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Sunday, 28 April, 2024
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तेलुगु राज्यों में IAS अफसरों को ढंग से ‘राज्याभिषेक’ कराना पसंद है, पुजारियों का आशीर्वाद होना जरूरी

के.एस. जवाहर रेड्डी ने जब आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव के तौर पर पदभार संभाला, तो इस दौरान वैदिक मंत्रोच्चार के साथ पूजा कराने के लिए पुजारी मौजूद थे. अन्य आईएएस और आईपीएस अधिकारी भी कोई नया पद संभालते समय आशीर्वाद लेना नहीं भूलते हैं.

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हैदराबाद: आंध्र प्रदेश में पिछले हफ्ते के.एस. जवाहर रेड्डी ने जब बतौर मुख्य सचिव कार्यभार संभाला तो राज्य सचिवालय में सम्पन्न कार्यवाही में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच आधिकारिक तौर पर कागजों पर हस्ताक्षर करना, भाषण देना और मंदिर के पुजारियों के एक समूह से आशीर्वाद लेना शामिल था.

वैसे तो महत्वपूर्ण मौकों पर धार्मिक अनुष्ठान कराने की प्रथा आमतौर पर राजनेताओं के जुड़ी रही है लेकिन आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे तेलुगु राज्यों में तमाम सिविल सेवक भी ऐसा करने में पीछे नहीं रहते हैं.

पिछले कुछ सालों से भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारियों और यहां तक कि शीर्ष पुलिस अफसरों के लिए भी मंदिर जाकर आशीर्वाद लेना या अपने कार्यस्थल पर पुजारियों से धार्मिक अनुष्ठान आदि कराना कोई असामान्य बात नहीं रही है.

यद्यपि आलोचकों का तर्क है कि लोक सेवकों के लिए इस तरह अपनी आस्था का प्रदर्शन करना अनुचित है, वहीं दूसरों का मानना है कि दैवीय आशीर्वाद लेने में कोई बुराई नहीं है, खासकर देश के उस हिस्से में जहां मंदिरों के प्रशासन की देखरेख के लिए आधिकारिक बंदोबस्ती विभाग है.

आंध्र प्रदेश के मुख्य सचिव रहे और यह पद संभालने के दौरान मंदिरों का दौरा करने वाले रिटायर्ड आईएएस अधिकारी आई.वाई.आर कृष्णा राव कहते हैं, ‘मुख्य सचिव किसी राज्य में सिविल सेवाओं का प्रभारी होता है, और यहां तक कि मंदिरों की देखरेखी की जिम्मेदारी संभालने वाला बंदोबस्ती विभाग उसके अधीन ही आता है. तो, अगर कुछ मंदिरों के पुजारी कार्यभार संभालने के दौरान उन्हें आशीर्वाद देते हैं तो इसमें गलत क्या है? यह पूरी तरह से किसी की व्यक्तिगत आस्था पर निर्भर करता है.’

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मुख्य सचिव बनने से पहले आईएएस अधिकारी जवाहर रेड्डी ने 19 महीने तक तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) के कार्यकारी अधिकारी के तौर पर अपनी सेवाएं दी थीं, जिसके तहत वह दुनिया के सबसे धनी मंदिरों में से एक का प्रबंधन संभालते थे. वहां से ट्रांसफर के बाद भी उन्होंने भगवान वेंकटेश्वर का धन्यवाद किया था और मंदिर दर्शन करने गए थे.

लेकिन रेड्डी कोई अकेले नहीं हैं, उनके पहले भी आंध्र के मुख्य सचिव का पद संभालने वाले कई अधिकारियों ने मंदिर के पुजारियों से आशीर्वाद लिया था.

जब आईएएस अधिकारी आदित्यनाथ दास ने पिछले साल जनवरी में यह शीर्ष पद संभाला था, तो पदभार ग्रहण करते समय उन्होंने भी मंदिर के पुजारियों से आशीर्वाद लिया था. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने अधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रसिद्ध तिरुमाला तिरुपति मंदिर का दौरा भी किया जहां पुजारियों ने कथित तौर पर उन पर आशीर्वाद ‘बरसाया’ था.

