रायपुर, तीन जुलाई (भाषा) छत्तीसगढ़ में सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (सीएफआरआर) के संबंध में जारी पत्रों के खिलाफ विभिन्न संगठनों के विरोध के बाद राज्य के वन मंत्री केदार कश्यप ने पत्रों को वापस लेने का निर्देश दिया है।
राज्य के वन विभाग द्वारा पूर्व में एक पत्र जारी किया गया था जिसमें अन्य किसी भी विभाग, गैर सरकारी संस्थाएं और निजी संस्थाओं को सीएफआरआर में आवंटित वन क्षेत्र के भीतर किसी भी प्रकार का कार्य करने से रोकने के संबंध में निर्देश थे। इसके बाद स्थानीय ग्राम सभाओं, आदिवासी संगठनों और सामाजिक संगठनों ने बुधवार को विभिन्न जिलों में इस निर्देश को असंवैधानिक बताते हुए विरोध प्रदर्शन किया था।
राज्य के नगरी, अंबिकापुर, कांकेर, गौरेला, नारायणपुर, गरियाबंद, पिथौरा, बालोद और बस्तर में इस संबंध में रैलियां निकाली गई तथा अधिकारियों को ज्ञापन सौंपे गए।
इस वर्ष 15 मई को, छत्तीसगढ़ वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक और वन बल के प्रमुख (पीसीसीएफ) व्ही श्रीनिवास राव ने एक निर्देश जारी किया था, जिसमें कहा गया कि वन विभाग, वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के तहत आदिवासी समुदायों और वनवासियों को दी गई वन भूमि का प्रबंधन तब तक करेगा जब तक केंद्र सरकार इन वनों के प्रबंधन के लिए एक योजना प्रदान नहीं करती है।
राव ने 2020 के एक आदेश का हवाला दिया, जिसने वन विभाग को सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों को लागू करने के लिए नोडल एजेंसी बनाया है।
निर्देश में कहा गया है सामुदायिक वन संसाधन अधिकार प्रबंधन के लिए जनजातीय मामलों के मंत्रालय :एमओटीए: तथा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के द्वारा 14 मार्च, 2024 को संयुक्त रूप से जारी पत्र के माध्यम से स्पष्ट किया गया है कि जनजातीय मामलों के मंत्रालय के द्वारा मॉडल सामुदायिक वन संसाधन प्रबंधन योजना (सीएफआरएमपी) माइक्रो प्लान तैयार किया जाएगा, जो नेशनल वर्किंग प्लान कोड 2023 के अनुरूप होगा। बाद में सभी राज्यों को साझा किया जाएगा।
राव के पत्र से संकेत मिलता है कि छत्तीसगढ़ वन विभाग ने छह मार्च, 2025 को जनजातीय मामलों के मंत्रालय से इस प्लान की एक प्रति मांगी थी।
निर्देश में कहा गया है कि चूंकि जनजातीय मामलों के मंत्रालय से सामुदायिक वन संसाधन अधिकार के प्रबंधन के लिए माइक्रो प्लान अपेक्षित और अप्राप्त है, इसलिए अन्य किसी भी विभाग, गैर शाासकीय संस्थाएं, निजी संस्थाएं द्वारा सामुदायिक वन संसाधन अधिकार में आवंटित वन क्षेत्र के भीतर किसी भी प्रकार का कार्य न किया जाए।
निर्देश के जारी होने के बाद स्थानीय ग्राम सभाओं, आदिवासी संगठनों और सामाजिक संगठनों ने बुधवार को विभिन्न जिलों में विरोध प्रदर्शन किया।
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह उस कदम कानून के खिलाफ है, जो वनवासियों को अपने जंगलों की रक्षा और प्रबंधन का अधिकार देता है।
इसके बाद बृहस्पतिवार को राज्य शासन ने एक बयान जारी कर पत्रों को वापस लेने की जानकारी दी।
