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Friday, 22 November, 2024
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क्या आम के मौसम के आने का इंतजार कर रहे हैं? हमारे पास कुछ बुरी खबरें हैं

बढ़ते तापमान और कम बारिश ने भारत में आम के उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया है. पिछले साल गुजरात में आम की जिस दस किलो की पेटी की कीमत 400-600 रुपये थी, आज वही पेटी 1,100-1,450 रुपये में बिक रही है.

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नई दिल्ली: ‘फलों के राजा’ आम का खास स्वाद पाने के लिए हम और आप बेसब्री से गर्मी के मौसम का इंतजार करते हैं. लेकिन इस बार आपका ये इंतजार थोड़ा ‘महंगा’ होने वाला है. दरअसल मौसम में आए बदलाव के कारण देशभर में उत्पादन और गुणवत्ता में बड़ी गिरावट देखी गई है. कम उत्पादन की वजह से इस साल स्वादिष्ट फल की कीमत में 60 प्रतिशत तक उछाल आने की संभावना जताई जा रही है.

कृषि वैज्ञानिकों ने दिप्रिंट ने कहा कि बढ़ते तापमान, कम बारिश और जलवायु परिवर्तन के चलते पिछले एक साल में आम की फसल के उत्पादन में 30 प्रतिशत की कमी आई है. उन्होंने कहा कि आने वाले कुछ सालों में उत्पादन में और 25 से 30 प्रतिशत की कमी आने की संभावना है.

आम के उत्पादन को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों में कीट के हमले और चक्रवात तौकते के बाद का प्रभाव भी रहा. पिछले साल मई में गुजरात और महाराष्ट्र के पश्चिमी-तट वाले राज्यों पर इस चक्रवात ने तबाही मचाई थी.

चार राज्यों के किसानों और व्यापारियों ने दिप्रिंट को बताया कि जबकि गुजरात, बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे आम उत्पादक राज्यों में इस साल कुछ अनुमानों के मुताबिक उपज अपनी सामान्य उत्पादन क्षमता के 20 प्रतिशत तक गिर गई है. महाराष्ट्र ने एक छोटा लेकिन सफल मौसम देखा है, लेकिन आमों की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ है.

ताजा सब्जियों और फलों के निर्यात को बढ़ावा देने वाली सरकारी एजेंसी एग्रीकल्चरल एंड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) के अनुसार, भारत सालाना लगभग 15.03 मिलियन टन आम का उत्पादन करता है.

देश के प्रमुख आम उत्पादक राज्य यूपी (23.86 फीसदी), आंध्र प्रदेश (22.14 फीसदी), कर्नाटक (11.71 फीसदी), बिहार (8.79 फीसदी), गुजरात (6 फीसदी) और तमिलनाडु (5.09 फीसदी) हैं.

आमतौर पर रेनफेड एरिया में जुलाई-अगस्त में और सिंचित क्षेत्रों में फरवरी-मार्च में रोपण किया जाता है. भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में वर्षा ऋतु के अंत में रोपण किया जाता है.

भारत आमों का एक प्रमुख निर्यातक भी है जो विश्व के कुल उत्पादन में 40.48 प्रतिशत का योगदान देता है. APEDA के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने 2020-21 में 21,000 मीट्रिक टन (MT) ताजे आमों का निर्यात किया था जिसकी कीमत 271 करोड़ रुपये से ज्यादा है.


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400-600 रुपये में मिलने वाली आम की पेटी की कीमत 1,100-1,450 रुपये

गुजरात में आम के बाग के मालिक विमल कानाबर ने दिप्रिंट को बताया कि आम की केसर किस्म के लिए यह दो दशकों में सबसे खराब साल रहा है. केसर की फसल मुख्य रूप से जूनागढ़, गिर-सोमनाथ और अमरेली जिलों में उगाई जाती है.

वह आगे कहते है, ‘26 अप्रैल से स्थानीय मंडियों में आमों की नीलामी चल रही है. मौसम की शुरुआत आमतौर पर प्रति दिन लगभग 40,000-60,000 आम की पेटियों के आने से होती थी. लेकिन इस साल भीषण गर्मी के दिनों में हमें सिर्फ 5,000 बॉक्स ही मिल रहे हैं.’

कानाबर ने कहा, ‘नीलामी के पहले दिन हमारे पास केवल 3,850 आम की पेटी आई थी. एक पेटी का वजन 10 किलो है और इस साल इसकी कीमत 1,100 रुपये से लेकर 1,450 रुपये प्रति पेटी के बीच है. पिछले साल तक हमने इन पेटियों को 400-600 रुपये में बेचा था.’

यह आमों के छोटे फूल चक्र के कारण हुआ है, जो तापमान में अप्रत्याशित परिवर्तन से प्रभावित रहा.

भारत से निर्यात किए जाने वाले आम में केसर की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत है. केसर पर चक्रवात तौकते का प्रभाव अभी तक बना हुआ है. कानाबर ने बताया, ‘पिछले साल तलाला-गिर बेल्ट समेत आम के लगभग 70 प्रतिशत पेड़ चक्रवात में बर्बाद हो गए थे. इस साल जो पेड़ बचे हैं उन्होंने केवल 20 प्रतिशत तक बहुत ही कम उपज दी है.’

