(सप्तऋषि बनर्जी)
कोलकाता, 10 सितंबर (भाषा) दुर्गा पूजा से तीन महीने पहले केंद्र द्वारा थर्मोकॉल (पॉलीस्टीरिन) पर प्रतिबंध लगाये जाने से पश्चिम बंगाल में कलाकार अजीब स्थिति में फंस गये हैं क्योंकि वे लंबे समय से पंडालों को सजाने और मूर्तियों के आभूषणों व अलंकरण के लिए इस उत्पाद का इस्तेमाल कर रहे हैं।
कलाकारों का मानना है कि बेहतर होता कि सरकार इस उत्पाद के पर्यावरण पर दुष्प्रभावों को लेकर उनके बीच जागरुकता अभियान चलाती और उन्हें इसका विकल्प तलाशने के लिए कुछ समय देती।
भारत सरकार ने एक जुलाई को पॉलीस्टीरिन के अलावा प्लेट्स, कप, स्ट्रा जैसे एकल उपयोग वाले चिह्नित किए गए प्लास्टिक उत्पादों के विनिर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री एवं उपयोग पर पाबंदी लगा दी थी।
थर्मोकॉल एक सिंथेटिक पॉलीमर है जिसका अक्सर सुरक्षित पैकेजिंग, तापावरोधन एवं चीजों को सजाने में उपयोग किया जाता है। लेकिन यह जैविक रूप से अपघटनीय नहीं होता है, इसलिए यह पर्यावरण के अनुकूल नहीं होता है।
अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त शिल्पकार सनातन डिंडा ने इस कदम का स्वागत किया लेकिन कहा कि कलाकारों को इस बदलाव के लिए वक्त दिया जाना चाहिए था।
उन्होंने कहा, ‘‘ ज्यादातर लोग थर्मोकॉल आधारित सजावट करते हैं। उन्हें पहले प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए था और फिर यह पाबंदी लगायी जानी चाहिए थी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैं पहले थर्मोकॉल का उपयोग करता था लेकिन मैंने इसे काफी पहले छोड़ दिया । इस साल की पूजा में मैं अपने काम के लिए लोहे, कागज ,अलग तरह के चूना, फाइबर ग्लास का उपयोग कर रहा हूं।’’
कलाकार प्रदीप दास ने सरकार के निर्णय का स्वागत किया। उन्होंने कहा, ‘‘ सरकार को अवश्य यह सुनिश्चित करना चाहिए कि थर्मोकॉल का विनिर्माण न हो। यह यह बाजार में उपलब्ध ही नहीं होगा तो लोग उसका उपयोग कर ही नहीं पायेंगे।’’
हर साल अधिकांश पूजा आयोजक किसी विषय खासकर सामाजिक मुद्दे का चयन करते हैं और अपने पंडालों, मूर्तियों और प्रकाश व्यवस्था के जरिये इसे (विषय को) चित्रित करते हैं।
पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष कल्याण रूद्र ने कहा कि सभी को भारत सरकार के नियमों का पालन करना ही होगा।
थर्मोकॉल के जरिये मूर्तियों के आभूषण तैयार करने व अन्य उपयोगी चीजें बनाने वाले कलाकार रंजीत सरकार ने कहा, ‘‘ हमें अब थर्मोकॉल के अलावा अन्य सामग्रियों के बारे में सोचना होगा। सरकार को बहुत पहले इसके बारे में सोचना चाहिए था। इस पाबंदी से कई लोग प्रभावित होंगे और अन्य सामग्री की ओर बढ़ने में वक्त लगेगा।’’
भाषा राजकुमार पवनेश
पवनेश
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