गुरुग्राम: राजस्थान से प्रेरणा लेते हुए, हरियाणा सरकार एक विधेयक लाने की तैयारी कर रही है, जिसमें मृत शरीर के साथ विरोध प्रदर्शन करने वालों को एक साल तक की कैद और 50,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान रखा जाएगा.
‘हरियाणा मृत शरीर सम्मान विधेयक-2023’, में सरकार को स्थानीय अथॉरिटीज के द्वारा ऐसे शवों का अंतिम संस्कार करने का अधिकार देने का प्रस्ताव मौजूदा मसौदा विधेयक में पारित किया गया है.
गृह विभाग ने मंजूरी के लिए पिछले सप्ताह गृह मंत्री अनिल विज को विधेयक सौंपा था, लेकिन उन्होंने हरियाणा विधानसभा के शीतकालीन सत्र से पहले अधिकारियों को इसपर और अधिक होमवर्क करने की सलाह दी है.
विज ने सोमवार को दिप्रिंट से कहा कि उन्होंने गृह विभाग को अन्य राज्यों द्वारा पारित इस तरह के बिल और कानूनों की प्रभावकारिता का पता लगाने के लिए एक अध्ययन करने का निर्देश दिया है. मंत्री ने कहा कि उन्हें बताया गया कि राजस्थान ने इस संबंध में एक समान विधेयक पारित किया है.
जुलाई में, अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने राजस्थान शवों का सम्मान विधेयक, 2023 पारित किया, जिसमें शवों के साथ विरोध प्रदर्शन करने वालों को जुर्माने के साथ पांच साल तक की कैद की सजा देने का प्रावधान है. यह परिवार को जल्द से जल्द दाह संस्कार के लिए उत्तरदायी बनाता है. यदि परिवार मृत शरीर का दाह संस्कार करने से इनकार करता है, तो पब्लिक अथॉरिटी अंतिम संस्कार कर सकते हैं.
चूंकि प्रस्तावित विधेयक में अधिकारी विरोध प्रदर्शन कर रहे परिवार के सदस्यों के शव को अपने कब्जे में ले सकता है. हालांकि विज ने यह भी बताया कि वह इस मामले में कुछ और स्पष्टीकरण चाहते थे और साथ ही प्रदर्शनकारियों पर ऐसी कार्रवाई के प्रभाव के बारे में भी जानना चाहते थे.
अधिकारी ने बताया, “नगरपालिका अधिकारियों के पास पहले से ही अज्ञात शवों का अंतिम संस्कार करने का काम है. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि उन नियमों के प्रावधानों और विधेयक के प्रावधानों में कोई टकराव न हो. साथ ही, मैंने अधिकारियों से उन राज्यों में शवों को कब्जे में लेने की सरकारी कार्रवाई के प्रभाव का अध्ययन करने को कहा है जहां यह (कानून) पहले ही पारित हो चुका है. अगर हमने इस प्रभाव का अध्ययन नहीं किया तो कल हमें प्रदर्शनकारियों की ऐसी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ सकता है जो कोई भी सरकार नहीं देखना चाहेगी.”
ड्राफ्ट बिल में क्या क्या लिखा गया है जो जानने वाले एक अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया कि यह सभी प्रकार के विरोध प्रदर्शनों को एक आपराधिक अपराध घोषित करता है जिसमें एक साल तक की कैद और 50,000 रुपये तक का जुर्माना हो सकता है.
अधिकारी ने कहा, “बिल के प्रावधानों के तहत, न केवल मृतक के परिवार के सदस्यों, बल्कि विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वालों पर भी मुकदमा चलाया जाएगा. इसमें यह भी प्रावधान है कि अधिकारी शव को अपने कब्जे में ले सकते हैं और उसका अंतिम संस्कार स्वयं कर सकते हैं ताकि मृतक का अपमान न हो.”
राष्ट्रीय किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष प्रह्लाद सिंह भारूखेड़ा ने कहा कि प्रस्तावित विधेयक असहमति की आवाज और विरोध प्रदर्शन के अधिकार को दबाने का एक प्रयास है.
भारूखेड़ा ने कहा, “कोई भी समझदार व्यक्ति अपने प्रियजनों की मृत्यु के बाद उनके दाह संस्कार में देरी नहीं करना चाहेगा जब तक कि परिस्थितियां ऐसी न हों. अधिकांश मामलों में, जिनका मैं हिस्सा रहा हूं, मैंने देखा है कि ऐसा संबंधित अधिकारियों की असंवेदनशीलता के कारण होता है. जब अन्य सभी कदम परिणाम देने में विफल हो जाते हैं तो लोग ऐसा चरम कदम उठाते हैं.”
वहीं, रोहनात शहीद समिति के संयोजक प्रदीप कौशिक ने कहा कि जब कोई रास्ता काम नहीं आता तो लोग ऐसे उग्र आंदोलन का सहारा लेते हैं. उन्होंने आगे एक ग्रामीण का उदाहरण दिया जो सितंबर में आत्महत्या करके मर गया और उसने एक सुसाइड नोट छोड़ा जिसमें कुछ लोगों पर उसे अपमानित करने का आरोप लगाया गया.
कौशिक ने बताया, “हम अपने गांव के लिए न्याय की मांग को लेकर धरने पर बैठे थे.आखिरकार, जब अधिकारियों ने हमारी मांगें मानीं, तब तक लगभग एक सप्ताह बीत चुका था. कोई नहीं चाहता कि मृतकों का अपमान किया जाए.”
(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: झूठी FIR को लेकर रिटायर्ड कर्नल ने जीती कानूनी लड़ाई, जज ने कार पार्किंग में आकर पड़ोसी को सुनाई सजा