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Friday, 22 November, 2024
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मुंबई के 7/11 धमाकों के लिए 5 को मौत की सजा दी गई हैं, क्या वे दोषी हैं? NIA/पुलिस की फाइलें विरोधाभासी तथ्य पेश करती हैं

अपनी अपीलों में दोषियों ने मुम्बई पुलिस, दिल्ली पुलिस, और कम से कम तीन अन्य एजेंसियों के दस्तावेज़ों का सहारा लेते हुए, इस बात पर ज़ोर दिया है कि धमाके आईएम ने कराए थे.

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नई दिल्ली: 11 जुलाई 2006 को मुम्बई के पश्चिमी उपनगरों को जाने वाली सात लोकल ट्रेन्स के फर्स्ट क्लास डब्बों में, 11 मिनट्स के भीतर ज़बर्दस्त धमाके हुए, जिनमें 187 लोग हलाक हो गए और 829 घायल हुए.

क़रीब 14 साल हो गए हैं और केस अपने अंजाम को पहुंचता नज़र नहीं आता- पांच साल पहले मुम्बई की एक स्पेशल कोर्ट ने जिन 12 लोगों को दोषी ठहराया था, वो न सिर्फ आज भी अपनी बेगुनाही पर ज़ोर दे रहे हैं, बल्कि उन्होंने आधिकारिक और कोर्ट दस्तावेज़ भी पेश किए हैं, जो सरकारी जांच एजेंसियों ने ख़ुद अपने बचाव में दाख़िल किए थे.

धमाकों के लिए वो इंडियन मुजाहिदीन को दोष देते हैं.

ये 12 उन 13 लोगों में हैं, जिन्हें हमले के फौरन बाद गिरफ्तार किया गया था और जिन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की, हत्या, आपराधिक साज़िश, महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण क़ानून (मकोका) 1999 और ग़ैर-कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) क़ानून (यूएपीए) 1967 से जुड़ी धाराओं के तहत आरोप दर्ज किए गए थे.

अभियोजन की दलील थी कि ये साज़िश पाकिस्तान स्थित लशकर-ए-तैयबा (एलईटी) ने रची थी, जिस पर प्रतिबंधित स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) से जुड़े लोगों की मदद से अमल किया गया.

नौ साल बाद सितंबर 2015 में, मुम्बई की एक विशेष अदालत ने 12 लोगों को धमाकों का दोषी क़रार दिया. 1839 पन्नों के लंबे अपने फैसले में- सार्वजानिक अभियोक्ता से सहमत होते हुए, जिसने उन्हें ‘मौत के सौदागर’ कहा था- अदालत ने इनमें से पांच दोषियों को सज़ा-ए-मौत और बाक़ी को उम्रक़ैद की सज़ा सुनाई. एक अभियुक्त अब्दुल वाहिद दीन मोहम्मद शेख़ को बरी कर दिया गया.

अभी तक उम्रक़ैद की सज़ा पाए चार दोषी, एडवोकेट इशरत ख़ान के ज़रिए अपने दोषी ठहराए जाने के फैसले के खिलाफ मुम्बई हाईकोर्ट में अपील कर चुके हैं.

कुछ अभियुक्तों की सज़ा-ए-मौत की पुष्टि के लिए, हाईकोर्ट में ज़रूरी सुनवाई अभी शुरू होनी है. ट्रायल कोर्ट्स द्वारा दी गई सज़ा-ए-मौत की, संबंधित हाईकोर्ट से पुष्टि होनी ज़रूरी होती है, जिसके लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 366 के तहत कार्यवाही करनी होती है.


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5 सरकारी एजेंसियों की जांच का हवाला

बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर अपनी अपीलों में, दोषियों ने कई जांच एजेंसियों के दस्तावेज़ों का सहारा लिया है, जिनमें मुम्बई क्राइम ब्रांच, अहमदाबाद पुलिस, दिल्ली पुलिस, उत्तर प्रदेश स्पेशल टास्क फोर्स और हैदराबाद स्थित काउंटर टेररिस्ट ऑपरेशंस संगठन (ऑक्टोपस) शामिल हैं.

उनमें से एक दस्तावेज़ एक रिमांड अर्ज़ी है, जो मुम्बई क्राइम ब्रांच ने 2008 में, कुछ कथित इंडियन मुजाहिदीन कार्यकर्ताओं की कस्टडी लेने के लिए दाख़िल की थी.

