नई दिल्ली: जो डॉक्टर कोविड-19 के मरीजों का इलाज करते हैं, सिर्फ उन्हें संक्रमण का खतरा नहीं है. खतरे में वो डॉक्टर भी हैं जो मृतकों से निपटते हैं.
शव परीक्षण करने वाले डॉक्टर संक्रमित नहीं हों, ये सुनिश्चित करने के लिए कई अस्पताल अब शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए भेजने से पहले कोविड-19 के लिए टेस्ट कर रहे हैं.
सफदरजंग अस्पताल में ज्ञात और अज्ञात शवों को पोस्टमार्टम से पहले वायरस के लिए परीक्षण किया जा रहा है.
अस्पताल के एक सूत्र ने दिप्रिंट को बताया कि इस बात के स्पष्ट निर्देश हैं कि किसी भी शव को मोर्चरी में भेजे जाने से पहले शरीर का एक नमूना लिया जाना चाहिए और कोविड-19 का परीक्षण किया जाये.
‘ऐसे समय में अस्पताल में आने वाले प्रत्येक शरीर को वायरस का एक संभावित वाहक माना जाना चाहिए जो संक्रमण फैला सकता है, और इसलिए इसका परीक्षण किया जाना चाहिए. ऐसा इसलिए है क्योंकि अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य बीमारी से मर गया है, तो भी हमें ये नहीं बता सकते कि वह संक्रमित था या नहीं.’
‘शव को अंदर लाने के बाद सबसे पहले एक नमूना लिया जाता है. फिर रिपोर्ट आने तक शव को संरक्षण के लिए भेज दिया जाता है. परीक्षण के नतीजे सामने आने के बाद ही शव की ऑटोप्सी की जाती है.
कोविड-19 के मरने वाले मरीजों के शव देशभर के किसी भी अस्पताल में पोस्टमार्टम के लिए नहीं भेजे जा रहे हैं.
‘हमें कोविड-19 से संक्रमित शव पर ऑटोप्सी करने को तभी कहा गया है जब इसकी बहुत ज़रूरत हो. अब तक हमें ऐसा कोई मामला नहीं मिला है.’, सूत्र ने बताया.
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शवों का निपटारा
किसी शव में कोरोनोवायरस ढूंढ़ना यह सुनिश्चित करता है कि स्वास्थ्यकर्मियों या किसी और को खतरे में डाले बिना इससे ठीक से निपटा जा सके.
सफदरजंग अस्पताल के सूत्र के अनुसार, संक्रमित शवों के निपटान की एक स्पष्ट प्रक्रिया है.
‘ज्यादातर अस्पतालों में अब ऐसी समितियां हैं जो सुनिश्चित करती हैं कि कोविड-19 वाले शवों का अंतिम संस्कार या दफनाना उचित प्रक्रिया के बाद हो.’
अगर एक शव कोविड-19 से संक्रमित पाया जाता है, तो इसे सीधे परिवार को नहीं सौंपा जाता है. इसे घर ले जाने की अनुमति नहीं है और अस्पताल से कोई व्यक्ति परिवार के साथ श्मशान घाट तक यह सुनिश्चित करने के लिए जाता है कि लोगों और शरीर के बीच कम से कम संपर्क हो.
‘हम पुलिस और श्मशान कर्मचारियों के साथ समन्वय करते हैं. अस्पताल के कर्मचारियों की मौजूदगी में शव का निपटान किया जाता है ताकि शरीर को किसी और द्वारा इसके संपर्क में आने से रोका जा सके.
लेकिन कुछ अस्पतालों में शव परीक्षण करने के लिए पर्याप्त किट नहीं हैं. कभी-कभी परिणाम गलत भी हो सकता है. इसलिए फॉरेंसिक टीमों को ऑटोप्सी करते समय दिशा-निर्देशों के एक सेट का पालन करने के लिए कहा गया है.
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक सूत्र के अनुसार, टीमों को सलाह दी गई है कि वे ‘न्यूनतम ऑटोप्सी’ करें और शव की आन्तरिक चीर-फाड़ से बचें.
‘यही कारण है कि अब हम न्यूनतम शव परीक्षण के साथ जा रहे हैं, जिसमें सीटी स्कैन और अन्य प्रक्रिया शामिल हैं. इस से कम से कम जोखिम में ऑटोप्सी की जा सकती है.
दूसरी ओर, सफदरजंग अस्पताल में न्यूनतम ऑटोप्सी के लिए उपकरण नहीं हैं और इसलिए वे पूरे शव परीक्षण करते हैं लेकिन उचित गियर पहनते हैं.
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कम काम, पर जोखिम ज्यादा
फॉरेंसिक टीमों के लिए ऑटोप्सी उनके द्वारा किए जाने वाले काम का हिस्सा है. लॉकडाउन को देखते हुए अपराध दर में गिरावट आई है, जिसके परिणामस्वरूप उनका कार्यभार आधे से कम हो गया है. हालांकि, इसका मतलब है कि कोविड-19 के कारण शवों के साथ निपटते समय उन्हें अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है.
‘हत्या के मामले लगभग शून्य हैं, लेकिन हम अभी भी बेघरों के शरीर प्राप्त कर रहे हैं, उनमें से कई अज्ञात और यहां तक कि प्राकृतिक मौतें भी हैं. हालांकि, दुर्घटना के मामलों में कमी आई है, लेकिन अभी भी कई लोग खाली सड़कों के कारण लापरवाही से गाड़ी चला रहे हैं’, एम्स के एक दूसरे सूत्र ने बताया.
‘हमारे सामान्य कार्यभार की तुलना में अधिकांश मामलों में लगभग 50 प्रतिशत कमी आई है, लेकिन हमारा काम निश्चित रूप से जोखिम भरा हो गया है क्योंकि अगर हम उचित सावधानी नहीं बरतते हैं तो वायरस को पकड़ने की संभावना अधिक होती है.’
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