बयान में कहा गया है, ”छत्तीसगढ़ वन विभाग ने अनुसूचित जनजाति और अन्य परंपरागत वनवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के तहत व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों प्रकार के वन संसाधन अधिकारों की मान्यता और वितरण में देश के अग्रणी राज्यों में रहते हुए सक्रिय, सकारात्मक और सराहनीय भूमिका निभाई है। अब तक राज्य में 4,78,641 व्यक्तिगत अधिकार तथा 4,349 सामुदायिक वन संसाधन अधिकार पत्र वितरित किए गए हैं, जिससे कुल 20,06,224 हेक्टेयर क्षेत्र पर कानूनी अधिकार प्रदान कर लाखों वनवासी परिवारों को सशक्त बनाया गया है। यह उपलब्धि प्रदेश की प्रशासनिक प्रतिबद्धता, पारदर्शिता और सतत विकास के प्रति दृढ़ निष्ठा का प्रत्यक्ष प्रमाण है।”
बयान में कहा गया है, ”वन विभाग द्वारा सीएफआरआर क्रियान्वयन के दौरान मॉड्यूल प्रबंधन योजनाओं और दिशा-निर्देशों के अभाव में फील्ड अधिकारियों को केवल एक परामर्श जारी किया गया था, जिसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि सामुदायिक प्रबंधन योजनाएं राष्ट्रीय वर्किंग प्लान कोड, 2023 से वैज्ञानिक रूप से समन्वित हों। इस परामर्श की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि बिना स्पष्ट ढांचे के फील्ड स्तर पर क्रियान्वयन में असंगति उत्पन्न हो रही थी, जिससे भविष्य में वनों की पारिस्थितिकी के क्षतिग्रस्त होने, स्वीकृत कार्य योजनाओं से टकराव और समुदाय तथा विभागीय विवाद जैसी स्थिति उत्पन्न होने की आशंका थी। कुछ संस्थाओं एवं ग्राम सभाओं द्वारा इसे अधिकार सीमित करने के प्रयास के रूप में देखा गया, जबकि वास्तव में विभाग का उद्देश्य केवल पारदर्शी, टिकाऊ और कानूनी रूप से मजबूत प्रबंधन की पूर्व तैयारी करना था।”
बयान में कहा गया है, ”15 मई 2025 को कार्यालय से जारी पत्र केवल एक अंतरिम प्रक्रिया-संबंधी व्यवस्था थी, जिसमें उल्लेख किया गया था कि मॉडल योजना जारी होने तक केवल स्वीकृत योजनाएं ही लागू की जाएं। इस पत्र में एक टंकण त्रुटि के कारण वन विभाग को ‘नोडल एजेंसी’ लिखा गया था, जबकि वास्तविक शब्द ‘समन्वयक’ था। इस त्रुटि को 23 जून 2025 के परिपत्र से विधिवत सुधार दिया गया। इस पत्र तथा स्पष्टीकरण के कारण उत्पन्न भ्रम को देखते हुए वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री केदार कश्यप के निर्देश के अनुसार दोनों पत्रों को दिनांक आज वापस ले लिया गया है।”
बयान में कहा गया है, ”सीएफआरआर क्रियान्वयन को और सुदृढ़ बनाने के लिए छत्तीसगढ़ वन विभाग द्वारा भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय तथा पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को औपचारिक अनुरोध भेजे गए हैं, जिनमें अनुरोध किया गया है कि राष्ट्रीय वर्किंग प्लान कोड, 2023 के अनुरूप मॉडल सामुदायिक प्रबंधन योजनाएं तथा विस्तृत क्रियान्वयन दिशा-निर्देश जल्द से जल्द जारी किए जाएं।”
बयान में कहा गया है, ”छत्तीसगढ़ वन विभाग यह स्पष्ट करता है कि सीएफआरआर का क्रियान्वयन प्रदेश में पूरी पारदर्शिता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं सहभागिता के साथ किया गया है तथा आगे भी परंपरागत ज्ञान को सम्मान देते हुए सामुदायिक वन संसाधनों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए पूरी प्रतिबद्धता के साथ कार्य किया जाता रहेगा।” भाषा संजीव नोमान नरेश
नरेश
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