नई दिल्ली: जस्टिस उदय उमेश ललित शनिवार को देश के 49वें चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ ले रहे हैं, जिन्होंने जस्टिस एन.वी. रमना की जगह यह शीर्ष न्यायिक पद संभाला है. यद्यपि बतौर सीजेआई जस्टिस ललित का कार्यकाल महज 74 दिनों का होगा लेकिन उन्होंने अपनी प्राथमिकताएं पहले ही तय कर ली हैं.
जस्टिस ललित के यह शीर्ष न्यायिक पद संभालने से कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने संविधान पीठ के 25 मामलों को सुनवाई के लिए नोटिफाई कर लिया जो 29 अगस्त को कोर्ट के समक्ष आएंगे—यह पहला दिन होगा जब जस्टिस ललित बतौर सीजेआई पीठ की अध्यक्षता करेंगे.
ऐसे समय में जबकि महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दों से जुड़े मामलों को चुनिंदा तरीके से सूचीबद्ध करने और सुनवाई नहीं करने को लेकर शीर्ष कोर्ट की आलोचना बढ़ रही है, कानूनी विशेषज्ञों ने इस नोटिस को ‘सुखद आश्चर्य’ बताते हुए इसका स्वागत किया है.
यह ऐसे समय में भी हुआ है जब कानूनी विशेषज्ञों को लगता है कि शीर्ष कोर्ट की स्थिति पिछले कुछ वर्षों में संवैधानिक अथॉरिटी की जगह बस एक साधारण अपीली फोरम बनकर रह गई है.
ये मामले नोटिफाई किया जाना बतौर सीजेआई ललित के नजरिये की परीक्षा भी होगा. अपने हाल के कुछ साक्षात्कारों में उन्होंने शीर्ष अदालत में स्थायी पांच सदस्यीय संविधान पीठ होने की वकालत की थी.
अगस्त 2014 में बार से सीधे सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत ललित यह उपलब्धि हासिल करने वाले छठे वकील हैं और जस्टिस एस.एम. सीकरी के बाद सीजेआई के पद पर आसीन होने वाले ऐसे दूसरे जज हैं.
ललित की पदोन्नति के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के वकील हरीस बीरन का कहना है कि यह बार के लिए एक नुकसान रहा है.
बीरन ने कहा, ‘वह एक जाने-माने वकील और एक ऑलराउंडर थे. उन्होंने अपने स्वभाव और सभी विषयों पर पकड़ के साथ जिस तरह खुद को एक जज के तौर पर साबित किया है, उन्होंने एक बेंचमार्क बना दिया है. वह हमेशा से ही एक सज्जन न्यायाधीश हैं और रहेंगे.’
बॉलीवुड अभिनेता सलमान खान और क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू जैसे हाई-प्रोफाइल क्लाइंट्स का प्रतिनिधित्व करने से लेकर 2जी मामले में विशेष अभियोजक नियुक्त किए जाने तक एक वकील के रूप में ललित का करियर काफी शानदार रहा है.
सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सदस्य के रूप में भी वह 2017 के ट्रिपल तलाक फैसले सहित कई उल्लेखनीय निर्णयों का हिस्सा रहे हैं. सीजेआई के रूप में ललित के कार्यकाल से अब काफी ज्यादा उम्मीदें की जा रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट के वकील सुनील फर्नांडीस ने दिप्रिंट को बताया कि उन्हें विश्वास है कि नए सीजेआई ‘सुप्रीम कोर्ट में कुछ संस्थागत विसंगतियों को दूर करेंगे’ और शीर्ष अदालत को ‘वह विरासत में मिले स्वरूप से बेहतर जगह बनाकर’ रहेंगे.
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वकील से लेकर सुप्रीम कोर्ट जज तक
यू.यू. ललित ने जून 1983 में एक वकील के तौर पर पंजीकरण कराकर बॉम्बे हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की थी, जहां उन्होंने 1985 तक काम किया. जनवरी 1986 में दिल्ली चले आए और 1986 से 1992 तक पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली जे. सोराबजी के साथ काम किया.
उनके पिता वरिष्ठ अधिवक्ता यू.आर. ललित को बांबे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था. हालांकि, आपातकाल के दौरान तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ फैसला सुनाने के बाद हाई कोर्ट के जज के तौर पर उनकी नियुक्ति की पुष्टि नहीं की गई.
2004 में सुप्रीम कोर्ट ने यू.यू. ललित को वरिष्ठ अधिवक्ता नियुक्त किया.
एक वकील के तौर पर वह आपराधिक कानून में अपनी विशेषज्ञता के लिए ख्यात रहे हैं और उन्होंने कुछ राजनेताओं सहित कई हाई-प्रोफाइल क्लाइंट का प्रतिनिधित्व किया. वह काले हिरण के शिकार मामले में अभिनेता सलमान खान, क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू और भ्रष्टाचार के एक मामले में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह की ओर से पेश हुए थे.
2011 में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी साफ-सुथरी छवि को देखते हुए केंद्र सरकार से 2जी मुकदमे के मामले में उन्हें विशेष अभियोजक के तौर पर नियुक्त करने को कहा.
इसके तुरंत बाद ही 2014 में ललित सीधे सुप्रीम कोर्ट में जज बनने वाले छठे वकील बन गए.