2019 में, आईएएस अधिकारी नीलम साहनी आंध्र प्रदेश की पहली महिला मुख्य सचिव बनीं और पदभार ग्रहण करने के तुरंत बाद विजयवाड़ा में कनक दुर्गा मंदिर में दर्शन करने और आशीर्वाद लेने पहुंचीं.

पुलिस और पूजा-अर्चना

ऐसा नहीं है कि केवल नवनियुक्त मुख्य सचिव ही आध्यात्मिक गुरुओं से आशीर्वाद लेते हैं. अभी पिछले हफ्ते ही वारंगल जिला पुलिस आयुक्त के तौर पर तैनाती पाने वाले भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी ए.वी. रंगनाथ उसी जिले के एक मंदिर में दर्शन करने पहुंचे.

गौतम सवांग भी इसी श्रेणी में आते हैं, जो 2022 की शुरुआत तक आंध्र प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) के पद पर तैनात थे. फरवरी में जब उन्होंने आंध्र प्रदेश लोक सेवा आयोग (एपीपीएससी) के अध्यक्ष का पद संभाला, तो उनके कार्यालय में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच आशीर्वाद देने के लिए कुछ पुजारी भी मौजूद थे.

हालांकि, आंध्र के पूर्व डीजीपी अरविंद राव कहा है कि इसे अभी कोई ‘ट्रेंड’ नहीं कहा जा सकता है, और ऐसे उदाहरणों को बस एक घटना के तौर पर देखा जाना चाहिए.

राव ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं ऐसी बातों में कभी विश्वास नहीं करता. मेरी पोस्टिंग में, एक ऐसा मौका भी आया था जब मुझे ‘अमावस्या’ के दिन कार्यभार संभालना था (जो कि आमतौर पर अशुभ माना जाता है). लेकिन मैंने उसी दिन काम संभाला. इसलिए मेरा मानना है कि यह व्यक्तिगत आस्थाओं से जुड़ा मामला है.’


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‘आस्था का इस तरह प्रदर्शन नहीं करना चाहिए’

यद्यपि देशभर के सिविल सेवक धार्मिक स्थलों में जाते हैं और अपनी मान्यताओं और आस्थाओं के अनुरूप पूजा-अर्चना भी करते हैं लेकिन, ये आम तौर पर निजी मामले होते हैं. जो बात तेलुगु राज्यों को अलग करती है, वो यह है कि यहां ऐसे धार्मिक अनुष्ठान अक्सर आधिकारिक क्षेत्र में आयोजित किए जाते हैं.

यह सब सिर्फ आंध्र सचिवालय तक ही सीमित नहीं है. उदाहरण के तौर पर, जब अनुराग जयंती ने पिछले साल तेलंगाना के राजन्ना सिरिसिला जिले में कलेक्टर के तौर पर पदभार संभाला, तो वेमुलावाड़ा मंदिर के पुजारी कथित तौर पर उन्हें आशीर्वाद देने पहुंचे.

तेलंगाना के एक शीर्ष पुजारी ने दिप्रिंट को बताया कि ‘स्थिति ऐसी हो गई है’ कि अधिकारी अपने निजी और पेशेवर जीवन को पूरी तरह अलग नहीं कर पा रहे हैं.

हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि इस लेकर चिंता करने की कोई बात नहीं है. उन्होंने कहा, ‘ज्यादातर अधिकारी कार्यालय में किसी देवी-देवता की तस्वीर रखना पसंद करते हैं, तो क्या इसे गलत कहा जाएगा? जब तक यह उनके काम में बाधा नहीं डालता, तो क्या फर्क पड़ता है?’

कृष्णा राव भी इस विचार से सहमत हैं. उन्होंने कहा, ‘ऐसी बातों पर कोई आपत्ति नहीं उठा सकता. उदाहरण के तौर पर कलेक्टर को ही ले लें तो वह जिले का प्रमुख होता है. इसलिए, तकनीकी तौर पर मंदिरों के मामलों को देखना उसकी निगरानी में ही आता है.’

