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Friday, 22 November, 2024
होमडिफेंसमेजर को कश्मीर में मिला एक दोस्त, बोलने-सुनने में अक्षम इस किशोर की पढ़ाई की जिम्मेदारी उठाई

मेजर को कश्मीर में मिला एक दोस्त, बोलने-सुनने में अक्षम इस किशोर की पढ़ाई की जिम्मेदारी उठाई

मेजर कमलेश मणि ने बताया कि चंजमुला में नियमित गश्त के दौरान वह 16 साल के गौहर मीर से मिले. मीर नौ सदस्यों वाले एक ऐसे बड़े परिवार से आता है, जहां चार लोग सुन या बोल नहीं सकते.

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नई दिल्ली: चार महीने पहले मेजर कमलेश मणि कश्मीर के चंजमुला गांव में सामान्य गश्त पर निकले थे, जब उनकी मुलाकात 16 साल के एक मिलनसार किशोर से हुई. मणि ने उसे चॉकलेट का एक टुकड़ा थमाया और यहीं से मणि और किशोर के बीच दोस्ती की नींव पड़ गई. इसी गांव का रहने वाला गौहर मीर पैदाइशी बोलने और सुनने में अक्षम है.

मेजर मणि अब इस किशोर की पढ़ाई-लिखाई का इंतजाम करते हैं. उन्होंने उसे एक स्मार्ट फोन भी खरीद कर दिया है ताकि दोनों के बीच लगातार संपर्क बना रहे.

मेजर मणि ने दिप्रिंट को बताया, ‘दो-चार बार मुझसे मिलने के बाद वह मेरे साथ हमारे सैन्य शिविर में भी आया था. मैंने उसे एक जोड़ी जूते उपहार में दिए और हमारे बीच रिश्ता गहरा हो गया. अगले दिन वह मेरे लिए एक पेटी सेब लेकर आया. मैं उस समय वहां नहीं था, लेकिन जब वापस लौटा तो वह ‘हाय’ कहने के लिए भागकर आया और इसके बाद ही कुछ खाने को राजी हुआ.’

मीर नौ सदस्यों के एक बड़े परिवार से आता है, जिनमें चार लोग सुन या बोल नहीं सकते.

मणि ने बताया, ‘उसके परिवार से मिलने के बाद मैंने उसकी (मीर की) पढ़ाई-लिखाई का खर्च उठाने का फैसला किया और जरूरत पड़ने पर चिकित्सा खर्च के भुगतान का भी फैसला किया. परिवार बहुत भावुक हो गया था, लेकिन वे इस बात से काफी खुश थे कि कोई उनकी मदद करना चाहता है.’


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मणि ने आगे बताया कि मीर को पहले बारामूला के एक स्कूल में भर्ती कराया गया था कि लेकिन वहां इसलिए नाखुश था क्योंकि शिक्षक उसे पीटेंगे. मेजर ने अब उसे हंदवाड़ा के एक स्कूल में दाखिल कराया है जहां विशेष जरूरत वाले बच्चों के लिए एक शिक्षक उपलब्ध है और उन्होंने उसकी किताबों, यूनिफॉर्म और ट्यूशन के लिए भुगतान किया. मीर वर्तमान में कक्षा 9 में है.

मणि ने कहा, ‘परिवार ने मुझे उसके इलाज के लिए जरूरी होने पर कहीं पर भी ले जाने की सहमति दे दी है. उसे 70 फीसदी दिव्यांग पाया गया है इसलिए उसके सुनने में सक्षम हो पाने की संभावना बहुत कम है, लेकिन मैंने चेक-अप के लिए जाने पर उसे दिल्ली ले जाने का वादा किया है.’

‘कोई आशंका नहीं’

मीर का गांव इस साल मई से सुर्खियों में आया था, जब आतंकियों के साथ मुठभेड़ में एक कर्नल, एक मेजर और तीन अन्य सुरक्षाकर्मी मारे गए थे. मुठभेड़ में दो आतंकवादी भी मारे गए थे. कश्मीर में हिंसा के दौर के कारण यह क्षेत्र वर्षों से व्यापक सुरक्षा घेरे में रहा है, यह स्थानीय निवासियों में बेचैनी का एक बड़ा कारण भी रहा है.

हालांकि, मेजर मणि ने माना कि मीर के साथ दोस्ती करने में उन्हें कोई हिचक नहीं हुई थी. ‘किसी तरह की कोई आशंका नहीं थी. चंजमुला के लोग काफी मददगार हैं.’

उन्होंने कहा, ‘उनकी पहल एक छोटा कदम है और आशा है कि लोगों की मानसिकता बदलने वाला साबित होगा.’

मेजर मणि को दिसंबर 2013 में कमीशंड हुए थे और 21 राष्ट्रीय राइफल्स रेजिमेंट के साथ एक वर्ष से चंजमुला में तैनात हैं. वह मिलिट्री स्कूल बेंगलुरु के छात्र रहे हैं और उन्होंने पुणे स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खडकवासला में प्रशिक्षण लिया था.

2013 में उन्हें भारतीय सैन्य अकादमी में राष्ट्रपति के स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया. मणि ने बताया कि उन्होंने यह पदक ‘सम्मान स्वरूप’ अपने स्कूल को प्रदान कर दिया था.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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