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Saturday, 21 December, 2024
होमदेशअंधेरा घिरते ही कानों में गूंजने लगती है AK-47 की आवाज, दहशत के साये में जी रहे कश्मीर में मारे गए नागरिकों के परिवार

अंधेरा घिरते ही कानों में गूंजने लगती है AK-47 की आवाज, दहशत के साये में जी रहे कश्मीर में मारे गए नागरिकों के परिवार

द रेसिस्टेंस फ्रंट के आतंकियों ने 26 मार्च को इशफाक और उमर डार की हत्या कर दी थी. उनकी मां आज भी उन्हें याद करके रो पड़ती हैं. पिता अब भी उनके लौटने की राह देखते नजर आते हैं, भाइयों के मन में बार-बार सवाल उठता है कि उन्हें गोली क्यों मारी गई.

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श्रीनगर: खिड़की-दरवाजे झटके में बंद हो जाएं, किसी बर्तन के गिरने की आवाज आए या फिर तेज हवा में हिलते पेड़ों की सरसराहट जरा-सी भी तेज हो जाए, तो जान बेगम का कलेजा मुंह को आने लगता है. यह सोचते हुए कि कहीं कोई घर में न घुस आया हो, वो मुख्य द्वार की ओर दौड़ पड़ती हैं.

करीब एक महीने पहले ही 26 मार्च को शाम लगभग 7 बजे बड़गाम के चट्टाबुग गांव में एके-47 से लैस दो आतंकवादी जान बेगम के घर घुस आए और उन्होंने उनके चार बेटों में से दो इशफाक और उमर को अपनी तरफ घसीटा और फिर एकदम सटाकर गोली मार दी. अपने बेटों के खून से लथपथ होकर तड़पने का नजारा रह-रहकर उनकी आंखों से सामने घूम जाता है और शायद ही कोई ऐसा पल होता हो जब उनकी आंखों के आंसू सूखते हों.

जान बेगम कोई मंत्र पढ़ने की तरह लगातार एक ही बात रटती रहती हैं, ‘मैंने खुदाया इंसाफ दें.’

पिछले महीने अपनी जान गंवाने वाले जान बेगम के दो बेटों में से बड़ा मोहम्मद इश्फाक डार (25 वर्ष) एक विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) के तौर पर काम करता था और एक सब-इंस्पेक्टर बनकर जम्मू-कश्मीर पुलिस की रैंक में शामिल होने के लिए परीक्षा की तैयारी कर रहा था. हत्या के अगले ही दिन यानी 27 मार्च को उसकी परीक्षा होनी थी.

छोटा बेटा मोहम्मद उमर डार (22 वर्ष) छात्र था. अपनी पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए वह स्कूलों के पीरिऑडिक टेबल चार्ट की छपाई का छोटा-मोटा काम करता रहता था.

मोहम्मद उमर डार की भतीजी पीरियाडिक टेबल के बगल में खड़ी है, जिसे वह अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए बेचता था | प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

जान बेगम के दो और बेटे हैं, जिसमें एक कांस्टेबल है और दूसरा इन हत्याओं से पहले तक एक एसपीओ था.

परिवार को सरकार से मुआवजे के तौर पर 10 लाख रुपये की राशि मिली है और भाई रमीज राजा, जो पहले एसपीओ था, को कांस्टेबल के पद पर पदोन्नत किया गया है.

कश्मीर घाटी में टारगेट करके हत्या करने का यह कोई अकेला मामला नहीं है. अक्टूबर 2021 से 23 अप्रैल 2022 के बीच यहां आतंकी हमलों में 23 से अधिक नागरिक मारे गए हैं. घाटी में पिछले हफ्ते ही दो नागरिकों की गोली मारकर हत्या की गई थी.

जम्मू-कश्मीर पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, मारे गए 23 नागरिकों में संरपंचों समेत 17 लोग स्थानीय निवासी थे और छह ‘बाहरियों’ में देश के अन्य हिस्सों से आए वो लोग शामिल थे जो खेतों या निर्माण स्थलों में मजदूरों के तौर पर काम करते थे, या दुकानों में हेल्पर आदि थे. पुलिस सूत्रों का कहना है कि इन सभी हत्याओं को लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) की ही एक शाखा द रेसिस्टेंस फ्रंट ने अंजाम दिया है.

‘अंधेरा होते ही छा जाता दहशत का साया’

डार परिवार के लिए हत्याओं की यह घटना एक ऐसी हकीकत है जिसे वे बदल नहीं सकते. जैसे ही रात होती है जान बेगम और उनका परिवार एक अजीब दहशत में घिर जाता है, उनके परिजनों की जान लेने वाली गोलियों की आवाज उनके कानों में गूंजने लगती है.