लेकिन, हर कोई इससे सहमत नहीं है. कभी आंध्र प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव के तौर पर काम करने वाले रिटायर आईएएस अधिकारी पी.वी. रमेश ने कहा कि जब सिविल सेवाओं से जुड़े किसी व्यक्ति की बात आती है, तो ‘उसे अपनी आस्था का इस तरह प्रदर्शन नहीं करना चाहिए.’

रमेश ने कहा, ‘इस तरह की गतिविधियां सही संदेश नहीं देतीं और यह सब उन्हें शोभा नहीं देता. धर्मनिरपेक्षता और निजी आस्था में बमुश्किल ही कोई अंतर है.’

आंध्र के एक अन्य आईएएस अधिकारी का कहना कि कुछ धार्मिक अनुष्ठानों की योजना खुद सिविल सेवक नहीं बनाते हैं. अधिकारी ने यह दावा भी किया, ‘कुछ मामलों में पुजारियों को नौकरशाह नहीं बल्कि उनके फॉलोअर बुलाते हैं. अधिकारी बस उनकी बात मान लेते हैं. और आमतौर पर यह सारा आयोजन एक निजी मामले के तौर पर किया जाता है.’

राजनेताओं ने दिखाया रास्ता

यह तो जगजाहिर है कि तमाम राजनेता आमतौर पर ईश्वर के आशीर्वाद के साथ ही कोई काम शुरू करते हैं.

तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) ने तो 2016 में एक अच्छा-खासा विवाद ही खड़ा कर दिया था जब उन्होंने अपने आध्यात्मिक गुरु चिन्ना जीयर स्वामी को अपने कार्यालय में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया. उस दौरान की तस्वीरों में गुरु मुख्यमंत्री की सीट पर बैठे नजर आ रहे हैं जबकि केसीआर उनके बगल में खड़े हैं.

वैसे भी, केसीआर हमेशा खुद को एक धर्मनिष्ठ हिंदू के तौर पर पेश करते रहे हैं, चाहे राज्य के कल्याण के लिए ‘यज्ञ’ कराना हो (एक यज्ञ पांच दिनों तक चला और इसमें 15 करोड़ रुपये खर्च हुए) या मंदिरों के विकास के लिए भारी-भरकम बजट आवंटित करना अथवा किसी भी महत्वपूर्ण मौके के लिए शुभ मुहूर्त पर वैदिक पुजारियों से आशीर्वाद लेना.

अक्टूबर में, जब उन्होंने अपनी राजनीतिक पार्टी का नाम तेलंगाना राष्ट्र समिति से बदलकर भारत राष्ट्र समिति किया तो वह पुजारियों से सलाह लेना और ‘शुभ’ समय पर ऐसा करना नहीं भूले.

आंध्र के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी भी खुद को आस्तिक दर्शाने में कोई संकोच नहीं करते. जब उन्होंने 2019 में मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली तो पदभार ग्रहण करते समय एक हिंदू मंदिर के पंडित, एक ईसाई पादरी और एक इमाम को आशीर्वाद देने के लिए बुलाया.

2019 के चुनावों से पहले उनकी पार्टी युवजन श्रमिक रायथू कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) ने जगन की सफलता के लिए 20 महीने तक हवन किया था.

जब आंध्र के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू के बेटे नारा लोकेश को 2017 में उनके पिता के शासनकाल के दौरान एमएलसी चुना गया था, तो उन्होंने कथित तौर पर काउंसिल हॉल में कार्यभार नहीं संभाला था, जबकि आमतौर पर यही प्रथा है. इसके बजाये उन्होंने एक अलग मीटिंग रूप में शपथ ली. ऐसा एक ज्योतिषी की सलाह पर किया गया था, और लोकेश के कार्यभार संभालने के मौके पर पुजारियों ने मंत्रोच्चारण भी किया था.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़नी के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रावी द्विवेदी)


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