नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक 17 वर्षीय दलित लड़के की मदद के लिए आगे आते हुए अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल कर आईआईटी बॉम्बे को उसके लिए एक सीट निर्मित करने का निर्देश दिया. इस लड़के ने इस संस्थान में प्रवेश के लिए अर्हता प्राप्त कर ली थी, लेकिन तकनीकी बाधा और सर्वर एरर के कारण वह फीस का भुगतान न करने की वजह से अपनी सीट पाने में चूक गया था.
जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और ए.एस. बोपन्ना की पीठ ने कहा कि यदि इस लड़के, प्रिंस जयबीर सिंह को तमाम कोशिश करने के बावजूद फीस का भुगतान न कर पाने के लिए प्रवेश से वंचित कर दिया जाता है तो यह ‘न्याय का एक बड़ा मजाक’ होगा. इसके बाद अदालत ने जॉइंट सीट एलोकेशन अथॉरिटी (जे.ओ.एस.ए.ए.- जोसा ) को इस छात्र के लिए एक सीट निर्धारित करने का निर्देश दिया.
हालांकि अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी अन्य छात्र के प्रवेश में बाधा डाले बिना हीं जयबीर सिंह को सीट आवंटित की जानी चाहिए.
जोसा को इस शैक्षिक वर्ष 2021-22 के लिए 114 संस्थानों में प्रवेश के लिए संयुक्त रूप से सीटों के आवंटन का प्रबंधन और विनियमन करने के लिए शिक्षा मंत्रालय स्थापित द्वारा किया गया था. इनमें 23 आईआईटी, 31 एनआईआईटी, आईइएसटी- शिबपुर, 26 आईआईआईटी तथा 33 अन्य सरकारी वित्त पोषित तकनीकी संस्थान शामिल हैं.
ऐसा करते हुए अदालत ने महसूस किया कि यह संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उसे प्रद्दत शक्तियों का उपयोग करने के लिए एक उपयुक्त मामला है, जो इसे किसी भी मामले में ‘पूर्ण न्याय’ करने के लिए आवश्यक किसी भी तरह का आदेश पारित करने की अनुमति देता है.
अनुच्छेद 142 कहता है, ’उच्चतम न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए ऐसी आज्ञाप्ति (डिक्री) पारित कर सकता है या ऐसा आदेश दे सकता है जो उसके समक्ष लंबित किसी भी मामले या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो …’
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‘कभी-कभी हमें कानून से ऊपर उठना पड़ता है’
इससे पहले, पिछले हफ्ते इस मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था, ‘ये एक ऐसा दलित लड़का है जिसने आईआईटी में जगह बनाई है. कितने छात्र इसे हासिल करने में सक्षम हो पाते हैं? वह अगले 10 वर्षों में आगे बढ़कर देश का नेतृत्व करने के लिए खड़ा सकता है! पर अब, वह बिना किसी गलती के अपनी सीट से गवां रहा है. हालांकि उसे कानून के एक बिंदु के आधार पर वंचित किया जा सकता है, लेकिन कभी-कभी हमें कानून से ऊपर भी उठना पड़ता है.’
इसलिए अदालत ने आईआईटी-बॉम्बे के अधिकारियों से प्रवेश सूची का विवरण हासिल करने और प्रिंस जयबीर सिंह को एक सीट आवंटित करने की संभावना तलाशने को कहा था.
सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान, अदालत ने अधिकारियों से कहा: ‘इस तरह काठ की माफिक व्यव्हार मत कीजिये. उसने पिछले साल परीक्षा पास की, उसने इस साल भी इसे पास किया और सिर्फ समय पर शुल्क का भुगतान नहीं कर सका. उसके साथ मानवीय रुख अपनाते हुए पेश आएं… आपको देखना होगा कि जमीनी हकीकत क्या है, हमारे सामाजिक जीवन की हकीकत क्या है… यह कोई ऐसा मामला नहीं है जहां छात्र ने कोई लापरवाही दिखाई हो या कोई गलती की हो. यह एक वास्तविक मामला है.’
हालांकि, जब जोसा ने अदालत को सूचित किया कि इस पाठ्यक्रम के लिए अब कोई खाली सीट उपलब्ध नहीं है, तो अदालत ने अनुच्छेद 142 के तहत आदेश पारित कर दिया
बॉम्बे उच्च न्यायालय ने खारिज कर दी थी प्रार्थी की याचिका
याचिकाकर्ता ने संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) एडवांस 2021 को अखिल भारतीय रैंक 25,894 और अनुसूचित जाति (एससी) श्रेणी की रैंक 864 के साथ उत्तीर्ण किया था. इसके बाद, उसे इस साल 27 अक्टूबर को आईआईटी-बॉम्बे में सिविल इंजीनियरिंग शाखा की एक सीट आवंटित की गई थी.
याचिका के अनुसार, सिंह ने 29 अक्टूबर को जोसा की वेबसाइट पर लॉग इन किया और सभी आवश्यक दस्तावेज भी अपलोड कर दिए. हालांकि, उस दिन उसके पास पैसे की कमी हो गई और वह भुगतान नहीं कर सका. याचिका में उसके इन प्रयासों के स्क्रीनशॉट और एक्सेस हिस्ट्री संलग्न की गई थी. सिंह ने आगे दावा किया जब उसकी बहन ने 30 अक्टूबर को उसे पैसे ट्रांसफर किए, तो वह लगभग एक दर्जन बार कोशिश करने के बावजूद भुगतान करने में असमर्थ रहा. याचिका में कहा गया है, यह उन्हें कार्ड जारी करने वाले बैंक, अर्थात भारतीय स्टेट बैंक की ओर से आयी एक तकनीकी त्रुटि के कारण हुआ था. इसके बाद, उसने एक साइबर कैफे से शुल्क का भुगतान करने की कोशिश की, आईआईटी-बॉम्बे के अधिकारियों को फोन किया और उन्हें ईमेल से सूचित भी किया, लेकिन इस सब का कोई फायदा नहीं हुआ.
हालांकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसकी याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया, मगर सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ उसकी याचिका स्वीकार की अपितु इस पर सुनवाई के उपरांत अब संविधान के अनुच्छेद 142 को लागू करते हुए आदेश भी पारित कर दिया
इस प्रावधान को पहले भी कई ऐतिहासिक मामलों में लागू किया गया है. इसका इस्तेमाल बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भाजपा के शीर्ष नेताओं एल.के. आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ किये जाने के अलावा उस मामले में आपराधिक मुकदमे को रायबरेली से लखनऊ स्थानांतरित करने के लिए भी किया गया था. इस मामले में शीर्ष अदालत ने 1989 में भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित हजारों लोगों को राहत प्रदान करने के लिए भी इस प्रावधान के प्रयोग का उल्लेख किया, और साथ ही 2014 में 1993 के बाद से आवंटित किये गए तमाम कोयला ब्लॉकों के आवंटन को रद्द करने के लिए भी इसके इस्तेमाल का भी हवाला दिया. हालांकि इस मामले में जिन लोगों के ये ब्लॉक आवंटित किया गए थे उनके द्वारा किसी तरह के गलत आचरण के बारे में कोई भी विशिष्ट निष्कर्ष प्राप्त नहीं हुआ था.
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