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Sunday, 22 December, 2024
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वन्यजीव संरक्षण एक्ट में संशोधन- जानवरों की फिर बनेगी कटेगरी, केंद्र को मिलेगा निगरानी का और अधिकार

लोकसभा द्वारा पारित, वन्यजीव संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2021, का उद्देश्य भारतीय कानून को लुप्तप्राय वन्य जीवों और वनस्पतियों के अवैध व्यापार पर रोक लगाने वाले कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन इनडेंजरड़ स्पीशीज ऑफ़ वाइल्ड फौना एंड फ़्लोरा (साइट्स) के उपयुक्त बनाने का प्रयास करना है.

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नई दिल्ली: लोकसभा ने इस सप्ताह वन्यजीव संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2021 को पारित कर दिया. यह एक लंबी चर्चा के बाद किया गया, जिसमें विपक्षी नेताओं ने न केवल प्रस्तावित कानून से सम्बंधित अपनी चिंताएं व्यक्त कीं, बल्कि इसके कुछ प्रावधानों की सराहना भी की.

इस विधेयक का उद्देश्य 1972 में बनाए गए वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में संशोधन कर इसे लुप्तप्राय वन्य जीवों और वनस्पतियों के अवैध व्यापार पर रोक लगाने वाले कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड एनडैंजर्ड स्पीशीज ऑफ़ वाइल्ड फौना एंड फ़्लोरा (साइट्स)- जिसमें भारत भी एक हस्ताक्षरकर्ता है – के उपयुक्त बनाने का प्रयास करना है.

साइट्स एक बहुपक्षीय संधि है जिसे वन्यजीवों के व्यापार को विनियमित करने और लुप्तप्राय प्रजातियों की रक्षा के उद्देश्य से तैयार किया गया है. इस कन्वेंशन के हस्ताक्षरकर्ता देशों को एक परमिट के माध्यम से सभी सूचीबद्ध नमूनों (स्पेसिमेन) के व्यापार को विनियमित करने की आवश्यकता होती है.

केंद्रीय प्रशासन द्वारा प्रस्तावित परिवर्तनों में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त प्रबंधन और वैज्ञानिक प्राधिकरणों को शामिल करना शामिल है, जो साइट्स द्वारा सूचीबद्ध प्रजातियों के नमूनों के व्यापार के लिए अनुमति प्रदान करेंगे और इसका मार्गदर्शन करेंगे. इनमें एलियन इनवेसिव स्पेसीज (आक्रामक विदेशी प्रजातियों) को नियंत्रित करने का एक प्रावधान भी शामिल है, और साथ ही वर्तमान अधिनियम में मौजूद अनुसूचियों की संख्या (संरक्षण की आवश्यकता के क्रम में पौधों और जानवरों की श्रेणियां) को छह से घटाकर चार कर दिया गया है.

कई सारे विपक्षी नेताओं ने इन प्रावधानों को जोड़े जाने की सराहना की, लेकिन उन्होंने एक संसदीय समिति – जिसने इस साल अप्रैल में इस विधेयक की पड़ताल की थी और अपनी सिफारिशें भी प्रस्तुत कीं थीं – द्वारा उठाए गए कुछ चिंताओं को फिर से व्यक्त भी किया. लोकसभा द्वारा पारित विधेयक पिछले साल पेश किए गए विधेयक का एक संशोधित संस्करण है.

कांग्रेस संसद प्रद्युत बोरदोलोई ने कहा कि किसी भी अभयारण्य के 10 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले किसी भी व्यक्ति के शस्त्र लाइसेंस के नवीकरण पर लगायी गयी रोक जैसे कुछ संशोधन आवश्यक हैं.

हालांकि, डीएमके के ए. राजा ने कहा कि, ‘प्रबंधन और वैज्ञानिक प्राधिकरणों को लाकर व्यवस्था में कुछ बड़े संरचनात्मक परिवर्तन लाए जा रहे हैं’.

