गुवाहाटी: मणिपुर के मानवाधिकार कार्यकर्ता और गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ह्यूमन राइट्स अलर्ट (HRA) के कार्यकारी निदेशक बब्लू लोइतोंगबम ने किसी कुकी उग्रवादी या व्यक्ति के साथ वित्तीय संबंधों के दावों से इनकार किया है, जबकि मैतेई समूह ने उन पर कुकी से पैसे लेने का आरोप लगाया था. उन्होंने मंगलवार को एक सार्वजनिक बयान जारी किया, जिसके एक दिन पहले कुछ “50 युवकों” ने उनके इंफाल स्थित घर में घुसकर कथित तौर पर परिवार को धमकी दी थी कि अगर लोइतोंगबम सार्वजनिक रूप से सामने आए तो उन्हें इसके परिणाम भुगतने होंगे.
यह कथित घटना पिछले दिन मैतेई संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करने के लिए प्रतिबद्ध एक समूह मैतेई लीपुन (एमएल) द्वारा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के बाद हुई. लोइतोंगबम पर “कुकी उग्रवादी संगठनों” से पैसे लेने का आरोप लगाया गया और प्रेस ब्रीफिंग के दौरान चेतावनी जारी की गई, जिसमें लोगों को मैतेई कार्यकर्ता के साथ काम करने से मना किया गया था.
सोमवार की घटना और प्रेस ब्रीफिंग के वीडियो क्लिप सोशल मीडिया पर वायरल किए जा रहे हैं.
एमएल, जिसे अक्सर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से प्रभावित या उससे जुड़ा हुआ माना जाता है, को शुरू में कुकी-ज़ो आदिवासियों के खिलाफ संघर्ष में प्रमुख खिलाड़ी के रूप में देखा गया था, जिसके साथ मैतेई युवाओं का एक कट्टरपंथी सशस्त्र समूह अरम्बाई टेंगोल भी था.
लोइतोंगबम ने आरोपों को “निराधार” और “तथ्यात्मक रूप से गलत” बताया. अपने बयान में उन्होंने कहा कि 30 से अधिक वर्षों से बतौर मानवाधिकार कार्यकर्ता वे हमेशा “मणिपुर में सभी समुदायों के शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और सह-विकास” में यकीन करते रहे हैं.
लोइतोंगबम के बयान में कहा गया है, “मेरा किसी कुकी उग्रवादी संगठन या व्यक्तियों के साथ कोई वित्तीय लेन-देन नहीं है. इसलिए, यह आरोप कि मुझे कुकी से पैसे मिले हैं, निराधार है.”
कॉन्फ्रेंस में एमएल ने आरोप लगाया था कि लोइतोंगबम ने बर्मी महिला का प्रतिनिधित्व किया था और धन उगाही के लिए उनके साथ संयुक्त राष्ट्र और संयुक्त राज्य अमेरिका गए थे. ग्रुप ने उन्हें ‘पीडीएफ महिला विंग कमांडर’ बताया. पीपुल्स डिफेंस फोर्सेज या पीडीएफ म्यांमार में सशस्त्र समूह हैं जो तख्तापलट के बाद 2021 के मध्य में उभरे.
लोइतोंगबम ने स्पष्ट किया कि विचाराधीन महिला बर्मी बौद्ध मूल की नॉर्वेजियन नागरिक म्या क्या मोन थीं, न कि चिन (म्यांमार के चिन) या ईसाई, जैसा कि सोशल मीडिया पर दावा किया जा रहा था. उन्होंने कहा कि मोन को एचआरए ने “संकट में फंसी महिला कैदी” बताया. माना जाता है कि वे वर्तमान में इम्फाल जेल में हिरासत में हैं, उन पर अपने वीज़ा की अवधि समाप्त होने के बावजूद यहां रहने का आरोप है.
लोइतोंगबम ने कहा, “उनके खिलाफ कोई अन्य आरोप नहीं है.”
उन्होंने इस दावे से इनकार किया कि वे धन उगाही के लिए उनके साथ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर गए थे. “मणिपुर कानूनी सेवा प्राधिकरण के तहत पैनलबद्ध वकीलों के रूप में, एचआरए ने कानूनी सहायता की पेशकश की, उनकी ज़मानत करवाई और उन्हें इम्फाल में एक महिला गृह में भेज दिया, जहां उनका मुकदमा लंबित है…हमारी जानकारी के अनुसार, वे अभी भी इम्फाल जेल में हिरासत में हैं.”
लोइतोंगबम ने अपने देश में उत्पीड़न का सामना करने पर दूसरे देश में शरण मांगने वाले व्यक्तियों के अधिकार को भी संबोधित किया. उन्होंने मणिपुर में शरण लेने वाले म्यांमार के नागरिकों के अधिकारों की वकालत की और राज्य में मानवीय सेवाओं तक पहुंच प्रदान करने के लिए एक कार्यशील क्षेत्रीय विदेशी पंजीकरण कार्यालय और शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त जैसे उपयुक्त संस्थानों की ज़रूरत पर बल दिया.
उन्होंने “स्पष्ट और पारदर्शी” शरणार्थी नीति की वकालत की, जो इन लोगों के मूल अधिकारों का ध्यान रखेगी, जिसमें स्थिति में सुधार होने पर अपने देश लौटने का अधिकार भी शामिल है. हालांकि, उन्होंने कहा कि ऐसी नीति में यह भी सुनिश्चित करना होगा कि स्वदेशी लोगों के भूमि अधिकारों को संरक्षित किया जाएगा.
लोइतोंगबम ने बैंगलोर में मणिपुर मैतेई एसोसिएशन के साथ अपने जुड़ाव की अफवाहों को भी खारिज कर दिया, जो मैतेई समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाला एक नागरिक समाज संगठन है.
उन्होंने “आगामी नगा-कुकी-मैतेई बैठक” में शामिल होने से इनकार किया, जिसका कथित उद्देश्य मैतेई लोगों को नरसंहार के लिए फंसाना था. उन्होंने आरोप को “मनगढ़ंत कहानी” करार दिया.
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