नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि खुफिया या सुरक्षा से जुड़े किसी भी संगठन का नेतृत्व करने वाले या उसमें काम कर चुके सेवानिवृत्त सिविल सेवक संबंधित संगठन प्रमुख से मंजूरी के बिना अपने संगठन के मामलों से संबंधित कोई विवरण प्रकाशित नहीं कर सकते हैं.
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) की तरफ से सोमवार को जारी एक अधिसूचना में बताया गया है, केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियमावली, 1972 में एक संशोधन किया गया है. इसके मुताबिक, ‘कोई भी सरकारी कर्मचारी, जिसने सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की दूसरी अनुसूची में शामिल किसी भी खुफिया या सुरक्षा संबधी संगठन में काम किया हो, अपनी सेवानिवृत्ति के बाद संबंधित संगठन प्रमुख की पूर्व अनुमति के बिना ऐसा कुछ प्रकाशित नहीं करा सकता’ जिसकी सामग्री संगठन के डोमेन, संदर्भ या किसी कर्मचारी से जुड़ी हो या उस फिर संगठन में काम करने के दौरान हासिल विशेषज्ञता या ज्ञान से संबंधित हो.
इसके अलावा, सेवानिवृत्त अधिकारियों को ऐसी ‘संवेदनशील जानकारी प्रकाशित करने से भी रोका गया है, जिसके सामने आने से देश की संप्रभुता और अखंडता, देश की सुरक्षा के अलावा रणनीतिक, वैज्ञानिक अथवा आर्थिक हित प्रभावित होते हों, या किसी अन्य देश के साथ संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता हो या फिर यह किसी अपराध के लिए उकसाने की वजह बन सकती हो.’
अधिसूचना में कहा गया है कि प्रकाशन के लिए प्रस्तावित सामग्री ‘संवेदनशील’ है या ‘गैर-संवेदनशील’, ये तय करने का अधिकार संगठन के प्रमुख को ही होगा.
दिप्रिंट ने अधिसूचना की एक प्रति हासिल की है.
इसमें बताया गया है कि निर्देशों का पालन नहीं करने पर संबंधित अधिकारी की पेंशन भी रोकी जा सकती है.
अधिसूचना के मुताबिक, भारत के राष्ट्रपति की तरफ से संविधान के अनुच्छेद 309 के तहत ये नियम बनाए गए हैं, जो राष्ट्रपति को ‘ऐसी सेवाओं और पदों पर नियुक्त किए जाने वाले लोगों की भर्ती और सेवा शर्तों को विनियमित करने के लिए नियम बनाने’ का अधिकार देता है.
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सेवारत और सेवानिवृत्त अधिकारियों के आचरण संबंधी नियम
हालांकि, यह पहली बार है कि सरकार की तरफ से सेवानिवृत्त अधिकारियों को उनके कामकाज से संबंधित मामलों पर टिप्पणी के लिए पूर्व अनुमति लिया जाना अनिवार्य किया गया है, लेकिन इससे पहले भी सेवानिवृत्त अधिकारियों द्वारा संवेदनशील जानकारी सार्वजनिक करने से रोकने के प्रयास किए जाते रहे हैं.
अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियमावली, 1968 में कहा गया है, ‘सेवारत/सेवानिवृत्त अधिकारियों को पुस्तकें/लेख प्रकाशित करने की अनुमति देते समय सरकारी गोपनीयता अधिनियम, 1923 के प्रावधानों के बारे में अधिक सतर्कता/विवेक का इस्तेमाल किया जाना चाहिए.’
नियमों के मुताबिक, ‘यह बात सरकार के ध्यान में लाई गई है कि कुछ सेवानिवृत्त अधिकारियों ने किताबें/लेख प्रकाशित किए हैं, जो देश की सुरक्षा से संबंधित कुछ ऑपरेशन के बारे में संवेदनशील जानकारी का खुलासा करते हैं/भारत की संप्रभुता और अखंडता पर असर डालते हैं. तथ्य यह भी है कि इस तरह के खुलासे से न केवल सरकार के असहज होने की संभावना है, बल्कि जिन संबंधित अधिकारियों के नाम का खुलासा हुआ है, उनकी वजह से दूसरे देशों के साथ सौहार्दपूर्ण और मैत्रीपूर्ण संबंधों पर घातक प्रतिकूल असर पड़ने की भी आशंका है.’
नियमों के मुताबिक, संबंधित मंत्रालयों की तरफ से ‘ऐसे मामलों की बहुत सावधानीपूर्वक और गहन समीक्षा किए जाने और ये सुनिश्चित करने की जरूरत है कि समय आने पर जहां भी अनिवार्य हो सरकारी गोपनीयता अधिनियम, 1923/सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों की पेंशन संबंधी शर्तों को निर्धारित करने वाले उपयुक्त पेंशन नियमों के तहत उचित कार्रवाई की जाए.
यद्यपि आचरण संबंधी नियमावली के तहत सेवारत अधिकारियों के लिए सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के बिना सरकार के कामकाज या नीतियों के बारे में कोई भी जानकारी सार्वजनिक करने पर पूरी तरह से रोक है, लेकिन सेवानिवृत्त अधिकारियों को पहली बार इस नियम के दायरे में लाया गया है.
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