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Saturday, 21 December, 2024
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भारत-चीन वार्ता के विफल होने और तनाव बढ़ने के साथ एक और ‘गलवान जैसी घटना’ की संभावना को लेकर भारत चिंतित

आने वाली सर्दियों में भारतीय सैनिकों के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है और सूत्रों का इस बात का भी डर है कि अगले साल मार्च-अप्रैल तक हिंसा वाली कोई घटना भी हो सकती है, जिसमें काफी हद तक फायर आर्म्स का उपयोग भी संभव है.

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नई दिल्ली: वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव को कम करने के लिए भारत-चीन के बीच कोर कमांडर-स्तरीय वार्ता के अंतिम दौर की विफलता के साथ ही भारत का रणनीतिक समुदाय इस बात को लेकर चिंतित है कि पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर टकराव की संभावना और बढ़ सकती है और यह भी कि बीजिंग संभवतः आपसी संपर्क की नियमित लाइनों को कायम नहीं भी रख सकता है.

हालांकि, चीन द्वारा एलएसी पर और अधिक सैनिकों को तैनात करने की हालिया कार्रवाइयों की वजह से भारत को डिसइंगेजमेंट के मसले पर कोई खास प्रगति की उम्मीद नहीं थी, परंतु जैसा कि दिप्रिंट को पता चला है, इस बार बीजिंग द्वारा की गई इस टिप्पणी कि भारत ने ‘अनुचित मांग’ की थी, ने नई दिल्ली स्थित रणनीतिक स्रोतों को इस बात के प्रति सशंकित किया है कि इसके कारण फिर से ‘गलवान जैसी कोई भड़काऊ घटना हो सकती है.

सूत्रों के अनुसार, आगे आने वाली सर्दी जहां भारतीय सैनिकों के लिए कठिनाई भरी हो सकती है, वहीं अगले साल मार्च-अप्रैल तक आग्नेयास्त्रों के संभावित उपयोग सहित हिंसा का एक नया दौर भी शुरू हो सकता है.

सूत्रों का यह भी कहना है कि इस बार चीनियों ने संचार के संपर्क सूत्रों पर ‘अपना दृष्टिकोण बदलने’ का भी संकेत दिया है.

अप्रैल-मई 2020 में जब से एलएसी पर मौजूदा गतिरोध शुरू हुआ है, तभी से दोनों पक्षों ने आपसी संवाद के लिए मुख्य रूप से तीन स्तरीय दृष्टिकोण का पालन किया है- राजनयिक और सैन्य स्तर पर नियमित वार्ता के साथ-साथ भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच एक संवाद का रास्ता बना हुआ है.

इन सबके अलावा, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और शीर्ष चीनी राजनयिक यांग जिएची के बीच भी बातचीत हुई है. दरअसल, डोभाल और यांग यी 2020 की वार्ता के बाद एक डिसइंगेजमेंट योजना पर सहमत हुए थे.

सूत्रों ने कहा कि इस बार की वार्ता इसलिए विफल रही क्योंकि चीन ने जनरल जू किलिंग, जिन्हें जुलाई में पदोन्नत किया गया था, की जगह जनरल वांग हैजियांग की नियुक्ति की है और इसके परिणामस्वरूप बातचीत का ‘सहज माहौल’ हासिल नहीं किया जा सका था.

एलएसी पर गतिरोध शुरू होने के बाद से जनरल वांग चीन के वेस्टर्न थिएटर कमांड के चौथे कमांडर हैं. चीन के सेंट्रल मिलिट्री कमीशन (सीएमसी), जो पीएलए का नेतृत्व करती है, ने उन्हें इस पद पर लाने का निर्णय सितंबर में ही लिया था.


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विवादित मुद्दे

हालांकि, पैंगोंग त्सो क्षेत्र और गोगरा पोस्ट में डिसइंगेजमेंट का काम पूरा हो चूका है, हॉट स्प्रिंग्स, देपसांग प्लेन्स और डेमचोक क्षेत्र में पेट्रोलिंग पॉइंट 15 (पीपी15) पर गतिरोध अब भी जारी है.

भारत और चीन के बीच छह से सात हॉटलाइन हैं, फिर भी आपसी बातचीत में बहुत कम प्रगति हुई है. डीजीएमओ स्तर पर हॉटलाइन की स्थापना के साथ इस मुद्दे को हल करने की एक बड़ी योजना अब भी अधूरी पड़ी है.

एक सूत्र के मुताबिक, इस सर्दी में दोनों पक्ष अत्यधिक तनावपूर्ण अवस्था लेकिन भारत किसी भी तरह की चुनौती का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार है.

सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज में एक विशिष्ट फेलो लेफ्टिनेंट जनरल राकेश शर्मा (सेवानिवृत्त) ने कहा, ‘हॉट स्प्रिंग्स और डेमचोक की वजह से चुनौतियों का सामना करना जारी रह सकता है. चीनियों ने अब इसे संप्रभुता का मुद्दा बना दिया है, जो चिंताजनक बात है. पहले वे कह रहे थे कि यह सिर्फ एक क्षेत्रीय मुद्दा है. इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए.’

शर्मा के कहा, ‘इस तरह की स्थिति पहले कभी नहीं हुई. यह वैसा मामला नहीं है जैसा कि चीन के साथ अन्य सीमावर्ती घटनाओं में हुआ करता था. हम किसी अन्य मामले से इसकी बराबरी नहीं कर सकते… चीन के साथ बातचीत जारी रखने के लिए भारत को एक नए प्रस्ताव के साथ सामने आना पड़ सकता है. और हमें हर समय अमन और शांति की बात करना बंद कर देना चाहिए. अब तो तवांग में भी हालात खराब होने लगे हैं.’

भारत अब चीन के साथ कड़ी बातचीत कर रहा है

11 अक्टूबर को सैन्य-स्तरीय वार्ता के पिछले दौर, जो दोनों देशों की सेनाओं के बीच बातचीत का 13वां दौर था, के दौरान दोनों पक्षों द्वारा आपस में कुछ कड़े शब्दों का प्रयोग किया गया.

एक ओर भारत का कहना है कि उसने शेष क्षेत्रों में गतिरोध हल करने के लिए कुछ रचनात्मक सुझाव दिए, मगर उसने पाया कि चीनी पक्ष ‘इनसे सहमत नहीं था और अपनी ओर से भी कोई भी दूरंदेशी भरा प्रस्ताव नहीं दे सका था’.

दूसरी ओर, चीनी पीएलए ने कहा कि भारत ‘अभी भी अपनी अनुचित और अवास्तविक मांगों पर कायम है, जिसने इस वार्ता में आ रही कठिनाइयों में वृद्धि ही की है’.

चीन में भारत के पूर्व राजदूत गौतम बंबावाले कहते हैं, ‘पिछले डेढ़ साल में भारत-चीन द्विपक्षीय संबंध अभूतपूर्व तरह से बिगड़े हैं तथा आगे और भी बिगड़ते ही रहेंगे. अतः पूरे देश को आने वाले बदलाव के लिए तैयार रहना होगा.’

वे कहते हैं, ‘पिछली बार के विपरीत, भारतीय सेना अब सर्दियों के लिए बहुत अच्छी तरह से तैयार है, हमारे पास बेहतर बुनियादी ढांचा और बेहतर साजो-सामान है.’

बुधवार को भारत ने उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू की अरुणाचल प्रदेश यात्रा पर चीन द्वारा की गई टिप्पणी के लिए भी उसकी कड़ी आलोचना की.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बुधवार को कहा, ‘अरुणाचल प्रदेश भारत का एक अभिन्न और अविभाज्य हिस्सा है. भारतीय नेतागण नियमित रूप से अरुणाचल प्रदेश राज्य की यात्रा वैसे ही करते रहते हैं जैसे कि वे भारत के किसी अन्य राज्य में करते हैं. भारतीय नेताओं की भारत के ही एक राज्य की यात्रा करने पर आपत्ति व्यक्त करना भारतीय लोगों के तर्क और समझ के परे है.’

बागची ने यह भी कहा, ‘इसके अलावा, जैसा कि हमने पहले भी उल्लेख किया है, भारत-चीन सीमा क्षेत्रों के पश्चिमी भाग में एलएसी के साथ वर्तमान स्थिति चीनी पक्ष द्वारा द्विपक्षीय समझौतों के उल्लंघन के माध्यम से यथास्थिति को बदलने के एकतरफा प्रयासों के कारण उत्पन्न हुई है.’

बागची ने कहा, ‘इसलिए, हम उम्मीद करते हैं कि चीनी पक्ष आपस में असंबंधित मुद्दों को जोड़ने की कोशिश करने के बजाय द्विपक्षीय समझौतों और प्रोटोकॉल का पूरी तरह से पालन करते हुए पूर्वी लद्दाख में एलएसी के साथ शेष मुद्दों के शीघ्र समाधान की दिशा में काम करेगा.’

वह चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन की इन टिप्पणियों पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे कि ‘चीनी सरकार ने ‘भारतीय पक्ष द्वारा एकतरफा और अवैध रूप से स्थापित तथाकथित अरुणाचल प्रदेश’ को कभी भी मान्यता नहीं दी है और संबंधित क्षेत्र में किसी भी भारतीय नेता की यात्रा का कड़ा विरोध करती है.‘

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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