नई दिल्ली: पिछले पखवाड़े में मोदी सरकार ने विभिन्न मंत्रालयों में तैनात 31 अधिकारियों को अतिरिक्त और संयुक्त सचिव के पद पर प्रोन्नत किया है. इन 31 अफसरों में से केवल 12 भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी हैं, जबकि बाकी 19 गैर-आईएएस अधिकारी हैं.
कई सिविल सेवकों का मानना है कि यह कदम ‘बाबुओं का वर्चस्व’ तोड़ने के बढ़ते ट्रेंड और प्रतिनियुक्ति के लिए उपलब्ध आईएएस अधिकारियों की कमी से निपटने के सरकार के प्रयासों को ही दर्शाता है.
पिछले सात वर्षों में संयुक्त और अतिरिक्त सचिवों के स्तर पर आईएएस कैडर में काफी कमी आई है. कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की तरफ से इस साल जनवरी में अपडेट की गई एक सिविल लिस्ट बताती है कि केंद्र में संयुक्त सचिव के तौर पर तैनात आईएएस अधिकारियों की संख्या लगभग 77 है.
जबकि 2015 में नवंबर में प्रकाशित 7वें केंद्रीय वेतन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, उस साल ऐसे आईएएस अफसरों (कुल 391 संयुक्त सचिवों में से) का आंकड़ा 249 था.
अतिरिक्त सचिव के तौर पर तैनात आईएएस अधिकारियों की संख्या भी 2015 में 98 से गिरकर 76 हो गई है. केंद्रीय वेतन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र में अतिरिक्त सचिवों के लिए 108 पद हैं. डीओपीटी के एक सूत्र ने आगे कहा कि अतिरिक्त सचिवों के लिए एनकैडर्ड पद भी लगभग 34 रह गए हैं, जबकि बाकी इन-सीटू अपग्रेडेशन हैं. सूत्र ने बताया कि केंद्र सरकार के कुल 84 सचिवों में से 57 आईएएस अधिकारी हैं.
हाल के नियुक्ति आदेशों—जिनकी प्रतियां दिप्रिंट ने एक्सेस की हैं—पर एक गहन नजर डालें तो यह ट्रेंड साफ नजर आता है.
संयुक्त सचिवों के लिए 13 अगस्त के नियुक्ति आदेश के मुताबिक, बतौर संयुक्त सचिव पदोन्नत और मंत्रालयों और विभागों में तैनात 15 में से केवल दो अधिकारी आईएएस कैडर से हैं, जबकि बाकी केंद्रीय सिविल सेवा (ग्रुप ए) के गैर-आईएएस अधिकारी हैं. 16 अतिरिक्त सचिवों की नियुक्ति संबंधी 8 अगस्त के एक अन्य आदेश में 10 आईएएस अधिकारी हैं, बाकी अन्य केंद्रीय सेवाओं से हैं.
आईएएस, भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) और भारतीय वन सेवा (आईएफओएस) केवल तीन अखिल भारतीय सेवाएं हैं. केंद्रीय सिविल सेवाओं—जिनके अधिकारियों को सरकार आगे ला रही है—में भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस), भारतीय डाक सेवा (आईपीओएस), भारतीय लेखा परीक्षा और लेखा सेवा, भारतीय रक्षा लेखा सेवा, इंडियन रेलवे सर्विस ऑफ इलेक्ट्रिकल इंजीनियर्स (आईआरएसईई), इंडियन रेलवे ट्रैफिक सर्विस (आईआरटीएस) आदि शामिल हैं. इन संबद्ध सेवाओं में डोमेन एक्सपर्ट होते हैं, जबकि अखिल भारतीय सेवा देश में संघीय प्रशासन चलाने से संबंधित है.
2020 में वित्त आयोग में सचिव के पद से रिटायर हुए एक आईएएस अधिकारी अरविंद मेहता ने आईएएस अफसरों की संख्या में जबर्दस्त कमी की ओर इशारा करते हुए कहा कि 1990 और 2000 के दशक के दौरान उनकी भर्ती में भारी कमी आई है.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘1991 और 2012 के बीच सरकार ने आईएएस अधिकारियों की वार्षिक भर्ती को 130 से घटाकर 50 कर दिया. 2012 के बाद भर्ती में वृद्धि हुई और यह आंकड़ा प्रति वर्ष 180 हो गया. इसलिए अब पर्याप्त अधिकारी उपलब्ध नहीं हैं जिन्हें अतिरिक्त सचिव या संयुक्त सचिव के स्तर पर तैनात किया जा सके. 2012 के बाद के आईएएस बैच के अधिकारी अगले कुछ वर्षों में इस तरह के पदों के लिए पात्र होंगे, लेकिन फिलहाल इनकी काफी कमी है.’
