नई दिल्ली: पिछले हफ्ते उस समय एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया जब लेयर’र शॉट ब्रांड की ओर से बॉडी स्प्रे का एक विवादास्पद विज्ञापन टेलीवीज़न पर प्रसारित किया गया. लोगों ने आरोप लगाया कि ये ब्रांड ‘रेप कल्चर को बढ़ावा’ देता है.
भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई), सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (आईबी मंत्रालय) और दिल्ली महिला आयोग ने विज्ञापन की आलोचना की, जिसके बाद उसे हर प्लेटफॉर्म से हटा लिया गया.
यूट्यूब और ट्विटर ने भी विज्ञापन को हटाने के लिए भेजे गए सरकार के अनुरोध को स्वीकार कर लिया.
कंपनी ने सोमवार को एक बयान जारी कर विज्ञापन के लिए खेद प्रकट किया लेकिन साथ ही इस पर भी प्रकाश डाला कि उन्होंने सभी संबंधित मंजूरियां मांगी थीं और उनके विचार को ‘कुछ लोगों ने गलत ढंग से लिया’.
विवाद और कंपनी के बयान ने उन ‘मंज़ूरियों’ पर सवाल खड़े कर दिए हैं, जिन्हें ब्रांड्स को टेलीवीज़न पर कोई विज्ञापन देने से पहले लेना होता है.
दिप्रिंट से बात करते हुए एक प्रतिष्ठित विज्ञापन एजेंसी में काम करने वाले एक सूत्र ने, नाम न बताने की शर्त पर इस सारे मामले पर कुछ रोशनी डाली.
सूत्र ने कहा कि संस्थाओं को अपने विज्ञापन प्रसारित करने से पहले किसी बाहरी इकाई से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं होती. सिर्फ चबाने वाले तंबाकू और शराब के एड्स को- जो अक्सर सरोगेट विज्ञापन का सहारा लेते हैं- केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) की मंजूरी प्रक्रिया से गुज़रना होता है.
जिन ब्रांड्स के विज्ञापन थिएटर्स में चलाए जाते हैं उन्हें इस वैधानिक निकाय की स्क्रीनिंग से गुजरना होता है जो आईबी मंत्रालय के अंतर्गत आती है.
अगर किसी विज्ञापन से विवाद पैदा हो जाता है तो केवल उसी हालत में एएससीआई, जिसमें एक उपभोक्ता शिकायत परिषद (सीसीसी) होती है, कार्रवाई करने के लिए सामने आती है.
एएससीआई की मुख्य कार्यकारी अधिकारी और महासचिव मनीषा कपूर के अनुसार, ‘उपभोक्ता शिकायत परिषद एक स्वतंत्र जूरी की हैसियत से शिकायतों पर फैसला सुनाती है. परिषद में इंडस्ट्री और सिविल सोसाइटी के सदस्य शामिल होते हैं और इसमें सिविल सोसाइटी बहुमत में होती है. सीसीसी द्वारा लिए गए तमाम फैसले बोर्ड से स्वतंत्र होते हैं. सभी फैसले पब्लिक रिकॉर्ड में होते हैं’.
लेकिन, टेलीवीज़न पर आने से पहले एक टीवी विज्ञापन की संकल्पना कैसे होती है और उसे अंतिम मंजूरी कैसे मिलती है? ये सुनिश्चित करने का जिम्मा किसका है कि विज्ञापन प्रभावी है और प्रसारित करने के लिए उपयुक्त है? विज्ञापन तैयार करने की प्रक्रिया को समझने के लिए दिप्रिंट ने इस उद्योग के अंदर के लोगों से बात की.
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विज्ञापन कैसे बनता है?
ऊपर उल्लिखित सूत्र के अनुसार जब कोई ब्रांड एक विज्ञापन जारी करने का फैसला करता है, तो वो किसी एड एजेंसी के साथ साझीदारी करता है या फिर अपने उत्पाद के बारे में विचारों के आदान-प्रदान और विषय वस्तु तैयार करने के लिए अंदरूनी तौर पर एक टीम तैयार करता है.
अगर इसमें कोई एड एजेंसी शामिल होती है तो एक स्टोरी बोर्ड तैयार किया जाता है, जिसमें दिखाया जाता है कि मुख्य उद्देश्यों को किस तरह लोगों तक पहुंचाया जाएगा और अन्य चीज़ों के अलावा उत्पाद के इस्तेमाल और डिज़ाइन पर बात की जाती है.
थीम और विषय वस्तु तय हो जाने के बाद, किसी प्रोडक्शन कंपनी को हायर किया जाता है, एक्टर्स तथा मॉडल्स को लाया जाता है और फिर शूटिंग शुरू होती है.
शूट किए जाने के बाद विज्ञापन की या तो सीबीएफसी में स्क्रीनिंग की जाती है या उसे क्लायंट ब्रांड को दिखाया जाता है. भारत में ज़्यादातर ब्रांड्स की अपनी एक अंदरूनी टीम होती है, जो अपनी एड एजेंसियों की ओर से पेश किए गए विचारों की जांच करती है, इसलिए इनसे भी मंजूरी हासिल की जाती है.