घर के बाहर बैठे इश्फाक और उमर के पिता गुलाम मोहम्मद डार | प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

परिवार को याद भी नहीं कि जान बेगम के पति और मारे गए युवकों के पिता गुलाम मोहम्मद डार कितने दिनों से सोए नहीं हैं. वे घर के मुख्य द्वार पर एक कोने में बैठकर अपने बेटों के लौटने की प्रतीक्षा करते रहते हैं.

इशफाक और उमर के भाई रमीज राजा ने कहा, ‘हम तो इस घर में सो तक नहीं पाते हैं. जरा-सी आंख लगते ही बुरे सपने आने लगते हैं. हमारे रिश्तेदार रात में यहां आकर हमारे साथ ही सोते हैं क्योंकि थोड़ी-सी भी आवाज हमें डरा देती है. हमारे बाथरूम के दरवाजे, हमारी रसोई में बंदूक की गोलियों के निशान साफ नजर आते हैं.’

गोलियों के निशान की ओर इशारा करते हुए रमीज ने कहा, ‘उन गोलियों की आवाज और चीख-पुकार, आज भी हमारे जेहन में एकदम बसी हुई है…हर रात हमारे कानों में गोलियों की आवाजें गूंजती रहती हैं.’

गोली के निशान की ओर इशारा करते हुए रमीज राजा | प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

परिवार के अभी भी यह पता लगा पाना मुश्किल है कि इन दोनों भाइयों को क्यों निशाना बनाया गया.

रमीज हैरानी के साथ पूछते हैं, ‘इशफाक एक एसपीओ था और माली के तौर पर भी काम करता था. वह स्टेनोग्राफर की परीक्षा की तैयारी के लिए एक साल की छुट्टी पर था. वह जम्मू-कश्मीर पुलिस में सब-इंस्पेक्टर की परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था. वे उसे क्यों मारेंगे?’

वह इश्फाक की किताबें, स्पोर्ट्स सर्टिफिकेट और मेडल आदि दिखाता है, जिसमें कराटे चैंपियनशिप और कलारीपयट्टू (केरल की मार्शल आर्ट) आदि शामिल हैं.

बेहद हताशा के साथ रमीज कहता है, ‘उमर का क्या, उसकी क्या गलती थी? वह तो बस एक छात्र था.’

रमीज और परिवार के लोग इश्फाक के सर्टिफिकेट और मेडल दिखाते हुए | प्रवीण जैन/ दिप्रिंट

उस शाम के बारे में पूछे जाने पर रमीज ने बताया इशफाक काफी ‘बहादुरी से लड़ा’ और यहां तक कि उसने आतंकी के हाथों से हथियार छीनने की कोशिश भी की.

रमीज ने बताया, ‘इशफाक ने पहले खुद को एक कमरे में बंद करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने लात मारकर उसे खोल दिया. फिर उसने उन दोनों आतंकियों पर हमला कर दिया और उनका हथियार छीनने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने उसे लात मारी और उसके चेहरे पर गोली मार दी. फिर वे उमर को घसीटकर गेट तक लाए और मेरी मां के सामने उसे पांच-छह गोलियां मार दीं.’

उसने आगे कहा, ‘उन्होंने (जान बेगम) इस घटना के बाद से चुप्पी ही साध ली है. केवल रो रही है और अल्लाह का नाम ले रही है. मेरे अब्बा भी एकदम शांत हो गए हैं. दो जवान बेटों को इतनी बेरहमी से मारे जाते देखना आसान नहीं है.’

हत्याओं के पीछे रेजिस्टेंस फ्रंट, लश्कर-ए-तैयबा का हाथ

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, अधिकारियों को संदेह है कि रेजिस्टेंस फ्रंट इन हमलों को अंजाम देने के लिए ‘हाइब्रिड आतंकवादियों’ का इस्तेमाल कर रहा है.

जम्मू-कश्मीर पुलिस के कुछ लोगों का मानना है कि लश्कर-ए-तैयबा के आतंकियों को टीआरएफ के गुर्गों के तौर पर संदर्भित किया जाना इन हत्याओं को ‘उग्रवाद’ का नतीजा बताने के पाकिस्तान के प्रयासों का हिस्सा है.

कश्मीर में पुलिस महानिरीक्षक विजय कुमार ने दिप्रिंट को बताते हैं, ‘पाकिस्तान में बैठे आतंकी आका यह दिखाना चाहते हैं कि कश्मीर में एक तरह का उग्रवाद चल रहा है. टीआरएफ और कुछ नहीं बल्कि लश्कर-ए-तैयबा है, लेकिन पाकिस्तान खुद को इन हमलों या हत्याओं से नहीं जोड़ना चाहता. इसलिए, वह इसे एक स्थानीय संगठन के तौर पर सामने लाया है.’

