नयी दिल्ली, 20 अप्रैल (भाषा) हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा घाटी में लगभग 100 साल पुराने कई रेलवे स्टेशन पर 1929 में उनकी स्थापना के बाद से ट्रेन परिचालन में इस्तेमाल हुए पुरातन उपकरणों और कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है।
इस प्रदर्शनी का आयोजन 18 अप्रैल को मनाए जाने वाले विश्व धरोहर दिवस के उपलक्ष्य में 14 से 20 अप्रैल तक किया गया।
कांगड़ा, पालमपुर और पठानकोट जैसे स्टेशन पर कई कार्यक्रम आयोजित किए गए। इस प्रदर्शनी के दौरान रात्रिकालीन सिग्नल प्रणाली के लिए लालटेन, ‘लेवल क्रॉसिंग’ पर लालटेन, पहिया फिसलने से रोकने के लिए ‘स्किप’ उपकरण और ट्रेन संचालन में इस्तेमाल किए जाने वाले कई अन्य उपकरणों समेत दुर्लभ उपकरणों को प्रदर्शित किया गया।
वरिष्ठ मंडल यांत्रिक अभियंता भूपेंद्र ने कहा, ‘‘इस दौरान फिरोजपुर मंडल ने पठानकोट स्टेशन पर विरासत से जुड़ी कलाकृतियों की प्रदर्शनी, पालमपुर स्टेशन पर विरासत गलियारा, कांगड़ा स्टेशन पर रोशनी का प्रबंध, नूरपुर और बैजनाथ के बीच चलने वाली ‘नैरो-गेज’ ट्रेन की सजावट, फिरोजपुर स्टेशन और मंडल कार्यालय के पास विरासत से जुड़ी वस्तुओं के विवरण के साथ ‘सेल्फी प्वाइंट’ की स्थापना की गई।’’
उन्होंने बताया कि मंडल कार्यालय में विरासत से संबंधित चित्रकला और प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताएं भी आयोजित की गईं।
अधिकारियों ने बताया कि पठानकोट से शुरू होकर जोगिंदर नगर में समाप्त होने वाली 164 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन अपनी प्राकृतिक सुंदरता, पर्यटन स्थलों और धार्मिक स्थलों के लिए प्रसिद्ध है।
रेलवे के एक अधिकारी ने कहा, ‘‘1929 में 2.96 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से जब ट्रेन परिचालन शुरू हुआ था तब कांगड़ा घाटी रेलवे उत्तर पश्चिमी रेलवे जोन के लाहौर खंड का हिस्सा थी।’’
भाषा सिम्मी शोभना
शोभना
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