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Wednesday, 26 June, 2024
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गृह मंत्री अमित शाह की किसानों से हुई बैठक में नहीं बनी बात, छठे दौर की वार्ता अधर में लटकी

अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने कहा कि गृह मंत्री ने कहा कि सरकार जिन संशोधनों के पक्ष में हैं उन्हें कल लिखित में देगी. हम लिखित संशोधनों को लेकर सभी 40 किसान यूनियनों से चर्चा करने के बाद बैठक में शामिल होने के बारे में फैसला लेंगे.

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नई दिल्ली: केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और कुछ किसान नेताओं के बीच मंगलवार की रात हुई बैठक विफल रहने के बाद सरकार और किसान यूनियनों के बीच बुधवार को प्रस्तावित छठे दौर की वार्ता अधर में लटक गई है.

हालांकि, सरकार की ओर से बुधवार की वार्ता के संबंध में आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है लेकिन शाह के साथ हुई बैठक के बाद कुछ किसान नेताओं ने कहा कि प्रस्तावित बैठक में शामिल होने का सवाल ही नहीं उठता. इन नेताओं ने कहा कि सरकार के लिखित प्रस्ताव पर विचार-विमर्श के बाद ही अगले कदम पर निर्णय लिया जाएगा.

मंगलवार करीब आधी रात को समाप्त हुई बैठक के बाद अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हन्नान मोल्लाह ने कहा, ‘शाह जी ने कहा कि सरकार जिन संशोधनों के पक्ष में हैं उन्हें कल लिखित में देगी. हम लिखित संशोधनों को लेकर सभी 40 किसान यूनियनों से चर्चा करने के बाद बैठक में शामिल होने के बारे में फैसला लेंगे.’

वहीं, शाह के साथ हुई बैठक में शामिल रहे किसान नेता दर्शन पाल ने कहा, ‘हमारी मांगों को लेकर केंद्र सरकार कल लिखित प्रस्ताव देगी …. केंद्र सरकार और किसान नेताओं के बीच बुधवार को कोई बैठक नहीं होगी.’

इससे पहले, 13 किसान नेताओं को शाह के साथ इस बैठक के लिए बुलाया गया था. बैठक रात आठ बजे आरंभ हुई. किसान नेताओं में आठ पंजाब से थे जबकि पांच देश भर के अन्य किसान संगठनों से जुड़े थे.

सरकार की ओर से प्रदर्शनकारी किसानों से जारी वार्ता का नेतृत्व करने वाले केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, खाद्य मंत्री पीयूष गोयल और उद्योग एवं वाणिज्य राज्य मंत्री सोम प्रकाश भी राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर, पूसा में हुई बैठक में मौजूद रहे.

छठे दौर की वार्ता ‘भारत बंद’ के बाद प्रस्तावित थी. किसानों के ‘भारत बंद’ को ट्रेड यूनियनों, अन्य संगठनों और कांग्रेस सहित 24 विपक्षी दलों का समर्थन मिला.

सरकार और किसानों के बीच हुई पांच दौर की वार्ता में कोई सफलता नहीं मिली है. सरकार कानूनों में संशोधन की इच्छा जता चुकी है और कई तरह के आश्वासन भी दे चुकी है लेकिन किसान संगठन नए कृषि कानूनों को पूरी तरह वापस लिए जाने की मांग पर अड़े हैं.


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