दिप्रिंट को पुलिस के पास से मिला डेटा दर्शाता है, अक्टूबर के बाद से 23 हत्याओं में से सात को ‘हाइब्रिड आतंकियों’ ने अंजाम दिया जबकि 16 अन्य को आतंकवादियों के तौर पर पहचाने गए अन्य लोगों ने.


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‘पाकिस्तान से आईं पिस्तौलें’

पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि इन 23 हमलों में से 16 में आतंकियों ने .313 बुलेट के साथ 9 एमएम पिस्तौल का इस्तेमाल किया. पांच हमलों में एके-47 का इस्तेमाल किया और कम से कम दो मामलों में हथगोला फेंका गया.

आईजीपी कुमार कहते हैं, ‘सभी पिस्तौल पाकिस्तान से आ रही हैं. इन सभी पिस्टल में बनाने वाले के नाम खरोंचकर मिटाया गया है. वे सभी ड्रोन के माध्यम से और सड़क मार्ग से भी छोटे-छोटे बैच में आती हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हाइब्रिड आतंकियों, जिनका हमारे पास कोई रिकॉर्ड नहीं होता, की स्थानीय भर्ती बढ़ रही है और वे ज्यादातर नागरिकों को निशाना बनाने के लिए पिस्तौल का इस्तेमाल कर रहे हैं. कुछ एके-47 भी इस्तेमाल कर रहे हैं.’

जम्मू-कश्मीर पुलिस ने माना है कि नागरिकों की हत्याएं कश्मीर घाटी में सामान्य स्थिति बहाल होने की संभावनाओं के लिए एक बड़ी चुनौती हैं.

कुमार कहते हैं, ‘स्थानीय और बाहरी लोगों समेत निहत्थे पुलिसकर्मियों और छुट्टी के लिए घर पहुंचे कर्मियों जैसे सॉफ्ट टारगेट चुनकर उन पर हमला करना आतंकियों की हताशा को दिखाता है. वे दहशत फैलाना चाहते हैं, सुर्खियां बटोरना चाहते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘चूंकि वे सुरक्षा बलों को निशाना बनाने में असमर्थ हैं, इसलिए नागरिकों को मार रहे हैं. यह निश्चित तौर पर एक चुनौती है और हम इस पर काम कर रहे हैं. मुठभेड़ और ऑपरेशन की संख्या बढ़ी हैं और हम उनसे कड़ाई से निपट रहे हैं.’

‘पूरी ताकत के साथ काबू पा रहे’

हालांकि, तस्वीर गंभीर नजर आ रही है, लेकिन कश्मीर घाटी में तैनात जम्मू-कश्मीर पुलिस और सुरक्षा बल के जवान अपनी पूरी ताकत के साथ आतंकियों पर काबू पाने में जुटे हैं.

सुरक्षा बलों ने पिछले चार महीनों में कश्मीर घाटी में कम से कम 62 आतंकवादियों को मार गिराया है. उनमें से 39 लश्कर के थे और 15 जैश-ए-मोहम्मद, छह हिजबुल मुजाहिदीन और दो अल-बद्र से जुड़े थे.

पुलिस के आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल घाटी में मारे गए आतंकवादियों में से 20 टारगेट किलिंग की घटनाओं में संदिग्ध थे. हमलों के सिलसिले में तीन अन्य को गिरफ्तार भी किया गया है.

आईजीपी कुमार कहते हैं, ‘हम हर दिन अभियान चला रहे हैं. हर दिन कहीं न कहीं कोई मुठभेड़ होती है, जिसका मतलब है कि हम अपनी पूरी ताकत से उन पर काबू पाने में जुटे हैं और उन्हें इसका एहसास है.’

उनका कहा, ‘इन मुठभेड़ों का ही नतीजा है कि किसी भी आतंकी संगठन का कोई बड़ा नेता अब घाटी में नहीं बचा है. मध्य क्रम के कुछ कमांडर बचे हैं, जिन्हें हम जल्द ही पकड़ लेने की उम्मीद करते हैं, अभी, इनमें से अधिकतर आतंकी संगठन छिन्न-भिन्न हो चुके हैं.’

आईजीपी ने आगे कहा, ‘नई भर्ती वाले आतंकी अच्छी तरह प्रशिक्षित नहीं हैं. वे यह सब हताशा में कर रहे हैं. कश्मीर में उन्हें पहले की तरह स्थानीय समर्थन नहीं मिल रहा, और यही बात उन्हें परेशान कर रही है.’

उन्होंने कहा, ‘इन आतंकवादियों को स्थानीय समर्थन काफी कम हो गया है. हमें उम्मीद है कि इस साल के अंत तक घाटी में आतंकवादियों की संख्या भी काफी कमी हो जाएगी.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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