आवेदन में आतंकी संगठन और उसके कार्यकर्ताओं को, कई धमाकों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जिनमें ‘जयपुर, अहमदाबाद, हैदराबाद, वाराणसी, लखनऊ, दिल्ली और मुम्बई के उप-नगरीय रेलवे बम धमाके शामिल हैं’.

इस पर, महाराष्ट्र सरकार ने 2009 में, एक कथित आईएम कार्यकर्ता अफज़ल उस्मानी, और कुछ अन्य लोगों के खिलाफ यूएपीए के तहत मुक़दमा चलाने की अनुमति दे दी.

अपीलों से जुड़े एक वकील ने, नाम न बताने की शर्त पर उस अनुपूरक आरोप पत्र का भी हवाला दिया, जो एनआईए ने फरवरी 2014 में, इंडियन मुजाहिदीन के खिलाफ दिल्ली की एक अदालत में दायर की थी. वो तब हुआ था जब गृह मंत्रालय ने, एजेंसी से संगठन के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने, और देशभर में हुई कई आतंकी घटनाओं में, उसके शामिल होने की जांच करने के लिए कहा था.

दिप्रिंट के हाथ लगी चार्जशीट में, मुम्बई ट्रेन धमाकों में भी आईएम का हाथ होने की तरफ इशारा किया गया है. इसमें कहा गया है, ‘जांच से साबित हो गया है कि अभियुक्त असदुल्लाह अख़्तर (कथित आईएम कार्यकर्ता) इस बात से अवगत था कि उसके संगठन इंडियन मुजाहिदीन के सदस्य, 2005 में दिल्ली के सरोजिनी नगर धमाकों, 2006 में मुम्बई के ट्रेन धमाकों, 2007 के गोरखपुर धमाकों और 2007 के ही, यूपी कोर्ट्स धमाकों में शामिल थे’.

उस साल के सितंबर तक, एनआईए ने एक और आरोप पत्र दाखिल किया, जिसमें इस बात को दोहराया गया कि मुम्बई धमाकों में आईएम का हाथ था.

आरोप पत्र में कहा गया है, ‘जैसा कि अभियुक्त असदुल्लाह ख़ान ने, सीआरपीसी की धारा के तहत दर्ज अपने बयान में कहा, मुम्बई ट्रेन धमाके (2006) आईएम कार्यकर्ताओं ने अंजाम दिए थे, जिनमें सादिक़ शेख़, बड़ा साजिद (मो. साजिद), आतिफ अमीन, और अबु रशीद शामिल थे, लेकिन नाम इन्हीं तक सीमित नहीं थे.

7/11 केस में अभियुक्त की ओर से दायर अपील में, इन रिपोर्ट्स का हवाला दिया गया है और दावा किया गया है कि ऐसा लगता है कि एजेंसियां जानती थीं कि मुम्बई धमाकों के पीछे इंडियन मुजाहिदीन था, न कि दोषी ठहराए गए लोग.

उसमें कहा गया है, ‘हमारे देश की इन सभी अभिजात एजेंसियों ने, आतंकियों के दावों पर यक़ीन नहीं किया और समान नतीजे पर नहीं पहुंच सकीं कि 7/11 धमाके ‘इंडियन मुजाहिदीन’ का काम हैं, इस केस के मौजूदा अभियुक्तों का नहीं’.

‘आईएम के सह-संस्थापक के इक़बालिया बयान’ दोषियों की अपीलों में सादिक़ इसरार अहमद शेख़ के, कथित इक़बालिया बयानात का भी सहारा लिया गया है, जिसे इंडियन मुजाहिदीन का सह-संस्थापक बताया गया  था.

गोदरेज के एक पूर्व रेफरिजरेटर टेक्नीशियन सादिक़ को, मुम्बई क्राइम ब्रांच ने सितंबर 2008 में गिरफ्तार किया था.

7/11 धमाकों में उसकी भागीदारी कोई नई बात नहीं है; बल्कि उसके नाम को 2008 से ही, ट्रेन धमाकों के साथ जोड़ा जाने लगा था.

18 अक्टूबर 2008 को, तब के मुम्बई डीसीपी विश्वास पाटिल ने सादिक़ का एक कथित इक़बालिया बयान दर्ज किया था, जिसमें उसे कहते हुए सुना जा सकता है कि ‘उसने, आईएम के दूसरे सदस्यों, जैसे रियाज़ भटकल, आरिफ बदर, डॉ. शाहनवाज़ तथा अन्य की मदद से कई जगहों पर धमाकों को अंजाम दिया था, जिनमें दिल्ली की गोविंदपुरी, वाराणसी का संकट मोचन मंदिर, श्रमजीवी एक्सप्रेस, मुम्बई रेल धमाके शामिल थे और जो अमीर रज़ा के निर्देशों पर किए गए थे’.

