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Saturday, 2 November, 2024
होमदेशगुस्सा, दहशत, राजनीति—बिलकिस के दोषियों की रिहाई ने गुजरात के मुसलमानों की 2002 की यादें ताजा कर दीं

गुस्सा, दहशत, राजनीति—बिलकिस के दोषियों की रिहाई ने गुजरात के मुसलमानों की 2002 की यादें ताजा कर दीं

इन लोगों की रिहाई को लेकर अहमदाबाद के नरोदा और नरोदा पटिया—जहां 2002 के दंगों के दौरान भीड़ ने कथित तौर पर 97 से अधिक लोगों की हत्या कर दी थी—में मुस्लिम परिवार नाराज तो हैं, लेकिन इस मुद्दे को फिर से तूल नहीं देना चाहते हैं.

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नरोदा: नरोदा और नरोदा पटिया में वाहनों के प्रवेश के लिए सभी रास्तों पर शुक्रवार को बैरिकेडिंग कर दी गई थी. 2002 में गुजरात दंगों का सबसे भयवाह दौर झेलने वाले इन इलाकों में पुलिस की मौजूदगी को आमतौर पर कुछ अवांछित घटना से जोड़कर देखा जाता है.

लेकिन शुक्रवार को यह सब किया गया था नरोदा की सड़कों पर लगे आकर्षक मेले के लिए, जहां बच्चे ट्रैम्पोलिन पर कूद रहे थे, एक युवा लड़की रस्सी पर चलकर अपने करतब से दर्शकों को हतप्रभ कर रही थी, जबकि वयस्क लोग फुटपाथों पर लगे विभिन्न स्टाल से सामान खरीद रहे थे.

2002 के बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार मामले में 11 दोषियों की रिहाई पर लेकर जारी विवाद के बीच नरोदा और नरोदा पटिया—जहां 2002 के दंगों के दौरान लगभग 5,000 लोगों की सशस्त्र भीड़ ने 97 से अधिक लोगों को मार डाला था—में जीवन सामान्य ढर्रे पर चल रहा है.

करीब 174 किलोमीटर दूर रंधिकपुर में सामूहिक दुष्कर्म के दोषी 11 लोगों को रिहाई देने के गुजरात सरकार के फैसले से मोहल्ले के मुस्लिम परिवार नाराज हैं. लेकिन, नरोदा-नरोदा पटिया में दंगों के बाद के दो दशकों में सबसे शांत स्थिति नजर आई है, हालांकि 2002 के घाव पूरी तरह भरे नहीं है लेकिन स्थानीय निवासी अब इस मसले को तूल देने के पक्ष में कतई नहीं हैं.

हुसैना मंसूरी—जिनका घर 2002 में मलबे में तब्दील कर दिया गया था—ने दिप्रिंट से कहा, ‘बिलकिस बानो के साथ जो हुआ, उससे हमें बुरा लगता है. लेकिन, हम इसमें कुछ नहीं कर सकते. अगर अल्लाह चाहेगा तो उसे न्याय मिलेगा.’

Hussaina Mansoori, whose house was reduced to a rubble during the 2002 riots | Photo: Manasi Phadke | ThePrint
हुसैना मंसूरी, 2002 में जिसके घर को तोड़कर तहस-नहस कर दिया गया । मानसी फडके । दिप्रिंट

गुजरात के रंधिकपुर गांव में भीड़ ने बानो के साथ सामूहिक बलात्कार किया था और अभियोजन पक्ष के मुताबिक, मार्च 2002 के गोधरा दंगों के दौरान जान बचाकर भाग रहे उसके परिवार के चौदह सदस्यों—जिसमें बिलकिस की तीन साल की बेटी सालेहा भी शामिल है—को दंगाइयों ने मार डाला था. बिलकिन बानो उस समय 19 वर्ष की थी और पांच महीने की गर्भवती थी. उसके 11 गुनाहकारों को छोड़ने का फैसला ऐसे समय पर सामने आया है जब एक साल के अंदर राज्य में एक नई विधानसभा के लिए चुनाव होना है.

बानो के मामले के बात करते हुए मंसूरी के अपने जख्म भी ताजा हो गए.

उन्होंने कहा, ‘हम वो समय कभी नहीं भूलेंगें. वे रात में पत्थर, चाकू, दरांती लेकर आए थे. उन्होंने कुकिंग गैस सिलेंडर में आग लगाकर हमारा घर उड़ा दिया. उस समय, मोहल्ले में कम ही घर थे, इसलिए बाहर निकलने के चार-पांच रास्ते थे. हम सब अपनी जान बचाकर भागे थे.’