उन्होंने सवाल किया, ‘क्या यह आपका दायित्व नहीं है कि कम-से-कम जिला वन अधिकारी के नाम पर ही सही पर राज्य सरकार की भूमिका को भी शामिल किया जाए? ये परिवर्तन अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लाए जा रहे हैं, लेकिन राज्य के योगदान के बारे में क्या?’

कई सांसदों ने अनुसचियों (शेड्यूलस) की संख्या में बदलाव का मुद्दा भी उठाया. वर्तमान वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में छह अनुसूचियां हैं – चार जानवरों के लिए, जिसमें पहली दो अनुसूचियों में शामिल प्रजातियों को सबसे अधिक सुरक्षा दी जाती है. इसके अलावा एक अनुसूची कीड़े-मकोड़ों (वर्मिन) के लिए, और एक पौधों के लिए है.

नए विधेयक में इसे चार अनुसूचियों के साथ बदलने का प्रस्ताव किया गया है: उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान किये जाने वाले जानवरों के लिए अनुसूची 1, जिन जानवरों को सुरक्षा तो प्रदान की गई है, लेकिन कुछ हद तक ही, उनके लिए अनुसूची 2, पौधों के लिए अनुसूची 3 और साइट्स समझौते के तहत सूचीबद्ध नमूनों (जानवरों, पौधों दोनों) के लिए अनुसूची 4.

वाईएसआर कांग्रेस के कुरुवा गोरंटला माधा ने कहा, ‘प्रस्तावित संशोधनों के तहत, धारीदार लकड़बग्घा (स्ट्राइपडी हायना) और भारतीय लोमड़ी, जो दूसरी अनुसूची में आते हैं, को भी वर्मिन माना जा सकता है. यह पुनर्वर्गीकरण बिना किसी वैज्ञानिक अध्ययन के किया गया है.’

राकांपा के फैजल पी.पी. मोहम्मद ने कहा कि इस विधेयक में वर्मिन की परिभाषा को निर्धारित करने के लिए मानदंड पेश किये जाने चाहिए ताकि लुप्तप्राय प्रजातियों पर प्रतिकूल प्रभाव न पड़े.

इसके जवाब में पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने सांसदों को आश्वासन दिया कि वर्मिन का वर्गीकरण काफी सावधानी से किया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘हमने 2021 में ऐसे दिशा-निर्देश भी जारी किए थे, जो मुख्य वन्यजीव संरक्षक (चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन) को वर्मिन के वर्गीकरण के संबंध में निर्णय लेने का अधिकार देते हैं.’


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इस विधेयक से क्या कुछ बदलने वाला है?

इस साल अप्रैल में, जयराम रमेश के नेतृत्व वाली स्थायी समिति ने कहा था कि अनुसूचियों की संख्या को कम करना एक ‘स्वागत’ योग्य कदम है, लेकिन संशोधित अनुसूची से कई जानवर गायब हैं और उसने यह सिफारिश की थी कि संरक्षित जानवरों की सूची को और विस्तृत किया जाए.

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम मुख्य वन्यजीव संरक्षक या किसी अन्य अधिकृत अधिकारी की अनुमति के बिना बंदी हाथियों की बिक्री और हस्तांतरण को प्रतिबंधित करता है. समिति ने राज्य सरकार से अनुमति लेने वाले ‘प्रमाणित’ निजी मालिकों द्वारा जीवित हाथियों के परिवहन की अनुमति देने के लिए विधेयक में शामिल किये गए प्रस्ताव का मुद्दा भी उठाया था.

समिति का कहना था कि, ‘ऐसा कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए जिससे यह आभास हो कि हाथियों के निजी स्वामित्व और उनके व्यापार को बढ़ावा दिया जा रहा है.’ साथ ही, उसने यह भी कहा था कि ‘यह सुनिश्चित करने के लिए कि सदियों पुरानी परंपराओं में हस्तक्षेप नहीं किया जाये, एक सावधानीपूर्वक संतुलन बनाना महत्वपूर्ण है.’