फिर नवंबर 2008 में, दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल के सामने दिए एक और बयान में, सादिक़ ने कहा, ‘मैंने और आतिफ ने, अन्य लोगों के साथ मिलकर धमाकों की साज़िश रची और बम तैयार किए, जिन्हें 2006 में मुम्बई की तीन लोकल ट्रेनों में रखा गया. मैंने एक बम मुम्बई के चर्चगेट रेलवे स्टेशन पर, एक लगेज कैरियर में रखा था’.

सादिक़ के इक़बालिया बयान का वीडियो भी रिकॉर्ड किया गया. सितंबर 2015 में, दि इंडियन एक्सप्रेस ने इनमें से कुछ क्लिप्स छापी थीं, जिनमें सादिक़ को धमाकों से पहले की, अपनी गतिविधियां बताते हुए देखा जा सकता है.

वीडियो में उसे कहते सुना जा सकता है, ‘हम सब ने ट्रेनों की पहचान करने के लिए, बॉम्बे लोकल ट्रेन टाइम-टेबल हासिल कर लिया था, जिसके बाद हमने बैग्स और कुकर्स ख़रीदे थे. हम पांचों ने सात कुकर्स में अपने अपने बम तैयार किए थे’.

उसने आगे कहा, ‘हम दोपहर ठीक 2 बजे अपार्टमेंट से निकल गए (11 जुलाई 2006 को). हम अपने साथ वो बम लिए हुए थे, जो हमने प्रेशर कुकर्स के अंदर, बैग्स में रखे हुए थे. इन बमों को साढ़े चार घंटे बाद फटने के लिए सेट किया गया था, जब हमें पता था कि ट्रेनों में भीड़ होगी. सबसे पहले निकलने वाला मैं था (क़रीब शाम 4 बजे)’.

इसके अलावा, मुम्बई क्राइम ब्रांच ने कथित आईएम कार्यकर्ताओं, मोहम्मद आरिफ बदरुद्दीन शेख़ और अंसार अहमद बादशाह शेख़ से, दो इक़बालिया बयान और हासिल कर लिए. अपने इक़बालिया बयानात में, जो दिप्रिंट के हाथ लगे हैं, दोनों आईएम अभियुक्तों ने दावा किया कि सादिक़ 7/11 धमाकों में शामिल था.

7/11 अभियुक्तों ने धमाकों में आईएम की भागीदारी साबित करने के लिए सादिक़, मो. आरिफ़ और अंसार अहमद को, बचाव पक्ष के गवाहों के तौर पर बुलाया था.

लेकिन अप्रैल 2013 में सादिक़ को, उस वक़्त एक प्रतिकूल गवाह घोषित कर दिया गया, जब उसने दावा किया उसे यातना देकर इक़बालिया बयान पर दस्तख़त करने के लिए धमकाया गया था.


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‘मैं इस सवाल का जवाब नहीं देना चाहता’

सादिक़ के प्रतिकूल हो जाने के बावजूद, अभियुक्त के वकीलों ने निचली अदालत में इस पर प्रकाश डाला था कि कुछ सवालों के जवाब सादिक़ ने किस ढंग से दिए थे.

बचाव पक्ष के वकील वहाब ख़ान के साथ जिरह में, सादिक़ से पूछा गया कि मुम्बई पुलिस द्वारा, उसका इक़बालिया बयान दर्ज करने के पीछे क्या कारण था.

उसके बयान के अनुसार, जो दिप्रिंट ने देखा है, सादिक़ ने जवाब दिया कि ‘क्राइम ब्रांच के कुछ अधिकारियों ने मुझे बताया था कि पहले वो एटीएस में थे और उन्हें पता है कि 7/11 धमाकों के सिलसिले में पकड़े गए लोगों को ग़लत गिरफ्तार किया गया था और वो जानते हैं कि वो धमाके उन लोगों ने नहीं, बल्कि मैंने (सादिक़) और कुछ अन्य लोगों ने किए थे, और वो हमें फंसाएंगे’.

ख़ान ने साजिद से ये भी पूछा कि क्या उसका इक़बालिया बयान असली घटनाक्रम को दर्शाता है. इससे इनकार करने की बजाय, सादिक़ ने सिर्फ इतना कहा, ‘मैं इस सवाल का जवाब नहीं देना चाहता’.

