नई दिल्ली: सोशल मीडिया तेज़ी से पाठकों और मीडिया के बीच एक पुल का काम कर रहा है. हालांकि, यह एक प्रकार का युद्धक्षेत्र भी बन गया है जहां पत्रकारों को अक्सर न केवल उनके काम के बारे में बल्कि भारतीय होने की उनकी पहचान के बारे में भी सवालों का सामना करना पड़ता है.
यह एक ऐसा सवाल है जो द हिंदू की उप संपादक सुहासिनी हैदर से एक्स पर बार-बार पूछा जाता है. “मैं यह कह कर जवाब देती हूं कि मैं एक भारतीय हूं और एक पत्रकार होने के नाते मेरा यही काम है. एक भारतीय होने की आपकी पहचान से यह उम्मीद की जाती है कि इसमें अन्य सभी पहचान शामिल हों, जिसमें आप क्या करते हैं.”
हैदर शुक्रवार को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित एक दिवसीय कार्यक्रम एडिटर्स गिल्ड कॉन्क्लेव में एक पैनल चर्चा के दौरान बोल रहीं थीं. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया प्रेस की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए समर्पित एक संगठन है.
कॉन्क्लेव में चर्चा किए गए प्रमुख मुद्दों में गलत सूचना का प्रसार, लोकतंत्र, डिजिटल युग में चुनौतियां, राष्ट्रवाद और प्रचार शामिल थे.
राष्ट्रवाद और देशभक्ति के बीच की रेखा कैसे धुंधली हो गई है, इस बारे में बोलते हुए हैदर ने बताया कि इन दोनों शब्दों का क्या मतलब है. उन्होंने कहा, “देशभक्ति का मतलब है कि आप अपने देश से प्यार करते हैं जो वो करता है और राष्ट्रवाद का मतलब है कि आपको अपने देश पर गर्व है चाहे वो कुछ भी करे. दूसरे शब्दों में, आपसे सवाल पूछने की उम्मीद नहीं की जाती है.”
“राष्ट्रवाद, प्रचार और मीडिया” शीर्षक वाले पैनल चर्चा में द कारवां के कार्यकारी संपादक हरतोष सिंह बल और वरिष्ठ राजनीतिक पत्रकार और स्तंभकार स्मिता गुप्ता शामिल थे.
पत्रकारिता के “अच्छे पुराने दिनों” को याद करते हुए गुप्ता ने कहा, “हम बिना अपॉइंटमेंट के किसी मंत्री के कमरे में जा सकते थे और लोग हमसे बात करते थे. मैं अभी शुरुआत ही कर रहा था, 20 साल की उम्र में और ऐसा लगा जैसे यह आदर्श है. वहां एक स्ट्रक्चर था. वहां एक प्रमुख सूचना अधिकारी थे, जिससे हर दिन एक सटीक ब्रीफिंग करने की अपेक्षा की जाती थी और लोगों को सवाल पूछने की इज़ाज़त थी.”
लेकिन, उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद कुछ बदल गया.
उन्होंने कहा, “पहले, हमें कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि हमें जानकारी तक पहुंच नहीं मिल सकी. नरेंद्र मोदी से पहले के सभी प्रधानमंत्रियों की सालाना प्रेस कॉन्फ्रेंस होती थी, जहां पीएम सभी तरह के सवालों का खुलकर जवाब देते थे.”
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‘सरकार बाकी सबको बंद करना चाहती है’
13 मार्च को बॉम्बे हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार की फैक्ट-चेक यूनिट (FCU) पर रोक लगाने की मांग करने वाले आवेदनों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया. आवेदन स्टैंड-अप कॉमेडियन कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन द्वारा दायर किए गए थे.
डिजिटल क्षेत्र में गलत सूचना और फर्ज़ी खबरों पर चर्चा के दौरान, समाचार वेबसाइट क्विंट की सीईओ रितु कपूर ने पूछा, “अगर पीआईबी के पास पहले से ही एक फैक्ट चैक यूनिट है, तो एक और निकाय की ज़रूरत क्यों है? यहां क्या इरादा है और इसका डिजिटल समाचार पर क्या प्रभाव पड़ने वाला है?”
वे “डिजिटल युग में चुनौतियां” शीर्षक वाले सत्र का हिस्सा थीं, जिसमें द न्यूज़ मिनट की प्रधान संपादक धन्या राजेंद्रन और मीडियानामा के संस्थापक निखिल पाहवा शामिल थे और वरिष्ठ पत्रकार ज्योति मल्होत्रा ने इसका संचालन किया.
डिजिटल मीडिया संगठनों द्वारा गठित एक गैर-लाभकारी संगठन डिजीपब के अध्यक्ष राजेंद्रन ने एक तमिल यूट्यूब चैनल की कहानी साझा की, जिसे कथित तौर पर “भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा” होने के कारण हटा दिया गया था. यूट्यूबर ने एक अलग नाम से एक और चैनल शुरू किया, जिसे कुछ ही दिनों में हटा दिया गया.
उन्होंने बताया, “आखिरकार, उन्हें दिल्ली में सूचना प्रसारण मंत्रालय में बुलाया गया. उन्हें एक ऑनलाइन मीटिंग के लिए चेन्नई से दिल्ली लाया गया था. मंत्रालय का आदमी दूसरे कमरे में बैठा था और वे एक अलग कमरे में थे और उनकी ऑनलाइन बैठक हुई.” उनसे ऐसे सवाल पूछे गए, “क्या आप राष्ट्र विरोधी हैं? क्या आप भारत की सुरक्षा के खिलाफ हैं? इस छोटे से यूट्यूब चैनल ने लड़ाई लड़ी. वे अदालत गए और उनका चैनल वापस ऑनलाइन हो गया है.”
गलत सूचना और फर्ज़ी खबरों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, “मैं शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहती. गलत सूचना/दुष्प्रचार और फर्ज़ी समाचार के वाहक सत्तारूढ़ दल और सरकार हैं. वे बाकी सभी को बंद करना चाहते हैं.”
राजेंद्रन ने सामग्री को विनियमित करने के लिए सरकार द्वारा पेश किए गए बिलों के बारे में भी बात की.
“वे (सरकार) डिजिटल मीडिया अधिनियम लेकर आए, जिसके तहत वे डिजिटल मीडिया घरानों के लिए कई नियम लाए और अब हमारे पास प्रसारण बिल और दूरसंचार बिल है. सरकार वो सब कुछ कर रही है जो उसे नहीं करना चाहिए. वे फैक्ट चैक यूनिट चलाना चाहती है, मीडिया घरानों को बंद करना चाहती है. हम सरकार के साथ लगातार लड़ाई में हैं और हमें यह नहीं भूलना चाहिए.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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