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Wednesday, 13 November, 2024
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क्या अयोध्या के मंदिर टैक्स-फ्री हैं? नहीं, इसमें एक पेंच है, और महंत इससे खुश नहीं हैं

अयोध्या की सिविक बॉडी ने अपने मंदिरों, मठों के लिए प्रॉपर्टी, वॉटर और सीवेज टैक्स माफ कर दिया है और एक 'सांकेतिक' टैक्स पेश किया है. हालांकि, महंतों का कहना है कि इससे बड़े मंदिरों को ही फायदा होता है.

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अयोध्या: योगी आदित्यनाथ सरकार के 2022 के वादे को पूरा करते हुए उत्तर प्रदेश की पवित्र नगरी अयोध्या के नगर निगम ने मंदिरों और मठों पर लगने वाले संपत्ति, पानी और सीवेज टैक्स को माफ कर दिया है. इसके स्थान पर, सिविक बॉडी ने “सांकेतिक टैक्स” पेश किया है.

अयोध्या नगर निगम के आधिकारिक सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि हालांकि, 1 अप्रैल, 2023 को लागू किए गए इस सांकेतिक टैक्स को कई पुजारियों व महंतों के प्रतिरोध का सामना करना पड़ा है, जो दावा करते हैं कि इस सिस्टम से बड़े मंदिरों व मठों को लाभ होता है.

लगाया जाने वाला वार्षिक कर उस क्षेत्र के आकार पर आधारित होता है, जिसमें मठ या मंदिर स्थित है. इसके मुताबिक 1,000 रुपये (1,000 वर्ग फुट तक), 3,000 रुपये (1,000-3,000 वर्ग फुट) और 5,000 रुपये (3,000 वर्ग फुट से ऊपर) का टैक्स चुकाना होगा.

पिछले साल की घोषणा के बाद, कर विभाग के अधिकारियों ने एक सर्वेक्षण किया था और सितंबर तक अयोध्या में ऐसी 1,080 मंदिर व मठों की सूची तैयार की थी, जिन्हें संपत्ति, पानी और सीवेज करों से छूट दी जाएगी. हालांकि, अयोध्या नगर निगम के सूत्रों ने कहा कि कई मठ और मंदिर व्यावसायिक गतिविधियों में लिप्त पाए गए और उन्हें सूची से हटा दिया गया.

नगर निगम के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “चूंकि, केवल उन मठों और मंदिरों को छूट दी जानी थी जो वाणिज्यिक गतिविधि में शामिल नहीं थे, इसलिए इन्हें सूची से हटा दिया गया. अब, ऐसे 783 मठ और मंदिर सूची में हैं.”

सूत्रों ने कहा कि इन 783 में से केवल 400 ने सांकेतिक कर का भुगतान किया है.

अधिकारी ने कहा, “लगभग 400-500 मठ और मंदिर टैक्स चुका रहे हैं, लेकिन अन्य इसका भुगतान नहीं कर रहे हैं क्योंकि वे इसके विरोधी हैं.”

कई पुजारियों का दावा है कि छोटे मठ और मंदिर इस कर का भुगतान करने का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि जहां एक तरफ उन्हें आधिकारिक तौर पर कर व्यवस्था के तहत लाया गया है, वहीं 5,000 वर्ग फुट से अधिक क्षेत्र वाले मंदिर या मठ न्यूनतम टैक्स दे रहे हैं.

निर्वाणी अनी अखाड़े के प्रमुख महंत धर्मदास ने दिप्रिंट से बताया, “छोटे मठों पर शुल्क लगाया जा रहा है जबकि बड़े मंदिर और मठ किसी भी बड़े कर से बच रहे हैं,”

नगर निगम के एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “पहले, मठों और मंदिरों द्वारा करों का भुगतान किया जा रहा था, लेकिन कई मंदिर व मठ भुगतान से बचते थे, इस उम्मीद में कि योगी आदित्यनाथ सरकार मठों और मंदिरों को पूरी तरह से कर-मुक्त बनाने की पुजारियों की मांगों पर ध्यान देगी.”

“हालांकि, अब चूंकि सांकेतिक कर आधिकारिक तौर पर लगाया गया है, इसलिए अधिकांश बड़े मठ और मंदिरों को सालाना केवल 5,000 रुपये तक ही टैक्स का भुगतान करना होगा. छोटे मठ और मंदिर चलाने वाले पुजारियों का मानना है कि 5,000 वर्ग फुट में स्थापित मठ की तुलना 15,000 वर्ग फुट में स्थापित मठ से नहीं की जा सकती है.’

अधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि जहां 10,000 वर्ग फुट क्षेत्र में कई मठ और मंदिर स्थापित हैं, वहीं कुछ ही 15,000 वर्ग फुट से अधिक क्षेत्र में स्थापित हैं.महंत धर्मदास ने कहा, “अगर वास्तविक साधुओं को, जो किसी तरह के लालच या व्यवसाय में लिप्त नहीं हैं, उन्हें कर भुगतान से छूट दी जा रही है, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए. लेकिन ऐसे कई लोग हैं जो मठों और मंदिरों से बिजनेस चला रहे हैं और तमाम अन्य लोग भी हैं जो फायदे के लिए अपने घरों के अंदर मंदिरों के होने का दावा करते हैं. ऐसे लोगों की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें हतोत्साहित किया जाना चाहिए.”

नगर निगम के अधिकारियों ने कहा कि ऐसे कई मंदिर या मठ हैं जिन्हें लिखित रूप में और एसएमएस सेवा के जरिए बिल भेजा गया है लेकिन उन्होंने अभी तक इसका भुगतान नहीं किया है. देर से भुगतान करने पर उन पर कुल कर का 12 फीसदी जुर्माना लगाया जाएगा.


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एक निगम अधिकारी ने कहा, “टैक्स का विरोध हो रहा है क्योंकि कई मठ और मंदिर अब तक टैक्स नहीं चुका रहे थे और अब आधिकारिक तौर पर उन्हें टैक्स चुकाना होगा. उनसे कुल टैक्स का 12 प्रतिशत ब्याज भी लिया जाएगा.”

वास्तविकता की जांच

राम जन्मभूमि आंदोलन के दो प्रमुख व्यक्ति नृत्य गोपाल दास और सुरेश दास जैसे संतों ने उनके पिछले कार्यकाल के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की थी और शहर के सभी मठों और मंदिरों को आधिकारिक रूप से कर मुक्त करने की मांग की थी.

निर्माणाधीन राम मंदिर में अस्थायी मंदिर के मुख्य पुजारी महंत सत्येंद्र दास ने तीनों करों को हटाए जाने के कदम का स्वागत करते हुए कहा कि कई मंदिर और मठ हैं जो आत्मनिर्भर हैं और केवल भक्तों द्वारा आने वाले दान और चढ़ावा पर चलते हैं.

हालांकि, टैक्स डिपार्टमेंट के अधिकारियों का कहना है कि कर चोरी हमेशा अयोध्या में एक मुद्दा रहा है.

मंदिरों के शहर अयोध्या के जिन जाने-माने संतों से दिप्रिंट ने बात की उनका कहना था कि कई मठ और मंदिर हाउस, वॉटर और सीवेज टैक्स का भुगतान नहीं कर रहे थे. वहीं अधिकारियों का कहना है कि कॉमर्शियल और रेज़ीडेंशियल संस्थाएं भी टैक्स देने से बच रही थीं.

दिप्रिंट से बात करते हुए नगर निगम अयोध्या के कर निर्धारण अधिकारी के.सी. सुदर्शन ने दिप्रिंट को बताया कि नगर निगम क्षेत्र में 44,218 संस्थाओं में से केवल 6,555 संस्थाएं पिछले साल तक कर का भुगतान कर रही थीं.

उन्होंने कहा, “कॉमर्शियल और रेज़ीडेंशियस सहित कई मिश्रित संपत्तियां के मालिक भी टैक्स नहीं दे रहे थे”

कई पुजारियों और महंतों ने दिप्रिंट से बात की और स्वीकार किया कि अयोध्या के नगर पालिका से नगर निगम बनने के बाद से उन्होंने टैक्स का सारा भुगतान किया गया है.

निर्माणाधीन राम मंदिर के परिसर में अस्थायी मंदिर के मुख्य पुजारी महंत सत्येंद्र दास ने दिप्रिंट को बताया, “अयोध्या के नगर निगम बनने के तुरंत बाद मठ और मंदिर टैक्स नहीं दे रहे थे.

अयोध्या के कर नियम

अयोध्या के अतिरिक्त नगर आयुक्त अरुण कुमार गुप्ता ने दिप्रिंट को बताया कि नगर निगम अब तक एक आवासीय संपत्ति के वार्षिक किराये मूल्य (एआरवी) का 23 प्रतिशत टैक्स के रूप में वसूल करता रहा है.

गुप्ता ने कहा, “इस व्यवस्था के तहत, किसी भी संपत्ति के मालिक को संपत्ति के कुल एआरवी का 23 प्रतिशत टैक्स के रूप में देना पड़ता था. इसमें शामिल हैं: संपत्ति कर (एआरवी का 10 प्रतिशत), वॉटर टैक्स (एआरवी का 10 प्रतिशत) और सीवेज टैक्स (एआरवी का 3 प्रतिशत).”