मंगलवार को पारित किये गए विधेयक के संस्करण, जिसे समिति की टिप्पणियों के बाद संशोधित किया गया था, में उन जानवरों की एक बड़ी चयनित संख्या शामिल है जो अधिकतम सुरक्षा प्राप्त कर रहे हैं, विशेष रूप से अनुसूची 1 में शामिल जानवर. लेकिन यह बंदी हाथियों के हस्तांतरण की अनुमति देता है.

विधेयक में कहा गया है कि केंद्र सरकार उन ‘नियमों और शर्तों’ को निर्धारित करेगी जिसके माध्यम से हाथियों का स्थानांतरण हो सकता है.

यह कहते हुए कि यह एक तरह से जीवित हाथियों के व्यावसायिक व्यापार की अनुमति देता है, राकांपा की अगाथा संगमा ने कहा कि, ‘यह एक बहुत ही प्रतिगामी और खतरनाक कदम है.’

तृणमूल कांग्रेस की अपरूपा पोद्दार ने कहा कि इस विधेयक में केंद्र सरकार के लिए अप्रतिबंधित शक्ति का प्रावधान है. अगर केंद्र सरकार ही सब कुछ करेगी, तो राज्यों की क्या भूमिका है?’

इसके प्रतिउत्तर में यादव ने यह कहा कि हाथियों को दी जाने वाली सुरक्षा पर इस प्रावधान का कोई प्रभाव नहीं है.

उन्होंने संसद को बताया, ‘हाथियों के परिवहन के संबंध में, हम केवल उनके परिवहन के लिए विनियमन की पेशकश कर रहे हैं, लेकिन उनकी सुरक्षा और सांस्कृतिक महत्व पहले जैसा ही रहेगा.’

विधेयक के संशोधित संस्करण में एलियन इनवेसिव स्पेसीज (आक्रामक बाहरी प्रजातियों) की परिभाषा को भी बरकरार रखा गया है, जिसके बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि यह पारिस्थितिक रूप से गलत है.

यह विधेयक आक्रामक विदेशी प्रजातियों – ऐसी जीव जो ऐसे वातावरण में पारिस्थितिक या आर्थिक नुकसान का कारण बनते हैं जहां के वे मूल निवासी नहीं है – की परिभाषा ऐसे ’जानवर या पौधे की एक प्रजाति के रूप में करता है जो भारत का मूल निवासी नहीं है और जिसका यहां लाया जाना या उसका प्रसार वन्यजीवों या उनके निवास स्थान को खतरे में डाल सकता है या उन्हें प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है.’

अपनी रिपोर्ट में, संयुक्त समिति ने कहा था कि ‘जहां तक देश के भीतर के किसी विशेष पारिस्थितिकी तंत्र का संबंध है, कोई भी प्रजाति विदेशी और आक्रामक हो सकती हैं. आक्रामक विदेशी प्रजातियां केवल भारत के बाहर की प्रजातियों तक ही सीमित नहीं हो सकती हैं.’

विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के सीनियर रेजिडेंट फेलो देबदित्य सिन्हा के अनुसार, यह विधेयक अभ्यारण्यों की सुरक्षा के बारे में स्पष्टता प्रदान करता है, लेकिन अभी भी कई खामियों को भरना बाकी है.

उन्होंने कहा, ‘फिलहाल, चिड़ियाघर जानवरों का स्वतंत्र रूप से व्यापार नहीं कर सकते हैं, लेकिन वर्तमान विधेयक संरक्षण प्रजनन केंद्रों (कंजर्वेशन ब्रीडिंग सेंटर) के लिए व्यापार को छूट देता है. इसके दुरुपयोग की गुंजाइश है, और इसलिए इस बात की स्पष्ट परिभाषा होनी चाहिए कि एक कंजर्वेशन ब्रीडिंग सेंटर होता क्या है?

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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