बाद में, अपने बयान में सादिक़ ने कहा कि उसने उस सवाल का जवाब इसलिए नहीं दिया कि वो 7/11 के रेल बम धमाकों के बारे में, एडवोकेट ख़ान अब्दुल वहाब के, बार-बार वही सवाल पूछे जाने से उकता गया था’.

अपीलों से जुड़े एक वकील ने दिप्रिंट से कहा कि सादिक़ के इक़बालिया बयानात पर अभी भी भरोसा किया जा सकता है.

उन्होंने कहा, ‘किसी प्रतिकूल गवाह की गवाही को रिकॉर्ड से मिटाया नहीं जाता. दोनों पक्ष अभी भी उसका सहारा ले सकते हैं’.

7/11 के दोषियों की अपील में, सादिक़ के कथित इक़बालनामे और दस्तावेज़, दोनों का उल्लेख किया गया है.

उनकी अपील में कहा गया है कि, ‘विद्वान स्पेशल जज ने इस तथ्य की पूरी तरह अनदेखी कर दी है कि अभियुक्त सादिक़ इसरार शेख़ के इक़बालिया बयान…और दूसरे दस्तावेज़ों से साबित होता है कि मुम्बई क्राइम ब्रांच की जांच में सामने आया था कि इंडियन मुजाहिदीन के सदस्य 7/11 के मुम्बई ट्रेन धमाकों में शामिल थे (इस केस के मौजूदा अभियुक्त नहीं).

‘IM का तरीक़ा’

2015 के अपने फैसले में ट्रायल कोर्ट ने इंडियन मुजाहिदीन द्वारा धमाके किए जाने की थ्यौरी को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया और कहा कि सादिक़ ने ‘अपनी भागीदारी की बात रियाज़ भटकल और किसी आतिफ के कहने पर की थी, जिसके पीछे मंशा जांच एजेंसी को भ्रमित करना थी, और ये सब अल-क़ायदा मैनुअल के हिसाब से किया गया था’.

अन्य बातों के अलावा, कोर्ट ने कहा था कि  ‘ये इंडियन मुजाहिदीन की कथित रूप से ज्ञात रणनीति है कि वो मीडिया घरानों को ईमेल्स भेजकर सूचित करते हैं कि एक बम धमाका होने वाला है’.

कोर्ट ने फिर ये भी कहा कि इंडियन मुजाहिदीन की कार्य प्रणाली ये है कि वो अपने हमलों की ज़िम्मेदारी लेते हैं, लेकिन ‘इस मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ’.

कोर्ट ने कहा, ‘धमाकों से पहले कोई ईमेल नहीं आया और धमाकों के बाद भी किसी ने ज़िम्मेदारी नहीं ली’.

लेकिन अब अपीलों में कहा गया है कि नवंबर 2017 में देशभर के न्यूज़रूम्स को एक ईमेल मिला था, जिसमें तब तक अंजान इंडियन मुजाहिदीन नाम के एक संगठन की ओर से, चार बम धमाकों की ज़िम्मेदारी ली गई थी.

उन चार धमाकों में 2005 के दिल्ली के सीरियल धमाके, 2006 के वाराणसी धमाके, 2006 के बॉम्बे ट्रेन धमाके, और 2007 में हैदराबाद के गोकुल घाट और लुंबिनी पार्क में दोहरे धमाके शामिल थे.

ईमेल में ‘भारत में जिहाद (पवित्र युद्ध)’ के पीछे के कारणों का भी उल्लेख किया गया है, और ‘भारत में मुसलमानों पर हो रही हिंसा को’ इसका ज़िम्मेदार ठहराया गया. उसमें कहा गया कि 2002 के गुजरात दंगों ने ‘हमें इस नाइंसाफी के खिलाफ हथियार उठाने को मजबूर कर दिया’, और उसमें 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस का भी ज़िक्र किया गया है’.

7/11 धमाके केस में अभियुक्तों की ओर से दायर अपील में निवेदन किया गया है कि इस ईमेल को दरअसल उस चार्जशीट का हिस्सा बनाया गया था, जो ऑक्टोपस फोर्स ने 2007 गोकुल घाट धमाका मामले में दायर की थी.

2013 के हैदराबाद दिलसुख नगर दोहरे धमाके मामले में, एनआईए की चार्जशीट में भी, जो दिप्रिंट के हाथ लगी है, इस ईमेल का उल्लेख है. दिसंबर 2016 में एक विशेष एनआईए अदालत ने, धमाकों के लिए पांच आईएम कार्यकर्ताओं को सज़ाए मौत सुनाई थी, जिनमें आईएम के सह-संस्थापक यासीन भटकल शामिल था. इस फैसले के खिलाफ दायर की गई अपील, फिलहाल हैदराबाद हाईकोर्ट में लंबित है.

