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Saturday, 23 November, 2024
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पंजाब पुलिस ने अमृतपाल को किया असम एयरलिफ्ट, 18वीं सदी में बनी डिब्रूगढ़ जेल क्यों है इतनी खास

पंजाब पुलिस ने अमृतपाल को दिल्ली की तिहाड़ भेजने का प्लान बनाया था, लेकिन वहां कईं पंजाबी गैंगस्टर्स पहले से मौजूद हैं, ऐसे में दंगे भड़कने और संपर्क होने से सभी के फरार होने की संभावनाओं को देखते हुए उसे असम भेजा गया है.

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नई दिल्ली: पंजाब पुलिस ने 36 दिन से फरार अमृतपाल सिंह को आखिरकार रविवार सुबह मोगा जिले के रोड़ेवाला गुरुद्वारा से गिरफ्तार कर लिया और एयरलिफ्ट कर उसे असम की ऐतिहासिक डिब्रूगढ़ जेल में ले गई.

पंजाब पुलिस के महानिरीक्षक (आईजी) सुखचैन सिंह गिल ने कहा, ‘‘अमृतपाल पर नेशनल सिक्योरिटी एक्ट (रासुका) लगा हुआ है और उसे डिब्रूगढ़ ले जाया जाएगा. बाकी सहयोगियों को भी डिब्रूगढ़ जेल में रखा गया है.’’

इस बीच पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा, देश की शांति भंग करने और कानून तोड़ने की कोशिश करने वालों के खिलाफ कानून के मुताबिक कार्रवाई की जाएगी.

पंजाब पुलिस ने हालांकि, अमृतपाल को दिल्ली की तिहाड़ भेजने का प्लान बनाया था, लेकिन वहां कईं पंजाबी गैंगस्टर्स पहले से मौजूद हैं, ऐसे में दंगे भड़कने और संपर्क होने से सभी के फरार होने की संभावनाओं को देखते हुए असम भेजा गया है.

एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि डिब्रूगढ़ के जिस केंद्रीय कारागार में सिंह को रखा जाएगा वहां बहुस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था की गई है.

उन्होंने कहा, ‘‘जेल परिसर के चारों ओर असम पुलिस के विशिष्ट ब्लैक कैट कमांडो, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) और जेल सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया है. जेल के अंदर भी सुरक्षा कड़ी कर दी गई है.’’

डिब्रूगढ़ यातायात पुलिस से भी हवाई अड्डे से जेल तक 15 किलोमीटर लंबे रास्ते को बाधा मुक्त रखने को कहा गया है. सादे कपड़ों में पुलिसकर्मियों के अलावा एक विशेष दल को भी तैनात किया गया है.

18वीं सदी में निर्मित इस जेल में कई अलगाववादी संगठनों के नेता कैद रहे हैं. स्थानीय पुलिस का दावा है कि डिब्रूगढ़ जेल देश की कुछ चुनिंदा सबसे सुरक्षित जेलों में से एक है और इस जेल से फरार होने की गुंजाईश बहुत कम है.

डिब्रूगढ़ जेल की खासियत

माना ये भी जाता है कि डिब्रूगढ़ जेल को 1857 में देश की आज़ादी के पहले स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले भारतीयों को रखने के लिए बनाया गया था.

इस जेल में अलगाववादी संगठनों जैसे यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के कई नेता इसके केंद्रीय कारागारों में कैद रहे हैं. 1991 के जून में इस जेल में बंद प्रतिबंधित आतंकी संगठन उल्फा के पांच हाई प्रोफाइल चरमपंथी जेल से फरार हो गए थे, जिसके बाद जेल की दीवारों की ऊंचाई को 30 फीट तक बढ़ाया गया था.

नॉर्थ इस्ट में कंक्रीट से बनी इस पहली जेल में, अमृतपाल के नौ साथी- दलजीत सिंह कलसी, पपलप्रीत सिंह, कुलवंत सिंह धालीवाल, वरिंदर सिंह जोहाल, गुरमीत सिंह बुक्कनवाला, हरजीत सिंह, भगवंत सिंह, बसंत सिंह और गुरिंदरपाल सिंह औजला बंद हैं तथा उन पर रासुका लगाया गया है.

खबरों के मुताबिक, अमृतपाल के समर्थकों को यहां अपने पास 3 इंच की कृपाण रखने की भी इज़ाज़त दी गई है. ये सभी इस जेल में रखे गए इकलौते सिख कैदी हैं. इन्हें दूसरे कैदियों से बात करने की इज़ाज़त नहीं है.

