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Thursday, 9 May, 2024
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स्टेथोस्कोप के बिना डॉक्टर और ओपीडी में सामाजिक दूरी—ऐसे धीरे-धीरे खुल रहा एम्स

कोविड के कारण बंद कर दी गई एम्स की ओपीडी सुविधा फिर शुरू होने पर धीरे-धीरे वहां मरीजों का पहुंचना शुरू हो गया है. डॉक्टरों का कहना है कि टेलीमेडिसिन जैसे तरीके अब स्वास्थ्य सेवा का हिस्सा बन रहे हैं.

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नई दिल्ली: स्टेथोस्कोप के बजाय अल्ट्रासाउंड मशीनों का इस्तेमाल करते डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मियों के लिए ज्यादा सुरक्षात्मक उपाय, टेलीमेडिसिन और आने वाले सभी रोगियों को संदिग्ध कोविड-19 केस के तौर पर देखना—ये ऐसे कुछ नए उपाय हैं जो स्वास्थ्य सेवाओं के बदले स्वरूप के मद्देनजर राष्ट्रीय राजधानी में प्रतिष्ठित संस्थान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में अपनाए जा रहे है.

अस्पताल अब अपने आउट पेशेंट विभाग यानी ओपीडी सुविधाओं को पूरी सावधानी के साथ फिर खोल रहा है, जिसे उसने साढ़े तीन महीने पहले स्पेशिएलिटी क्लिनिक सेवाओं के साथ बंद कर दिया था—महामारी को देखते हुए यह फैसला 64 साल के इतिहास में पहली बार किया गया था.

आठ साल से एम्स में सुरक्षा गार्ड विकास कुमार ने बताया कि उन्होंने अस्पताल परिसर कभी भी इतना सूना नहीं देखा, जितना यह अब खाली रहता है. कुमार ने कहा, ‘ऐसा पहले कभी नहीं हुआ.’ सामान्य परिस्थितियों में कुमार को अप्वाइंमेंट और दिखाने के लिए लाइन में लगकर धक्का-मुक्की करने वाले सैकड़ों मरीजों को संभालना पड़ता था. कुमार ने बताया, ‘अगली सुबह 9.30 बजे से मिलने वाले अप्वाइंटमेंट के लिए रात तीन बजे से ही मरीजों की लाइन लग जाती थी.’

25 मार्च को लॉकडाउन लागू होने से पहले तक ओपीडी में हर रोज 10,000-15,000 मरीजों को देखा जाता था.

अब, अस्पताल की ओपीडी सेवा आंशिक तौर पर फिर शुरू होने के साथ धीरे-धीरे मरीज आने लगे हैं, विभिन्न विभागों में हर दिन करीब 1,000 मरीजों को देखा जाता है. 23 जून से प्रत्येक विभाग को हर दिन पूर्व निर्धारित अप्वाइंटमेंट के मुताबिक ज्यादा से ज्यादा 15 मरीज देखने की अनुमति है.

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मंगलवार को, विभागों को 30 अतिरिक्त मरीजों को देखने की अनुमति दी गई थी, जिनमें से कुछ पहली बार परामर्श के लिए आए थे.

दिप्रिंट ने एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया, आधिकारिक प्रवक्ता डॉ. आरती विज और चिकित्सा अधीक्षक डी.के. शर्मा से फोन कॉल और टेक्स्ट मैसेज के माध्यम से जानना चाहा कि संस्थान मौजूदा स्थितियों से कैसे निपट रहा है, लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित होने के समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.

हालांकि, कई डॉक्टरों ने कहा कि एम्स में स्वास्थ्य सेवाएं अब कभी पहले जैसी नहीं होंगी, क्योंकि संस्थान नई चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए नए तौर-तरीके अपना रहा है.


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टेलीमेडिसिन

एम्स में जो सबसे बड़ा बदलाव दिखा है वो है टेलीमेडिसिन का इस्तेमाल बढ़ना. 28 मार्च को एम्स ने कोविड प्रबंधन के लिए मेडिकल गाइडेंस की जरूरत को देखते हुए अन्य डॉक्टरों और मरीजों की मदद के लिए कोविड-19 नेशनल टेलीकंसल्टेशन सेंटर (कॉन्टेक) लांच किया था.

कॉल सेंटर के निरीक्षण की जिम्मेदारी संभाल रहे डॉ. ए. शरीफ ने दिप्रिंट को बताया कि इसमें अब तक 50 डॉक्टरों का एक समूह 25,000 से अधिक कॉल का जवाब दे चुका है.

संस्थान में एडिशनल प्रोफेसर शरीफ मेडिकल छात्रों के लिए पाठ्यक्रम विकास से जुड़े हैं लेकिन टेक्नोलॉजी में भी रुचि रखते हैं. उन्हें अस्पताल की टेलीमेडिसिन सुविधा का प्रभारी बनाया गया है और एक ओपन-सोर्स हेल्पलाइन सिस्टम लागू किया गया है, जो कॉल करने वालों को उनका डाटा गोपनीय रखते हुए डॉक्टरों से जोड़ेगा.