सूत्र ने कहा, ‘विशेषकर इस ब्रांड (लेयर’र शॉट) के लिए किसी बाहरी हितधारक से मंजूरी नहीं ली जा सकती थी, क्योंकि इसके लिए उन्होंने किसी एड एजेंसी की सेवाएं नहीं ली थीं. लेकिन मैं ये भी कहूंगा कि आमतौर से अलग-अलग विभागों के करीब 20 लोग निर्णय लेने की इस प्रक्रिया में शामिल होते हैं, जिसके बाद ही विज्ञापन को टीवी या किसी वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर दिखाया जाता है’.
सूत्र ने आगे कहा, ‘किसी भी संस्था में हर प्रक्रिया को किसी वरिष्ठ से मंजूरियां लेनी होती हैं. विज्ञापन की दुनिया किसी तरह के कानून से शासित नहीं होती और सीबीएफसी भी किसी एड के विज़ुअल अनुभव पर ज़्यादा तवज्जो देती है. अत्यधिक त्वचा प्रदर्शन और खुले कामुक हावभाव ऐसी मिसालें हैं जिन्हें लेकर वो आपत्ति जता सकते हैं. कुछ कंपनियां अपने विज्ञापनों को बिना वॉयसओवर के (सीबीएफसी के पास मंज़ूरी के लिए) भेज देती हैं, जिसकी वजह से उन यौन संकेतों को पकड़ना प्राथमिकता नहीं रह जाता, जिन्हें बाद में स्क्रिप्ट में शामिल कर दिया जाता है’.
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एएससीआई के अधिकार क्या हैं?
एएससीआई की उपभोक्ता शिकायत परिषद में जूरी सदस्य होते हैं, जो हर दो महीनों में प्राप्त शिकायतों के आधार पर फैसले लेते हैं.
एक बार कोई विवादास्पद विज्ञापन इस जूरी के पास पहुंच जाए, तो वो विज्ञापन निर्माता को चेतावनी दे सकते हैं या फिर अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिनके तहत वो जांच किए जाने तक एड को स्थगित कर सकते हैं.
दिप्रिंट से बात करते हुए एएससीआई की कपूर ने कहा, ‘सभी मीडिया में एएससीआई की अनुपालन दर 95 प्रतिशत से अधिक है’.
स्वनियमन के बारे में एएससीआई कोड का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘इस विशेष मामले (लेयर’र शॉट) में हमें एक विज्ञापन से सतर्क किया गया था, जिसने अशोभनीय और आपत्तिजनक विज्ञापनों के बारे में एएससीआई कोड का गंभीर उल्लंघन किया था’.
उन्होंने कहा, ‘एएससीआई प्रक्रिया के अनुसार, एड पर अपनी सिफारिश देने से पहले हम विज्ञापनदाता को अपने पक्ष में तर्क पेश करने का मौका देते हैं लेकिन इस मामले में हमने तुरंत एक प्रक्रिया का पालन किया, जिसे ‘जांच होने तक स्थगित’ कहा जाता है.
जब भी कोई विवाद पैदा होता है तो एएससीआई स्वनियमन की जरूरत को उजागर करती है.
कपूर ने कहा, ‘विज्ञापनदाताओं को अपनी सम्यक जांच पड़ताल करनी होती है. असाधारण परिस्थितियों में, जब पहली नज़र में ऐसा लगता है कि विज्ञापन एएससीआई कोड का गंभीर उल्लंघन कर रहा है और इसका जारी रहना जन हित के खिलाफ है, तो एएससीआई लंबित जांच पूरी होने तक विज्ञापनदाता को पहले विज्ञापन को स्थगित करने के लिए कह सकती है और फिर उसे सुनवाई के लिए एक उचित अवसर दे सकती है’.
अतीत में विज्ञापनदाताओं ने ‘गोरी त्वचा’ को बढ़ावा दिया है और ऐसे ब्रांड्स जिन्होंने महिलाओं को सिर्फ एक सामग्री के तौर पर इस्तेमाल किया है, उन्हें 2014 में एएससीआई की ओर से फटकार लगाई गई थी. गोरी त्वचा की क्रीमों के लिए जारी गाइडलाइंस में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि सांवली त्वचा वालों को कमतर नहीं दिखाया जाना चाहिए.
कपूर ने कहा, ‘रचनात्मक होने के साथ-साथ विज्ञापनदाताओं को जिम्मेदार होने की भी जरूरत है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘जिम्मेदार विज्ञापनों का समर्थन करने के लिए एएससीआई अपनी ‘विज्ञापन सलाह’ जैसी सेवाओं का सहारा लेती है, जिनके जरिए एससीआई कोड के संभावित उल्लंघनों की प्रोडक्शन से पहले की अवस्था में ही पहचान की जा सकती है. विज्ञापनदाता और ब्रांड्स विज्ञापन सलाह सेवाओं का लाभ उठा सकते हैं, जिससे ब्रांड के लिए अपना समय, पैसा और प्रतिष्ठा बचाने में मदद मिलती है’.
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