मुंबई, 23 अप्रैल (भाषा) मुंबई की एक अदालत ने बुधवार को केईएम अस्पताल के एक वरिष्ठ प्रोफेसर को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया, जिनके खिलाफ महिला चिकित्सकों का कथित रूप से यौन उत्पीड़न करने का मामला दर्ज किया गया है।
अदालत ने कहा कि प्रबल आशंका है कि वह पीड़ितों को प्रभावित करने के साथ-साथ जांच में बाधा भी डाल सकते हैं।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गौरी कावडीकर ने मध्य मुंबई में सिविल अस्पताल में फोरेंसिक मेडिसिन एवं टॉक्सिकोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. रवींद्र देवकर की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी।
देवकर के खिलाफ मारपीट, यौन उत्पीड़न और महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के इरादे से किए गए इशारों से संबंधित भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज है।
पुलिस के अनुसार, 32 वर्षीय एक सहायक प्रोफेसर ने शुरू में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें देवकर पर बार-बार अनुचित टिप्पणी करने और शारीरिक छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया गया था। बाद में, पांच और चिकित्सकों ने उनपर इसी तरह के आरोप लगाए।
आरोपों के अनुसार, देवकर महिला चिकित्सकों, कर्मचारियों और छात्राओं को सेल्फी लेने के लिए अपनी ओर खींचते थे और उन्हें अनुचित तरीके से छूते थे।
अतिरिक्त लोक अभियोजक ज्योति सावंत ने अदालत को बताया कि आवेदक (देवकर) ने अपने मोबाइल फोन से पीड़ितों की तस्वीरें लीं, जो अब तक उनके पास से बरामद नहीं हुई हैं।
दूसरी ओर, बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि आवेदक के खिलाफ ‘झूठी और मनगढ़ंत प्राथमिकी’ दर्ज की गई है।
अदालत ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद कहा, ‘यह स्पष्ट है कि आवेदक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पीड़ितों को प्रभावित करने या उन पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो इस बात की प्रबल आशंका है कि आवेदक (देवकर) जांच में बाधा डाल सकता है।’
अदालत ने कहा कि ‘आवेदक के उच्च पद पर आसीन होने के कारण, वह पीड़ितों को प्रभावित करने की प्रबल स्थिति में है।”
भाषा जोहेब माधव
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