क़बूल करना, पीछे हटना और कॉल रिकॉर्ड्स

कोर्ट के 2015 के फैसले में 12 अभियुक्तों को दोषी ठहराया गया था, जिसके लिए उनमें से 11 के इक़बालिया बयान, और परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को आधार बनाया गया था.

मकोका में इस बात की अनुमति है, कि पुलिस कस्टडी में हासिल किए गए इक़बालिया बयान को, अदालतों में सबूत के तौर पर माना जा सकता है. ये साक्ष्य अधिनियम के विपरीत है, जिसमें कहा गया है कि किसी पुलिस अधिकारी के सामने दिए गए बयान को, अपराध के आरोपित किसी अभियुक्त के खिलाफ सुबूत के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, चूंकि इसमें ये माना जाता है कि पुलिस अधिकारियों के सामने दिए गए, ऐसे सभी इक़बालिया बयानात पर, ज़ोर-ज़बर्दस्ती का दाग़ होता है.

अभियुक्तों ने अपने इक़बालिया बयान अक्टूबर में दर्ज कराए थे. उनमें से कई ने एक हफ्ते के अंदर ही, ज़बानी तौर पर जज को बताने की कोशिश की थी कि वो बयान ज़बर्दस्ती कराए गए था, या ग़लत थे, या उन्हें दिखाए नहीं गए थे. उन सभी ने नवंबर में एक याचिका दायर की, जिसमें दावा किया गया था कि उनके दस्तख़त कोरे काग़ज़ पर लिए गए थे और जुर्म क़बूल करने कि लिए उन्हें धमकाया और प्रताड़ित किया गया.

लेकिन ट्रायल कोर्ट का विचार था कि अभियुक्तों ने अपनी ‘मर्ज़ी से’ इक़बालिया बयान दिए थे और उसने प्रताड़ना के आरोपों को भी ख़ारिज कर दिया.

कोर्ट ने कहा, ‘मैं इस बात को पहले ही मान चुका हूं कि ये अस्वीकार्य और असंभव है कि अभियुक्तों ने जिनकी उनके वकील बाक़ायदा नुमाइंदगी कर रहे थे, और जो अपने परिवार के सदस्यों से मिल रहे थे, किसी एक मौक़े पर भी मजिस्ट्रेट्स से शिकायत नहीं की, जब उन्हें समय समय पर पेशी के लिए लाया गया था’.

चार दोषियों की ओर से दायर अपील में, इस बात को फिर दोहराया गया है कि वो इक़बालिया बयान ‘कभी भी स्वैच्छिक नहीं थे…वो बल प्रयोग, दबाव और यातना से प्राप्त किए गए थे’. उनमें ज़ोर देकर कहा गया है कि अभियुक्तों को ‘मानसिक और शारीरिक रूप से, बुरी तरह टॉर्चर किया गया और कई यूनिट्स और पुलिस थानों में ले जाकर, हाई-टेक टॉर्चर से गुज़ारा गया’.

इसके अलावा, कई अभियुक्तों के कॉल डेटा रिकॉर्ड्स (सीडीआर्स) भी, घटनाक्रम के पुलिस के वर्जन का कथित तौर से खंडन करते थे. बल्कि एक अभियुक्त ने तो दावा किया है कि धमाकों के वक़्त वो कोलकाता में था, जबकि पुलिस कुछ और ही कहती  थी.

अभियुक्तों की पुलिस कस्टडी लेने के लिए, एटीएस ने काफी हद तक सीडीआर्स का सहारा लिया था, लेकिन इस जानकारी को उस चार्जशीट का हिस्सा नहीं बनाया गया, जो नवंबर 2006 में फाइल की गई थी. बल्कि, अक्तूबर 2012 में एटीएस ने बॉम्बे हाईकोर्ट को बताया था कि उसने सभी अभियुक्तों की तमाम सीडीआर्स नष्ट कर दीं थीं.

अपीलों से जुड़े वकील ने दिप्रिंट को बताया कि अपीलों में सीडीआर सबूत ख़ारिज किए जाने को भी चुनौती दी जाएगी, और अनुरोध किया जाएगा कि इस तथ्य का प्रतिकूल निष्कर्ष निकाला जाए कि पुलिस ने सीडीआर्स नष्ट कर दीं.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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