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सोमवार, 2 जून, 2025
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छत्रपति संभाजीनगर के बुजुर्ग ने बाबा साहेब आंबेडकर संग बिताये पलों की यादें साझा कीं

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(आदित्य वाघमारे)

छत्रपति संभाजीनगर, 13 अप्रैल (भाषा) ऐसे में जब भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर की 135वीं जयंती मनाने की पूरे देश में तैयारियां जारी हैं, महाराष्ट्र के छत्रपति संभाजीनगर में रहने वाले 103 वर्षीय लक्ष्मण खोतकर ने उन दिनों को याद किया जब उन्होंने आंबेडकर के लिए काम करने के वास्ते रेलवे की अपनी नौकरी छोड़ दी थी।

वर्ष 1948 में, खोतकर निजाम स्टेट रेलवे में गेट वॉचमैन के रूप में कार्यरत थे। उसी दौरान उन्हें सुभेदारी सर्किट गेस्ट हाउस में काम करने का अवसर मिला, जहां आंबेडकर मिलिंद कॉलेज के निर्माण के दौरान रुकते थे। मिलिंद कॉलेज की स्थापना आंबेडकर ने की थी।

खोतकर ने कहा, “मैं शेरनापुर ((छत्रपति संभाजीनगर के उत्तर में स्थित एक रेलवे गेट) में तैनात था। मुझे पता चला कि बाबासाहेब एक कॉलेज का निर्माण कर रहे हैं, तो मैंने रेलवे की नौकरी छोड़ दी और कॉलेज निर्माण स्थल पर आया और ठेकेदार अप्पासाहेब गायकवाड और वाराले नाम के एक व्यक्ति को मुझे काम पर रखने का अनुरोध किया।”

खोतकर ने बताया कि उन्हें चौकीदार और एक सहायक का काम मिल गया जिसके लिए उन्हें प्रतिदिन 1.50 रुपये मिलते थे।

खोतकर ने कहा, “रेलवे में मुझे 15 रुपये प्रति महीने मिलते थे, लेकिन मुझे कॉलेज में 1.50 रुपये प्रतिदिन मिलते थे। हर दिन काम मिलने की कोई गारंटी नहीं थी और आय नियमित नहीं थी। उस समय मेरा परिवार छोटा था और 16 किलोग्राम ज्वार मारे परिवार के लिए पर्याप्त था जिसके लिए एक रुपये खर्च करने होते थे।’’

खोतकर ने बताया कि वह आंबेडकर के शहर के दौरे के दौरान उनकी जरूरतों का ध्यान रखते थे। उन्होंने गर्व के साथ कहा, ‘‘बाबासाहेब के आगमन के बारे में मुझे पहले ही जानकारी मिल जाती थी और मैं उनके प्रवास के दौरान उनकी हर चीज का ध्यान रखता था।’’

उन्होंने कहा, “बाबासाहेब हमेशा पूछते कि हमने खाना खाया या नहीं। कई बार मुझे और अपने वाहन चालक मारुति को साथ बैठाकर नाश्ता भी कराते थे।”

खोतकर ने एक घटना याद करते हुए कहा, “एक दिन मैं खाना खाए बिना ड्यूटी पर चला आया था। मेरी पत्नी गोद में बेटे को लेकर गेट पर मुझे खाना देने आईं। बाबासाहेब ने जब देखा तो मुस्कुराते हुए कहा कि क्या वो सोचती हैं कि उसका पति काम पर भूखा रहेगा?”

उस दिन आंबेडकर ने उनके छह महीने के बेटे को आशीर्वाद भी दिया था।

आज भी खोतकर मिलिंद कॉलेज के पास ही रहते हैं और आंबेडकर के साथ बिताये हर पल को गर्व से याद करते हैं।

भाषा राखी अमित

अमित

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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