किसी संपत्ति की एआरवी की गणना उस संपत्ति के प्रति वर्ग फुट किराये के मूल्य के आधार पर की जाती है, जो अलग-अलग इलाकों के आधार पर अयोध्या में 60-85 पैसे के होती है.

उदाहरण के लिए, यदि किसी के पास अयोध्या में 60 पैसे प्रति वर्ग फुट के मासिक किराये वाले इलाके में 1,000 वर्ग फुट भूमि संपत्ति है, तो उसे मासिक कर के रूप में 600 रुपये या वार्षिक कर के रूप में 7,200 रुपये का भुगतान करना होगा.

वाणिज्यिक संस्थाएं जैसे होटल, गेस्ट हाउस, कोचिंग सेंटर, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स, जनरल स्टोर आदि को आवासीय संपत्तियों पर लगाए गए कर की तुलना में पांच गुना ज्यादा टैक्स का भुगतान करना होगा. वहीं, फाइव स्टार होटलों को इस कर का छह गुना भुगतान करना होता है.

नर्सिंग होम, अस्पताल और मैरिज लॉन को किसी आवासीय संपत्ति के मालिक द्वारा भुगतान किए जाने वाले कर की तीन गुना राशि का भुगतान करना होता है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, हालांकि, अयोध्या 2017 में एक नगर निगम बन गया था, लेकिन मठों और मंदिरों को कर-मुक्त बनाने की आधिकारिक घोषणा पहली बार 2022 में हुई थी, जब दूसरो बार जीत के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ अयोध्या आए थे.

इसके तुरंत बाद, नगर निगम ने तीन करों को हटाने की प्रक्रिया शुरू की, और मई 2022 में, उसने नगर निगम बोर्ड में मठों और मंदिरों को कर में छूट का प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया था कि वे संस्थाएं जो व्यावसायिक गतिविधि में लिप्त हैं, उन्हें ऐसी कोई राहत नहीं मिलेगी.

कर विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “पुजारियों ने मांग की थी कि मंदिरों और मठों को पूरी तरह से कर मुक्त किया जाए. हालांकि, नगर निगम बोर्ड इस पर सहमत नहीं हुआ और सुझाव दिया कि एक सांकेतिक राशि वसूल की जाए, क्योंकि संस्थाओं को पूरी तरह से कर-मुक्त बनाना संभव नहीं था.”

नगर निगम पर बोझ

अयोध्या नगर निगम के अधिकारियों के अनुसार, अयोध्या क्षेत्र की सीमा के भीतर लगभग 8,000 मठ, मंदिर, आश्रम और आवासीय भवन हैं.

अयोध्या नगर निगम कर अधीक्षक सुभाष त्रिपाठी ने कहा, “इनमें से 1,080 की पहचान मठों, आश्रमों और मंदिरों के रूप में की गई है. शेष, लगभग 6,900 आवासीय संस्थाएं हैं जिन्हें संपत्ति, पानी और सीवेज करों का भुगतान करना होगा.

फैजाबाद जोन के कर निरीक्षक विनोद गौड़ ने दिप्रिंट को बताया कि निगम इन 8,000 संस्थाओं से कुल लगभग 3 करोड़ रुपये कमा रहा था.

त्रिपाठी ने कहा, “इस राशि में से, यदि इन सभी 1,080 संस्थाओं को इन करों का भुगतान करने से छूट दी जाती है, तो निगम को 40.5 लाख रुपये कर बोझ के रूप में वहन करना होगा. हालांकि, यह आंकड़ा अंतिम नहीं है और आपत्तियों के बाद संशोधित किया गया है.”

जबकि मठों और मंदिरों को करों के भुगतान से पूरी तरह से छूट दी जाएगी, नगर निगम इन करों को मिश्रित प्रकृति की संस्थाओं से वसूल करेगा, यानी जो रेज़ीडेंशिल और कॉमर्शियल हैं, और दूसरी जो पूरी तरह से कॉमर्शियल हैं.

“ऐसी कई संस्थाएं होंगी जो मिश्रित श्रेणी के अंतर्गत आएंगी. इनमें वे संस्थाएं शामिल हो सकती हैं जिनका एक ही परिसर में मंदिर और दुकान है. ऐसे मामलों में केवल मंदिर क्षेत्र को छूट दी जाएगी न कि आवासीय या व्यावसायिक क्षेत्र को.’

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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