बिहार के भागलपुर में अशोक चौधरी के 12 एकड़ के आम के खेत हैं. उनकी कहानी भी कुछ ऐसी ही है. वह कहते हैं, ‘फसल को तेज गर्मी और कीड़ों के दोहरे प्रकोप का सामना करना पड़ा है. अगर इस हफ्ते बारिश नहीं हुई तो कीड़ों के कारण हमारी सारी फसल बर्बाद हो जाएगी.

चौधरी बिहार मैंगो ग्रोअर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं, उन्होंने कहा कि पेड़ों पर कीट का हमला ऐसे समय में हुआ है जब किसान आमतौर पर पेड़ों से फल तोड़ते हैं. इस समय पर वे कीटनाशक का इस्तेमाल भी नहीं कर सकते.

उत्तर प्रदेश के मलिहाबाद में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित हाजी कलीमुल्लाह खान को ‘मैंगो मैन’ के नाम से भी जाना जाता है. वह दशहरी और लंगड़ा सहित आम की कुछ सबसे लोकप्रिय किस्मों को उगाने के लिए प्रसिद्ध है. वह कहते हैं, ‘इस साल स्थिति इतनी खराब है कि अगर 100 आम के पेड़ हैं, तो बस 10-12 पर ही फल लगे हैं.’

खान के बेटे लज़ीमुल्लाह भी एक आम उत्पादक हैं. उन्होंने दिप्रिंट को बताया ‘आम की कीमत लगभग 60 प्रतिशत तक बढ़ने की उम्मीद है.’

नवी मुंबई के वाशी में एपीएमसी थोक बाजार के एक व्यापारी ने दिप्रिंट को बताया कि महाराष्ट्र में किसान फल मक्खियों से अपनी उपज खराब होने की शिकायत कर रहे हैं.

उन्होंने कहा ‘अंदर से सड़े हुए आमों की संख्या में 20 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. उनकी रिपलेसमेंट कॉस्ट ने प्रति बॉक्स उत्पाद की अंतिम लागत में बढ़ोत्तरी कर दी है.’

जलवायु परिवर्तन कैसे बना एक बड़ा कारण

बिहार कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और मुख्य वैज्ञानिक एम. फ़ेज़ा अहमद ने दिप्रिंट को बताया कि इस साल जलवायु परिवर्तन का प्रभाव चरम पर रहा है.

उन्होंने कहा, ‘जब पेड़ पर फूल लगे हुए थे तो मौसम बहुत ठंडा था. पेड़ पर फल लगने का समय आया तो लगभग दो सप्ताह तक मौसम में उतार-चढ़ाव होता रहा. अचानक मौसम बहुत गर्म हो जाने की वजह से आम ज्यादा पककर पेड़ों से गिरने लगे. इन सभी कारकों ने फसल उत्पादन को प्रभावित किया और इसे 30 प्रतिशत तक कम कर दिया.’

उन्होंने आगे कहा कि मार्च में ही मौसम बहुत गर्म हो गया था और आम के पेड़ों पर रेड-बैंडेड मैंगो कैटरपिलर (वैज्ञानिक नाम डीनोलिस सब्लिम्बालिस) नामक कीट ने हमला कर दिया. इसने बचे हुए फलों पर असर डाला और वे भी पेड़ों से गिरना शुरू हो गए.

उत्तर प्रदेश के आम किसान और मैंगो ग्रोवर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष इसराम अली ने उत्पादन में गिरावट के लिए बाहरी कारकों को जिम्मेदार ठहराया.

उन्होंने कहा, ‘बाजार में नकली कीटनाशक मिल रहे हैं. इस वजह से किसानों को अपनी फसल पर रसायनों की ज्यादा मात्रा का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर होना पड़ता है. आम के उत्पादन के लिए हमें और कृषि विशेषज्ञों की जरूरत है.’

अली के मुताबिक, जहां यूपी ने पिछले साल करीब 40 लाख मीट्रिक टन आम का उत्पादन किया था वहीं इस साल उन्हें 10-12 लाख मीट्रिक टन की भी उम्मीद नहीं है.

बिक्री और निर्यात

व्यापारियों के अनुसार, आम की बिक्री पर चक्रवात तौकते का अनुमानित प्रभाव 500 करोड़ रुपये से अधिक था. यह कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान मांग में गिरावट के कारण हुए नुकसान के अतिरिक्त था.

इस साल आम व्यापारियों और निर्यातकों की हालत और खराब होती दिख रही है.

मैंगो ग्रोवर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अली ने कहा कि मालदा और जर्दालू जैसी लोकप्रिय आम की किस्मों का थोक मूल्य पिछले साल 20-30 रुपये प्रति किलोग्राम था, जो इस साल 30-40 रुपये प्रति किलोग्राम तक जाने की उम्मीद है. वह कहते हैं, ‘इसका मतलब है कि जब आम अंत में उपभोक्ता तक पहुंचेंगे, तो कीमत 100 रुपए प्रति किलो से ज्यादा होगी’

‘बहुत से निर्यातक सीधे खेतों में निवेश करते हैं. लेकिन पेड़ों पर फल नहीं लगने के कारण इस साल उन्होंने लाखों का निवेश गवां दिया है. हालांकि हम जून से आमों का निर्यात शुरू कर देंगे, लेकिन हमें उम्मीद है कि इस साल उनकी कीमतें 20 फीसदी तक बढ़ जाएंगी.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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