नयी दिल्ली, एक जुलाई (भाषा) थलसेना प्रमुख जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने मंगलवार को भूटान के सैन्य प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल बातू शेरिंग के साथ व्यापक बातचीत की। यह चर्चा क्षेत्र में चीन की सैन्य आक्रामकता की पृष्ठभूमि में द्विपक्षीय रक्षा सहयोग को और मजबूत करने के तरीकों पर केंद्रित रही।
जनरल उपेन्द्र द्विवेदी ने सोमवार को भूटान की अपनी चार-दिवसीय यात्रा की शुरुआत की थी।
भारतीय सेना के अनुसार, थलसेना प्रमुख ने रॉयल भूटान आर्मी के चीफ ऑपरेशंस ऑफिसर लेफ्टिनेंट जनरल बातू शेरिंग के साथ बैठक की, जिसमें सैन्य संबंधों को और मजबूत करने और रणनीतिक रक्षा सहयोग को और गहरा करने पर चर्चा हुई।
जनरल उपेन्द्र द्विवेदी की भूटान यात्रा बदलते क्षेत्रीय सुरक्षा परिदृश्य के बीच और पाकिस्तानी क्षेत्रों में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाने वाले भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के करीब सात हफ्ते बाद हुई है। वह भूटान में तैनात भारतीय सैन्य प्रशिक्षण दल (आईएमटीआरएटी) के वरिष्ठ अधिकारियों से भी मुलाकात करेंगे।
आईएमटीआरएटी रॉयल भूटान आर्मी की सैन्य क्षमताओं को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
ऐसा समझा जाता है कि जनरल उपेन्द्र द्विवेदी और लेफ्टिनेंट जनरल बातू शेरिंग के बीच हुई वार्ता में डोकलाम पठार की समग्र स्थिति तथा क्षेत्र में चीन की गतिविधियों पर भी चर्चा हुई।
भारत और भूटान के बीच रणनीतिक संबंध पिछले कुछ वर्षों में लगातार मजबूत हुए हैं, विशेष रूप से 2017 में डोकलाम ‘ट्राई-जंक्शन’ में भारतीय और चीनी सेनाओं के 73 दिनों तक आमने-सामने रहने के बाद।
डोकलाम पठार को भारत के सामरिक हितों के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र माना जाता है। वर्ष 2017 में डोकलाम ‘ट्राई-जंक्शन’ क्षेत्र में तनाव तब शुरू हुआ जब चीन ने उस इलाके में सड़क निर्माण का प्रयास किया, जिसे भूटान अपना क्षेत्र मानता है।
भारत ने इस निर्माण का कड़ा विरोध किया, क्योंकि यह उसके समग्र सुरक्षा हितों को प्रभावित कर सकता था।
डोकलाम पठार में भारत और चीन की सेनाओं के आमने सामने आने से दो पड़ोसी देशों के बीच बड़े संघर्ष की आशंका भी उत्पन्न हो गई थी। भूटान ने कहा था कि यह क्षेत्र उसका है और भारत ने भूटान के दावे का समर्थन किया था। यह गतिरोध कई दौर की वार्ताओं के बाद सुलझाया गया था।
भूटान की चीन के साथ 400 किलोमीटर से अधिक लंबी सीमा लगती है और दोनों देशों ने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए कई चरणों में बातचीत की है।
चीन और भूटान लंबे समय से चले आ रहे सीमा विवाद का शीघ्र समाधान खोजने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, जिसका भारत की सुरक्षा हितों, खासकर डोकलाम ‘ट्राई-जंक्शन’ क्षेत्र, पर संभावित असर पड़ सकता है।
वर्ष 2023 के अंत में भूटान के तत्कालीन विदेश मंत्री टांडी दोरजी ने बीजिंग में अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात की थी।
इस बैठक पर जारी चीनी बयान में कहा गया कि भूटान ‘वन चाइना पॉलिसी’ का दृढ़ता से पालन करता है और सीमा विवाद के शीघ्र समाधान के लिए चीन के साथ मिलकर काम करने को तैयार है।
नयी दिल्ली इस विवाद को लेकर भूटान और चीन के बीच जारी वार्ताओं पर करीबी नजर रखे हुए है, क्योंकि इसका भारत की सुरक्षा रणनीति, विशेषकर डोकलाम जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में, सीधा प्रभाव हो सकता है।
चीन और भूटान ने अपने सीमा विवाद को सुलझाने के लिए ‘तीन-चरणीय रूपरेखा’ को तेजी से लागू करने और एकसाथ कदम उठाने पर सहमति जताई है।
दोनों देशों ने इस तीन-चरणीय योजना पर अक्टूबर 2021 में औपचारिक समझौता किया था, ताकि सीमा विवाद पर तेजी से बातचीत और समाधान की दिशा में काम किया जा सके।
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अमित सुरेश
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