सुप्रीम कोर्ट की एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड आस्था शर्मा, जो बतौर वकील ललित को नियमित तौर पर ब्रीफ देती थीं, उन्हें एक सच्चे और ईमानदार व्यक्ति के तौर पर याद करती हैं.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मैंने एक वकील के तौर पर उनसे जीवन का सबसे मूल्यवान सबक सीखा है, और वह है अपने मुवक्किल को कभी भी बेईमानी के साथ कुछ करने सलाह नहीं देनी चाहिए, भले ही कितनी भी छोटी क्यों न हो.’
उन्होंने कहा, ‘युवा पीढ़ी के अपने मामले और बढ़-चढ़कर दलीलें पेश करने पर विशेष धैर्य रखते हुए जस्टिस ललित के पास यह सुनिश्चित करने का अपना ही एक तरीका रहा है कि न्याय दिया जाए.’
फर्नांडीस ने भी इस पर जोर दिया कि ललित के पास एक सीजेआई के प्रतिष्ठित पद पर होने की सभी खूबियां मौजूद हैं.
फर्नांडीस ने दिप्रिंट को बताया, ‘जस्टिस ललित को देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर देखकर मुझे बहुत गर्व होता है. वह सुप्रीम कोर्ट बार के एक साथी सदस्य और एक प्रतिष्ठित वरिष्ठ अधिवक्ता रहे हैं, जो बेंच में प्रोन्नत होने की पूरी योग्यता रखते थे.’
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उल्लेखनीय फैसले
सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सदस्य के रूप में ललित कई महत्वपूर्ण फैसलों का हिस्सा रहे हैं.
वह संविधान पीठ के उन पांच न्यायाधीशों में से एक थे, जिसने अगस्त 2017 में दो के मुकाबले तीन के बहुमत से फैसला सुनाया था कि तीन तलाक की प्रथा असंवैधानिक है.
पिछले साल नवंबर में उनके नेतृत्व वाली एक पीठ ने बांबे हाईकोर्ट के दो विवादास्पद फैसलों को खारिज कर दिया था, जिसमें कहा गया था कि स्किन-टू-स्किन टच के बीच बच्ची को छूना यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत यौन हमला नहीं कहा जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यौन हमले में ‘सबसे जरूरी बात’ यह है कि कि इसके पीछ ‘यौन इरादा’ था या नहीं.
सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने भी सवालों के घेरे में आई बांबे हाई कोर्ट की जज को कोर्ट में स्थायी तौर पर नियुक्त करने की पुष्टि नहीं की. उन्हें जिला न्यायाधीश के रूप में पदावनत कर दिया गया, जिसके बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया.
2019 में जस्टिस ललित को अयोध्या टाइटल सूट की सुनवाई करने वाले जजों में से एक के तौर पर नामित किया गया था. लेकिन उन्होंने खुद को इससे अलग कर लिया जब एक पक्ष ने उनसे कहा कि वह तो बाबरी मस्जिद से जुड़े आपराधिक मामले में यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की तरफ से पेश हुए थे.
पिछले महीने ललित की अगुवाई वाली पीठ ने अदालत की अवमानना के दोषी भगोड़े कारोबारी विजय माल्या को चार महीने की कैद और 2,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई थी. उन्होंने माल्या को अदालत की अवमानना के लिए दोषी ठहराने वाली पीठ का भी नेतृत्व किया था.
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‘नालसा को लेकर बेहद गंभीर’
फर्नांडीस ने ललित को एक विनम्र लेकिन दृढ़प्रतिज्ञ व्यक्ति बताया, जिसे ‘दीवानी, फौजदारी और संवैधानिक मुद्दों पर दुर्लभ महारत’ हासिल है. इसके अलावा, वह सामाजिक न्याय व्यवस्था के भी समर्थक हैं.
यह बात खासकर तब सामने आई जब जस्टिस ललित ने पिछले साल राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नालसा) के चेयरमैन के तौर पर पदभार संभाला, जो एक वैधानिक निकाय है और गरीबों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करता है.
जस्टिस ललित ने पिछले साल अक्टूबर में कानूनी जागरूकता पर शुरू किए गए एक आउटरीच कैंपेन के तहत 42 दिनों की यात्रा की और तमाम दूरदराज के इलाकों में जाकर स्थिति का जायजा लिया था.
उनके परिवार के एक सदस्य ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा, ‘एक न्यायाधीश के तौर पर उनके पास किसी रिक्रिएशनल एक्टिविटी के लिए शायद ही कभी कोई समय था, लेकिन नालसा के तहत प्रोजेक्ट ने वास्तव में उन्हें काफी भावुक कर दिया था. अपने स्वभाव के अनुरूप उन्होंने देशभर में हर व्यक्ति तक पहुंचने वाले, और नागरिकों को उनके कानूनी और संवैधानिक अधिकारों के बारे में जागरूक करने वाले प्रोग्राम का मार्गदर्शन किया.
उन्होंने कोविड को भी नालसा के कानूनी सहायता कार्यक्रमों में बाधा नहीं बनने दिया. जब महामारी के कारण पाबंदियां लागू थी, तब नालसा ने डिजिटल लोक अदालतों का आयोजन किया और लाखों प्री-लिटिगेशन और कोर्ट पहुंच चुके विवादों को सौहार्दपूर्ण ढंग से समाधान निकाला.
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