नयी दिल्ली, पांच मई (भाषा) शीर्ष अदालत के एक न्यायाधीश ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत उच्चतम न्यायालय में जाने के नागरिक के अधिकार को इतना महत्व दिया गया है क्योंकि राज्य को अगर बिना नियंत्रण और संतुलन के छोड़ दिया जाता है, तो उनके “अत्याचारी संस्था” बनने का अंदेशा है जो लोगों को मिले नागरिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को ले सकती है।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश कृष्ण मुरारी ने एक मामले में खंडित फैसला सुनाते हुए ये टिप्पणियां कीं। मामले में यह सवाल उठा कि क्या कोई व्यक्ति सीमा शुल्क अधिनियम के तहत विवाद के निपटारे के लिए अनुच्छेद 32 के तहत शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।
अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में व्यक्तियों को न्याय के लिए उच्चतम न्यायालय जाने का अधिकार देता है।
पीठ के दूसरे न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय करोल, न्यायमूर्ति मुरारी से असहमत थे। उन्होंने कहा कि शीर्ष अदालत से संपर्क करने के अधिकार का सहारा लेने की अनुमति केवल वहीं दी जा सकती है जहां किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया गया हो। उन्होंने कहा, वर्तमान मामले में, ऐसा कोई उल्लंघन नहीं किया गया था और अन्य वैधानिक उपचार उपलब्ध थे।
पीठ ने दोनों न्यायाधीशों के बीच मतभेद को देखते हुए रजिस्ट्री को उचित आदेश के लिए मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति मुरारी ने कहा कि अनुच्छेद 32 के तहत दायर रिट याचिका, भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दी गई व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बड़े महत्व का मुद्दा उठाती है, जो सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 के तहत सीमा शुल्क अधिनियम के प्रावधान के जरिये ही विवाद को निपटाने के लिए एक आरोपी के अधिकार के संबंध में है।
इस मामले में एक अनिवासी भारतीय (एनआरआई) से संबद्ध है जिसे चार अक्टूबर, 2022 को दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सीमा शुल्क का भुगतान करने से बचने के लिए कथित तौर पर ‘ग्रीन चैनल’ के माध्यम से उच्च मूल्य के सामान, मुख्य रूप से घड़ियों की तस्करी करने की कोशिश करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
गिरफ्तारी के बाद एनआरआई ने घर के बने खाने की मांग को लेकर याचिका दायर की। एनआरआई ने एक आवेदन भी दायर किया जिसमें निपटान आयोग को निपटान की कार्यवाही शुरू करने का निर्देश देने की मांग की गई क्योंकि वह अक्टूबर, 2022 के बाद भारत से बाहर यात्रा करने में असमर्थ था।
सीमा शुल्क विभाग ने इस आधार पर रिट याचिका को बरकरार रखने के संबंध में प्रारंभिक आपत्तियां उठाईं कि कानून के तहत याचिकाकर्ता के लिए अन्य वैधानिक उपाय उपलब्ध थे।
अनुच्छेद 32 की प्रयोज्यता से निपटते हुए, न्यायमूर्ति मुरारी ने कहा, “अनुच्छेद 32 को इतना महत्व देने का कारण यह है कि राज्य को एक अंग के रूप में, अगर बिना जांच और संतुलन के छोड़ दिया जाए, तो उसमें एक निरंकुश संस्था बनने की क्षमता है जो अपने लोगों की नागरिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को हल्के में ले सकती है”।
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