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Saturday, 16 November, 2024
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खुराना, वर्मा, सुषमा, शीला के बाद आया केजरीवाल राज, अबकी बार दिल्ली का ताज किसके सिर सजेगा

2013 के चुनाव में शीला दीक्षित को केजरीवाल के हाथों मुंह की खानी पड़ी. हालांकि, केजरीवाल जिस कांग्रेस के ख़िलाफ़ लड़े उसी के साथ गठबंधन करके पहली सरकार बनाई.

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नई दिल्ली: देश की राजधानी दिल्ली में पहली बार विधानसभा चुनाव 1993 में हुए. इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की जीत हुई. जीत के बाद राज्य की कमान मदन लाल खुराना के हाथों में दी गई. बंटवारे के दौरान पाकिस्तान के ल्यालपुर से भारत आए ख़ुराना ने अपने राजनीतिक करियर के दौरान दिल्ली को राज्य बनाने की मुहिम को भी बल देने का काम किया था.

राजधानी को राज्य बनाए जाने के बाद के पहले चुनाव में खुराना ने कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ कर दिया. इस चुनाव में भाजपा को 70 में से 49 सीटें हासिल हुई थीं. इसी चुनाव में कांग्रेस को 14, जनता दल को 4 और अन्य को तीन सीटें मिली थीं.

अपने पहले बजट में खुराना ने दिल्ली मेट्रो से जुड़ी सबसे पहली शुरुआत करते हुए इसे डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट के लिए पैसे जारी किए. एक चुनौतीपूर्ण कार्यकाल संभालने वाले खुराना पर जैन हवाला कांड में चार्जशीट होने के बाद 10 फरवरी 1996 को सीएम पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा.

हालांकि, खुराना चाहते थे कि उनके करीबी हर्षवर्धन अगले सीएम बनें लेकिन उनके इस्तीफ़े के बाद विधायक दल के समर्थन से साहिब सिंह वर्मा 26 फरवरी 1996 को दिल्ली के दूसरे मुख्यमंत्री बने. हालांकि, प्याज़ की महंगी कीमतों और अन्य वजहों से दिल्ली के अगले यानी 1998 वाले चुनाव से करीब 50 दिन पहले वर्मा को भी सीएम पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा.

सीएम बनने से पहले खुराना सरकार में वर्मा ठीक उसी तरह से नंबर दो थे जैसे अभी अरविंद केजरीवाल सरकार में मनीष सिसोदिया हैं. तब वो शिक्षा मंत्री थे. हालांकि, उनके इस्तीफ़े के बाद 12 अक्टूबर 1998 को सुषमा स्वराज को दिल्ली का सीएम बनाया गया.


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ये सारे प्रयोग भाजपा को नागवार गुज़रे और 1998 के चुनाव में पार्टी औंधे मुंह गिर गई. इस चुनाव में पार्टी महज़ 15 सीटें पा सकी. इसके बाद शीला दीक्षित के नेतृत्व में जो कांग्रेस की सरकार बनी वो अगले 15 सालों तक कायम रही. हालांकि, इन 15 सालों में आख़िरी कार्यकाल शीला के लिए काफ़ी उठा-पटक भरा रहा.

2010 में कॉमनवेल्थ खेल धूमधाम से तो बीत गए, लेकिन इसके बाद हुए कथित जनलोकपाल आंदोलन के दौरान जब कांग्रेस पर देशभर के तमाम भ्रष्टाचार के आरोप लगे तब शीला पर भी इस खेल के आयोजन में भ्रष्टाचार के आरोप लगे. ऐसे आरोपों के साथ नवंबर 2012 में बनी आम आदमी पार्टी (आप) ने 2013 का विधानसभा चुनाव लड़ा.

इस चुनाव में शीला दीक्षित को अरविंद केजरीवाल से मुंह की खानी पड़ी. हालांकि, केजरीवाल जिस कांग्रेस के ख़िलाफ़ लड़े उसी के साथ गठबंधन करके पहली सरकार बनाई और सीएम की कुर्सी हासिल की. इस चुनाव में भाजपा को 32, आप को 28, कांग्रेस 8, जेडीयू को 1 और शिरोमणी अकाली दल को 1 सीट हासिल हुई थी.

जनता की सहमति का हवाला देते हुए केजरीवाल ने कांग्रेस संग सरकार बना ली. लेकिन जनलोकपाल को पास होने से रोकने को लेकर हो रही राजनीति का हवाला देते हुए 49 दिन बाद इस्तीफ़ा दे दिया और सरकार गिर गई. हालांकि, इसके बाद जनलोकपाल पास करवाने के बजाए वो 2014 का आम चुनाव लड़ने निकल पड़े.

इन चुनाव में वो बनारस से नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ बुरी तरह से हारे. 400 से ज़्यादा सीटों पर लड़ रही उनकी पार्टी का ऐसा बुरा हाल हुआ कि ये महज़ 4 सीटें जीत पाई. 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में आप ने दिल्ली में अपनी जान लगा दी और ‘पांच साल केजरीवाल’ जैसे नारा दिया जो लोगों के मुंह पर बैठ गया.

इस चुनाव में पार्टी की ऐसी आंधी आई कि राजधानी की 70 में 67 सीटें बटोर ले गई. जिस कांग्रेस के साथ 2013 में आप ने सरकार चलाई थी उसका सूपड़ा साफ़ कर दिया और भाजपा को तीन सीटों पर समेट दिया. पार्टी ने केंद्र के साथ उठा-पटक और खींचतान के बीच पांच साल का कार्यकाल पूरा कर लिया.


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2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए शनिवार यानी आठ फरवरी को वोट पड़ने है. सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि क्या अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी पिछले दो बार की तरह इस बार भी अपना करिश्मा दोहरा पाएंगे या देश की राजधानी में भाजपा के दो दशक से ज़्यादा का सूखा समाप्त होगा.

इन सबके बीच कांग्रेस को लेकर कोई ख़ासी उम्मीद नहीं है क्योंकि एक तरफ जहां भाजपा के पास सीएम पद का चेहरा नहीं है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस के पास तो नेतृत्व करने लायक चेहरा भी नहीं है. ऐसे में 11 फ़रवरी को आने वाले नतीजे बेहद दिलचस्प होने वाले हैं.

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