उन्होंने कहा, ‘मंत्रालयों और विभागों में अतिरिक्त और संयुक्त सचिवों के तौर पर गैर-आईएएस अधिकारियों को नियुक्त करने के सरकार के फैसले से ऐसा लग सकता है कि वह आईएएस कैडर को घटाना चाहती है, लेकिन इसके कई अन्य कारण भी हैं—मुख्य तौर पर अफसरों की कमी एक बड़ी वजह है.’
मेहता ने आगे कहा कि वरिष्ठ पदों पर अधिक गैर-आईएएस अधिकारी की नियुक्ति नीति निर्माण और उस पर अमल को प्रभावित कर सकती है. उन्होंने कहा, ‘गैर-आईएएस अधिकारियों को जमीनी स्तर पर फीडबैक लेने की जरूरत होगी क्योंकि वे राज्य और जिला प्रशासन के कामकाज से पूरी तरह वाकिफ नहीं होते हैं.’
एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि सरकार के पास अफसरों की कमी के कारण ‘कोई विकल्प ही नहीं बचा है.’ उन्होंने कहा, ‘केंद्र को पदों को भरने के लिए अन्य केंद्रीय सेवाओं के अधिकारियों का अधिकतम इस्तेमाल करना होगा. अगले तीन से चार वर्षों में असंतुलन दूर हो जाएगा क्योंकि अधिक अधिकारी संयुक्त सचिव के रूप में केंद्र सरकार के पैनल में शामिल होने के पात्र होंगे.’
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‘बाबूगिरी’ पर क्या बोले थे प्रधानमंत्री
फरवरी 2021 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में आईएएस अधिकारियों को ‘बाबू’ कहा था और उनकी ताकत के बारे में बात की थी.
उन्होंने कहा था, ‘सब कुछ बाबू ही करेंगे. आईएएस बन गए मतलब वो फर्टिलाइजर का कारखाना चलाएंगे, केमिकल का कारखाना भी चलाएंगे. आईएएस हो गए तो वो हवाईजहाज भी चलाएंगे. ये कौन-सी बड़ी ताकत बनाकर रख दी है हमने? बाबुओं के हाथ में देश देकर हम क्या करने वाले हैं? हमारे बाबू भी देश के हैं, तो देश का नौजवान भी तो देश का है.’
मौजूदा समय में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को छोड़कर प्रधानमंत्री कार्यालय में तैनात शीर्ष 12 अधिकारियों में से 11 आईएएस हैं, जबकि एक संयुक्त सचिव आईएफएस (भारतीय विदेश सेवा) अधिकारी हैं.
केंद्र सरकार ने इस महीने संयुक्त सचिव स्तर के 15 पदों के लिए जारी नियुक्ति आदेश में सूचना और प्रसारण मंत्रालय में एक आईआरटीएस अधिकारी, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय में एक आईआरएसईई अधिकारी, और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति वित्त एवं विकास निगम में एक आईआरएस अधिकारी और डीओपीटी में एक आईपीओएस अधिकारी को तैनात किया है.
कई आईएएस अधिकारी इसे ‘सरकार में केंद्रीय सेवा के अधिकारियों को शामिल करने मिश्रण और प्रणाली को अधिक विविध बनाने’ के केंद्र के प्रयास का हिस्सा बताते हैं.
हालांकि, कई सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारी यह भी स्वीकार करते हैं कि यह कदम जमीनी स्तर पर ‘नीति निर्माण और उस पर अमल’ को प्रभावित कर सकता है.
कोयला और शिक्षा सचिव के रूप में सेवाएं देने वाले सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अनिल स्वरूप ने कहा, ‘यदि यही ट्रेंड रहा तो तो यह सिस्टम को बुनियादी स्तर पर दो तरीकों से प्रभावित करेगा—नीति निर्माण और कार्यान्वयन. किसी आईएएस अधिकारी की तैनाती के पीछे मकसद यही होता है कि जिला और राज्य स्तर पर सेवाओं के अनुभव और विशेषज्ञता का इस्तेमाल किया जा सके.