अमृतपाल के करीबियों को यहां जेल में रखने की प्रक्रिया को असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा में पुलिस-टू-पुलिस कोऑपरेशन प्रकिया का हिस्सा बताया था. शहर के बीचों-बीच बनी यह जेल 76,203.19 वर्ग मीटर में फैली हुई है.

डिब्रूगढ़ जिला के एक वरिष्ठ वकील जोगेंद्र नाथ बरुआ के हवाले से एक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘1975 के आपातकाल के समय इस जेल में मीसा यानी (आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम) के तहत कुछ लोगों को गिरफ्तार कर रखा गया था. बाहर के राज्य से रासुका बंदियों को इस जेल में लाने का यह पहला मामला है.’’

बता दें कि डिब्रूगढ़ जेल पहले केवल एक केंद्रीय कारागार थी, जहां बीते दिनों सुरक्षा के लिहाज़ से कई बदलाव किए गए हैं. एक खबर में जेल के एक अधिकारी के हवाले से लिखा है, ‘‘जेल में इस समय केंद्रीय सीमा सुरक्षा बल (सीआरपीएफ) के जवान चारों तरफ तैनात हैं. इसके साथ ही असम पुलिस के कमांडो भी हैं. 57 सीसीटीवी कैमरों से जेल के अंदर कैदियों और जेल में पर मिलने आने वालों पर नज़र रखी जा रही है.’’

प्रसिद्ध लेखिका दीपाली बरुआ ने अपनी किताब ‘अर्बन हिस्ट्री ऑफ इंडिया ए केस स्टडी’ (1994) में कहा, ‘‘1840 में ब्रिटिश शासन ने डिब्रूगढ़ जेल की इमारत के निर्माण के लिए 2700 रुपये की मंजूरी दी थी. खर्च बचाने के लिए कैदियों को ही काम पर लगाया गया था. 1853 में ब्रिटिश अधिकारी मिल असम आए तो उन्होंने डिब्रूगढ़ जेल की खस्ता हालत देखते हुए ईंट के पक्के भवन का निर्माण करने का प्रस्ताव दिया. उस समय तक जेल में केवल 50 कैदी थे और उनमें से कुछ कैदी सड़क और पुल बनाने तथा कुम्हार और लोहार का काम करते थे.’’

बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘बीते फरवरी महीने में डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल में कुल 445 कैदी बंद थे. इनमें 430 पुरुष कैदी हैं और 15 महिला कैदी हैं. इन कैदियों में दो विदेशी नागरिक शामिल हैं. ’’

खबर में कहा गया है, ‘‘वर्तमान में इस जेल की पंजीकृत क्षमता 680 है. इसके अलावा जेल में पीने के साफ पानी की पूरी व्यवस्था है. जेल में पुरुष और महिलाओं के लिए अलग-अलग कुल 94 शौचालय की व्यवस्था है.’’

सुखचैन सिंह गिल ने कहा, ‘‘हमें विशेष सूचना मिली थी कि अमृतपाल सिंह रोड़े गांव में है, उसे घेर लिया गया था और उसके फरार होने की कोई गुंजाइश नहीं थी.’’

उन्होंने बताया कि अमृतपाल सिंह के खिलाफ रासुका के तहत वारंट जारी किए गए और उन्हें आज सुबह तामील किया गया.

पुलिस ने अजनाला थाने पर हमला करने के बाद 18 मार्च को अमृतपाल सिंह तथा उसके संगठन ‘वारिस पंजाब दे’ के सदस्यों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई शुरू की थी जिसके बाद से वो फरार था. मृतक जरनैल सिंह भिंडरावाले रोड़े गांव से था और अमृतपाल सिंह को पिछले साल इस गांव में आयोजित एक कार्यक्रम में ‘वारिस पंजाब दे’ संगठन का प्रमुख नियुक्त किया गया था.

पंजाब पुलिस ने ट्वीट किया कि अमृतपाल सिंह को मोगा में गिरफ्तार किया गया है और लोगों से शांति एवं सौहार्द्र बनाए रखने का अनुरोध किया.

पुलिस ने ट्वीट किया, ‘‘कोई फर्ज़ी खबर साझा न करें, हमेशा पुष्टि करें और फिर साझा करें.’’


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