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रविवार, 11 मई, 2025
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गंगा नदी में करीब तीन दशक से लुप्तप्राय कछुए की प्रजाति को दोबारा छोड़ा गया

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नयी दिल्ली, 30 अप्रैल (भाषा) कछुए की लुप्तप्राय प्रजाति ‘रेड क्राउन्ड रुफ्ड टर्टल’ को सरकार के गंगा नदी की सफाई और इसकी जैव विविधता को बढ़ावा देने के एक अहम कार्यक्रम के तहत फिर से इस नदी में छोड़ा गया है।

केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सी आर पाटिल बुधवार को सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर जारी पोस्ट में कहा, ‘‘26 अप्रैल को उत्तर प्रदेश के हैदरपुर आद्रभूमि में 20 ऐसे कछुए छोड़े गए हैं।’’

यह हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य के भीतर बिजनौर गंगा बैराज के पास यूनेस्को मान्यता प्राप्त रामसर आद्रभूमि है। यह मानव निर्मित आर्द्रभूमि 1984 में नदी के बाढ़ के मैदान पर मध्य गंगा बैराज के निर्माण के साथ बनाई गई थी।

मंत्री ने कहा कि उत्तर भारत में विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुके ‘रेड क्राउन्ड रुफ्ड टर्टल’ को सावधानीपूर्वक योजनाबद्ध वैज्ञानिक पुनर्वास प्रयास के माध्यम से नदी में पुनः बसाया गया है।

उन्होंने इसे गंगा नदी की पारिस्थितिकी को बहाल करने में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर बताया। उनके मंत्रालय के अनुसार, पिछले 30 वर्षों में गंगा की मुख्य धारा में वयस्क रेड-क्राउन्ड रूफ्ड टर्टल के देखे जाने की कोई पुष्टि नहीं हुई है।

पुनः बसाने की परियोजना को सफल बनाने के लिए, प्रत्येक कछुए में ट्रैकिंग डिवाइस लगाया गया है, ताकि उनके आवागमन के पैटर्न और पर्यावरण के साथ अनुकूलन की प्रगति पर नजर रखी जा सके।

अधिकारियों के अनुसार, कछुओं को पुनः बसाने की प्रक्रिया के लिए दो समूहों में विभाजित किया गया था।

उन्होंने बताया कि एक समूह को हैदरपुर आद्रभूमि बैराज के ऊपरी हिस्से में तथा दूसरे को गंगा की मुख्य धारा के निचले हिस्से में छोड़ा गया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि कछुओं को फिर से बसाने के लिए कौन सी विधि अधिक प्रभावी है।

अधिकारियों ने बताया कि अगले दो वर्षों तक इन कछुओं पर नजर रखी जाएगी।

मंत्रालय ने कहा कि इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश वन विभाग की मदद से इस प्रजाति को गंगा में स्थिर तरीके से बसाना है।

पाटिल ने इसका श्रेय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को देते हुए ‘एक्स’ पर कहा, ‘‘ माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रहे नमामि गंगे मिशन के तहत गंगा नदी में तीन दशक बाद रेड-क्राउन रूफ्ड टर्टल प्रजाति की वापसी संभव हो पाई है। यह वही प्रजाति है, जिसे उत्तर भारत की सबसे संकटग्रस्त प्रजातियों में गिना जाता था।’’

उन्होंने कहा, ‘‘गंगा की सफाई से आगे बढ़कर अब जैवविविधता की बहाली पर केंद्रित नमामि गंगे मिशन, भारत की पर्यावरणीय प्रतिबद्धता का सशक्त उदाहरण बन चुका है। यह पुनर्प्रवेश गंगा की पारिस्थितिकी को पुनर्स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, और यह दिखाता है कि सक्षम नेतृत्व, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और संस्थागत समन्वय से बड़े बदलाव संभव हैं।’’

पाटिल ने कहा, ‘‘यह सिर्फ एक नदी नहीं, पूरे भारत की जीवनधारा है, और इसके संरक्षण के लिए हमारी प्रतिबद्धता अडिग है।’’

भाषा धीरज पवनेश

पवनेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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