उन्होंने आगे स्पष्ट किया, ‘केंद्र सरकार में एक सचिव को नीतियों पर अमल के बारे में जानने-समझने की जरूरत होती है जिन्हें जिला प्रशासन के जरिये लागू किया जाता है. केंद्रीय सेवा अधिकारी (ग्रुप ए) या गैर-आईएएस अधिकारी समय के साथ इस बारे में सीख तो सकते हैं, लेकिन उन्हें कभी भी जमीनी स्तर पर काम करने का कोई अनुभव हासिल नहीं होगा.’
स्वरूप के मुताबिक, केंद्र सरकार में कार्यरत अधिकारियों को राज्य में अपने समकक्षों के साथ समन्वय स्थापित करना पड़ता है. उन्होंने कहा, ‘कई बार, ऐसा होता है कि कोई सचिव किसी विशेष राज्य के मुख्य सचिव को जानता है, और वे चीजों को जल्दी से आगे बढ़ाने के लिए मुद्दों पर चर्चा करते हैं. गैर-आईएएस अधिकारियों के लिए यह कोऑर्डिनेशन आसान नहीं हो पाता.’
आईएएस अधिकारियों की कमी पर पूर्व में उद्धृत एक सेवारत आईएएस अधिकारी ने कहा कि ‘लैटरल एंट्री इस कमी को दूर करने में काम नहीं आएगी.’
उन्होंने कहा, ‘आईएएस कैडर नियमों में संशोधन (जो केंद्र को आईएएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति पर अधिक नियंत्रण की अनुमति देगा) को अभी लागू किया जाना है. अगर ऐसा किया गया होता तो सरकार राज्यों के कुछ अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर तैनात कर सकती थी.’
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आईएएस कैडर ‘अद्वितीय’
केंद्र सरकार में सेवाएं दे चुके और राज्य के मुख्य सचिव के पद से रिटायर एक सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी रमेश नेगी ने भी दूसरों की राय से सहमति जताते हुए कहा कि केंद्र सरकार के पदों पर आईएएस अधिकारियों की कम पोस्टिंग की एक बड़ी वजह कैडर की कमी ही है.
उन्होंने कहा कि इस कमी के मद्देनजर ही ‘सरकार आईएएस अफसरों का वर्चस्व तोड़ने और सिस्टम में सभी केंद्रीय सेवाओं की ज्यादा से ज्यादा भागीदारी की कोशिश कर रही है.’
इस पर जोर देते हुए कि ‘भाजपा सरकार हमेशा सिस्टम में विविधता लाना चाहती थी, उन्होंने कहा, ‘विविधता स्वागतयोग्त है लेकिन किसी आईएएस अधिकारी का कौशल, जो उनके लिए अद्वितीय होता हैं, किसी अन्य तरीके से हासिल नहीं किया जा सकता.’
नेगी ने कहा कि आईएएस अधिकारी केंद्र में ‘सामाजिक-सांस्कृतिक-भौगोलिक अनुभव’ लेकर आते हैं. उन्होंने कहा, “वे राज्य स्तर की आकांक्षाओं और मुद्दों को राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाते हैं और प्रशासन के हर स्तर पर काम करके संघीय ढांचे को मजबूत करते हैं.’
2015 में केंद्रीय वेतन आयोग को एक रिप्रेंजेटेशन में आईएएस एसोसिएशन (केंद्रीय) ने कहा था कि आईएएस कैडर प्रशासन चलाने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है और साथ ही इस पर भी जोर दिया कि आईएएस और अन्य केंद्रीय सेवाओं के बीच अंतर को घटाना ‘हानिकारक’ होगा.
आईएएस अधिकारियों के लिए ‘वेतन में बढ़त’ बनाए रखने की मांग के साथ एसोसिएशन ने दलील दी, ‘एसोसिएशन ने अपने ज्ञापन में इस पर जोर दिया है कि एक आईएएस अधिकारी की स्थिति अद्वितीय है और नौकरशाही के स्तर पर इस सेवा को बाकियों से अलग रखने की कई वजहें हैं. एसोसिएशन को लगता है कि आईएएस और अन्य एआईएस और सेंट्रल ग्रुप ‘ए’ सेवाओं के बीच के अंतर को पाटना देश की आर्थिक वृद्धि और विकास के लिए हानिकारक होगा.’
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