा दर्ज करने की जरूरत नहीं होती. तो ये तरीके हैं जिनमें डेटा कलेक्ट किया जाता है जो कि ब्राउज़िंग एक्सपीरिएंस या कंज्यूमर एक्सपीरिएंस को आपके लिए अधिक फायदेमंद और बेहतर बनाता है.
लेकिन यहां जो मुद्दा महत्वपूर्ण बना हुआ है वह है पारदर्शिता का है – कंपनियां वास्तव में यह नहीं स्पष्ट करती हैं कि ग्राहक कितना सहमति दे रहा है.
सीईओ ने जोर देकर कहा, ‘ऐसे डेटा हैं जो संगठन उपयोग करते हैं जो वास्तव में आपके अपने अनुभव को बेहतर बनाता है.’ उन्होंने कहा, ‘मुद्दा यह है कि उन्हें आपके डेटा का उपयोग करने की अनुमति दी जा रही है और आप उस सहमति को अच्छी तरह से समझते हैं. दूसरा, उस सहमति का उद्देश्य क्या है? क्या यह मेरे अनुभव को बेहतर बनाने के लिए है? दूसरा, लेकिन क्या मैंने अपना डेटा किसी अन्य पार्टी को बेचने के लिए सहमति व्यक्त की है? कई बार यह जानकारी भारी पड़ जाती है. इसकी भी संभावना होती है कि हमें ‘कुकी वरीयताओं’ का मतलब ही न पता हो.
सरोगेट विज्ञापनों को पकड़ना मुश्किल
एक महीने पहले, उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने सरोगेट विज्ञापन से जुड़ने के लिए शराब कंपनियों को नोटिस जारी किए. सरोगेट विज्ञापन उन विज्ञापनों को कहते हैं जिनका प्रमोशन अप्रत्यक्ष रूप से किया जाता है क्योंकि उनका ऐड प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया जा सकता है. मंत्रालय ने कहा कि अल्कोहल ब्रांड म्यूजिक सीडी और गैर-मादक पेय पदार्थों के माध्यम से खुद का विज्ञापन कर रहे हैं, जो ‘भ्रामक विज्ञापनों’ के तहत आता है.
कपूर ने कहा, ‘हालांकि, एएससीआई को पता है कि ऐसा कोई कानून नहीं है जो किसी संगठन को अपने बैनर के तहत अपने ब्रांड एक्सटेंशन का प्रचार करने से रोकता हो – जो कि फिर से काफी मुश्किल हो जाता है.
उन्होंने कहा, ‘गेमिंग और अल्कोहल दोनों में चुनौतियां हैं; ये राज्य के विषय हैं और कोई केंद्रीय कानून नहीं है. ‘एएससीआई में, हमने कुछ मानदंड बनाए हैं: ऐसा होने पर ठीक माना जाएगा और इसके अलावा, इसे सरोगेट माना जाएगा. चुनौती यह है कि केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (सीसीपीए) के दिशा-निर्देश कहते हैं कि सरोगेट विज्ञापन की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, लेकिन ब्रांड विस्तार की अनुमति होनी चाहिए.
कपूर ने कहा, ‘कानून आपको एक ही ब्रांड नाम का उपयोग करके अन्य श्रेणियों में उत्पाद लॉन्च करने की अनुमति देता है. हालांकि, ‘ब्रांड एक्सटेंशन और सरोगेट विज्ञापनों के बीच एक लाइन खींचना मुश्किल है.’
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