भुवनेश्वर, सात जून (भाषा)राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यन ने कहा कि समग्र शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति के चरित्र को आकार देना और छात्र को आत्मनिर्भर बनाना है।
न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यन ने शुक्रवार शाम को यहां शिक्षा ‘ओ’ अनुसंधान (मानद विश्वविद्यालय)में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिए जो विद्यार्थी को चरित्र, मानसिक शक्ति और बुद्धि से सुसज्जित कर सके।
उन्होंने कहा, ‘‘शिक्षा को विद्यार्थी के चरित्र का निर्माण करना चाहिए, साथ ही उसकी बुद्धि का विकास करना चाहिए, मानसिक शक्ति बढ़ानी चाहिए तथा उसे अपने पैरों पर खड़ा होने में सक्षम बनाना चाहिए।’’
एनएचआरसी के अध्यक्ष ने कहा कि आजकल अधिकांश छात्र शिकायत करते हैं कि वे ‘‘तनावग्रस्त रहते हैं’’, यह एक ऐसा शब्द है, जो 40 साल पहले शायद ही कभी सुना जाता था। उन्होंने कहा कि इसका केवल इतना तात्पर्य है कि वर्तमान पीढ़ी को इतना लाड़-प्यार दिया गया है कि वे किसी भी समस्या का सामना करने में असमर्थ हैं।
न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यन ने कहा, ‘‘यह बताता है कि अच्छी शिक्षा और जरूरत की हर चीज उपलब्ध होने के बावजूद हम खुशहाल जीवन क्यों नहीं जी सकते।’’ उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा छात्रों को मानसिक रूप से मजबूत बनाने में ‘विफल’ रही है।
उन्होंने कहा,‘‘आज सफलता ही मायने रखती है, लेकिन हम यह नहीं समझते कि सच्ची सफलता क्या है। शिक्षा पूरी कर लेना या बड़ी नौकरी पा लेना ही सफलता नहीं है। जीवन सफलता को उस तरह नहीं देखता, जिस तरह हम देखते हैं।’’
एनएचआरसी प्रमुख ने सवाल किया, ‘‘ क्या महाविद्यालय और विश्वविद्यालय छात्रों को संकट प्रबंधन सिखाते हैं? लोगों के पास डिग्री तो है, लेकिन क्या उन्होंने सीखा है?’’
उन्होंने कहा कि जरूरत इस बात की है कि ‘‘लोगों को जीवन का सामना करने का कौशल प्रदान किया जाए तथा उन्हें सही दृष्टिकोण सिखाया जाए।’’
न्यायमूर्ति वी. रामसुब्रमण्यन ने कहा, ‘‘कोई व्यक्ति अपना पाठ्यक्रम पूरा कर सकता है, लेकिन कोई भी शिक्षा पूरी नहीं कर सकता, क्योंकि सीखने की प्रक्रिया जन्म से लेकर मरण तक चलती रहती है।’’
भाषा धीरज दिलीप
दिलीप
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