उन्होंने कहा कि अगर आज ऐसा हो तब तो और भी ज्यादा जानें चली जाएंगी. उन्होंने कहा, ‘और भी घर बन गए हैं, और अब इस मोहल्ले से बाहर निकलने के भी दो ही रास्ते हैं.’

मंसूरी के घर से कुछ ही दूर रहने वाली रहीमा भी 2002 के दंगों को याद कर सिहर उठती है. उसने कहा, वह ‘इस बारे में बात करने से कतराती है.’ लेकिन साथ ही बताया कि उसके परिवार ने खुद को फिर से खड़ा किया है. रहीमा ने कहा, ‘मेरे बेटे आणंद, नादियाड़, सूरत जैसे शहरों में काम कर रहे हैं. उनमें से एक की अपनी अच्छी-खासी दुकान है. हम अब शांति से जी रहे हैं.’


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‘कहीं भी तनाव हो तो हम बाहर चले जाते हैं’

गोधरा ट्रेन जलने की घटना के एक दिन बाद 28 फरवरी, 2002 को नरोदा और नरोदा पटिया में एक बड़ी भीड़ जमा हो गई थी और उसने क्षेत्र के मुस्लिम निवासियों पर हमला कर दिया, जिसमें कथित तौर पर 97 लोग मारे गए और 33 अन्य घायल हो गए.

घटना के दस साल बाद एक विशेष अदालत ने मामले में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्व विधायक माया कोडनानी सहित 32 आरोपियों को दोषी ठहराया. 2018 में गुजरात हाई कोर्ट ने 12 आरोपियों पर दोष बरकरार रखे, लेकिन कोडनानी को बरी कर दिया.

नरसंहार के दो दशक हो चुके हैं, लेकिन अब भी, देश में कहीं भी सांप्रदायिक संघर्ष होने पर नरोदा और नरोदा पटिया के तमाम मुसलमान कुछ दिनों के लिए बाहर चले जाना ही बेहतर समझते हैं.

शिरीन, जिनकी मां नरोदा में रहती हैं, ने दिप्रिंट को बताया, ‘2002 के दंगों के बाद से यहां कोई अप्रिय घटना नहीं हुई है. लेकिन, उस समय जो हुआ उसे भुला पाना नामुमकिन है. जब भी देश में कहीं अशांति का कोई खतरा होता है, हममें से कुछ जिनके पास राज्य में अन्य किसी जगह पर है, बस कुछ दिनों के लिए यहां से बाहर चले जाते हैं.’

पड़ोस में रहने वाले रिक्शा चालक रियाज कुरैशी ने बताया कि कैसे इस साल के शुरू में दिल्ली के जहांगीरपुरी में दंगों के बाद कुछ परिवार यहां से चले गए थे, और यही स्थिति तब रही थी जब अयोध्या राम मंदिर पर फैसला आने वाला था.

उन्होंने कहा, ‘यहां कोई समस्या नहीं है, लेकिन हमारे क्षेत्र में एक पत्थर भी गिरता है तो हम दहशत में आ जाते हैं.’

कुछ लोगों का तर्क है कि कुल मिलाकर 2002 के बाद नरोदा और नरोदा पटिया में मुसलमानों की संख्या में गिरावट आई है.

बाबूभाई आदि मूसाभाई कारवां ने दिप्रिंट को बताया, अपनी आजीविका गंवा देने वाले कई लोग यहां से चले गए. समय के साथ आस-पड़ोस में लोगों की संख्या कम हो गई है. कुछ लोग जो रह गए हैं, वे अपने बच्चों को गुजरात के अन्य हिस्सों में भेज रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘यहां शांति तो है लेकिन एक दहशत की भावना भी है. हम यहां की स्थिति के बारे में बात करते-करते थक चुके हैं. कुछ भी बदलने वाला नहीं है.’

A fair in the area | Photo: Manasi Phadke | ThePrint
शहर में मेला । मानसी फडके । दिप्रिंट

हुसैना के बेटे साहिल मंसूरी ने हालात के लिए राजनेताओं को जिम्मेदार ठहराया.

साहिल ने कहा, ‘इस क्षेत्र में (दंगों के बाद से) कोई समस्या नहीं है. हमारे सभी हिंदू भाई हमारे लिए अच्छे हैं. हम सब शांति के साथ मिलकर रहना चाहते हैं. वो तो केवल राजनेता हैं जो कुछ लोगों का ब्रेनवॉश करते रहते हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘अन्यथा आप देख ही लीजिए, बाहर एक मेला लगा है. हमारे बच्चे उनके बच्चों के साथ हैं. हम नमाज के बाद बाहर निकले हैं. कोई संघर्ष नहीं चाहता. वो तो ये राजनेता हैं जिन्हें हमें सुधारने की जरूरत है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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