शरीफ ने कहा, ‘हमारे पास आने वाले कॉल की संख्या हर दिन बढ़ रही है. अधिकांश एम्स में इलाज करा चुके मरीज हैं जो विभिन्न विभागों के लिए अप्वाइंटमेंट मांगते हैं. हालांकि यह एक कोविड हेल्पलाइन थी, फिर भी हम मरीज की हर तरह से मदद की कोशिश करते हैं.’

कॉन्टेक हेल्पलाइन ने चिकित्सीय तनाव से जूझ रहे लोगों के लिए एक अनौपचारिक हेल्पलाइन के तौर पर काम करने के अलावा विभिन्न विभागों में अप्वाइंटमेंट चाहने वाले हजारों मरीजों की सहायता की है. जब कोई मरीज ओपीडी के तहत अस्पताल के किसी विभाग में अप्वाइंटमेंट मांगता है तो कॉलसेंटर के वालंटियर उस कॉल को डाटा एंट्री ऑपरेटर को डायवर्ट कर देते हैं, जो संबंधित विभाग से कॉल बैक की सुविधा उपलब्ध कराता है.

जून के अंत तक, विभिन्न विभागों में 69,000 से अधिक टेलीकंसल्टेशन हुए.

शरीफ ने कहा, ‘केवल ओपीडी सेवाओं की आवश्यकता वाले मरीज ही आ रहे हैं. जब किसी अप्वाइंटमेंट के लिए संबंधित विभाग के डॉक्टरों को अनुरोध मिलता है, तो वे मरीज के बारे में पूरी जानकारी का मूल्यांकन करते हैं फिर तय करते हैं कि उन्हें देखने के लिए बुलाएंगे या फिर फोन पर ही सलाह देंगे.’

कॉन्टेक ने एक दूसरे उद्देश्य को भी पूरा किया है: कोविड मरीजों के इलाज से जुड़ी ताजा जानकारियों के लिए एम्स के डॉक्टरों के संपर्क में रहने में देशभर के डॉक्टरों की मदद, जिसमें छोटे शहर और गांव भी शामिल हैं.

कोविड के इलाज प्रबंधन को लेकर राज्यों के अपने प्रोटोकॉल हो सकते हैं, लेकिन कॉन्टेक के नोडल अधिकारियों में से एक डॉ. विजय हाडा बताते हैं कि यह जानकारियां नीचे तक पहुंचने में थोड़ा समय लगता है.

डॉ. हाडा ने कहा, ‘एक प्रमुख संस्थान होने के नाते हर कोई हमसे जवाब की अपेक्षा रखता है. एक बार राजस्थान के एक जिला अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक का फोन आया और उन्होंने जानना चाहा कि कोविड मेडिकल कचरे का निपटान कैसे करें, मुझे जवाब खुद नहीं पता था, इसलिए उन्हें पलटकर फिर फोन करने से पहले मैंने यहां नर्सों और अन्य स्टाफ से बात करके पता किया कि हम क्या करते हैं.’

शरीफ ने कहा कि टेलीमेडिसिन प्रणाली यहां जारी रहने वाली है.

The AIIMS Emergency ward. Photo: Simrin Sirur/ThePrint

गलत नंबर, ‘शर्मीले मरीज’

न्यूरोलॉजी और डर्मेटोलॉजी जैसे कुछ विभागों ने परामर्श के इस उभरते मॉडल को अच्छी तरह संभाला है, लेकिन सर्जरी जैसे कुछ विभागों ने इसे उपयोगी नहीं पाया.

न्यूरोलॉजी में सहायक प्रोफेसर डॉ. विष्णु वी.वाई. ने कहा, ‘हम टेलीमेडिसिन के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं, इसलिए शुरू में तो इसके इस्तेमाल को लेकर कुछ संशकित थे. लेकिन महामारी ने वास्तव में हमारे पास कोई और विकल्प नहीं छोड़ा है. यद्यपि पूर्व में इलाज करा चुके मरीजों को परामर्श देना आसान है, और, लॉकडाउन की इस अवधि ने मुझे वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से अच्छी गुणवत्ता के इलाज के अभ्यास के प्रति आश्वस्त किया है.’

लेकिन समस्याएं भी आती है. डॉ. विष्णु ने बताया कि वह एक दिन में 21 टेलीमेडिसिन अप्वाइंटमेंट में से करीब 60-70 फीसदी मरीजों के साथ जुड़ने में सक्षम है, ‘क्योंकि या तो वह गलत नंबर दे देते हैं, या किसी रिश्तेदार के माध्यम से हमसे संपर्क करते हैं जो बाद में मरीज के साथ नहीं होता है.’

डॉ. हाडा ने बताया, ‘आमने-सामने बैठे बिना बातचीत करने में मरीज अक्सर अपनी समस्याएं स्वीकार करने में शर्माते नजर आते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘किसी मरीज से मिलना और उसे छूकर देखना अक्सर उनमें आत्मविश्वास पैदा करता है. इसके बिना यह सब औपचारिक भाव भर लगता है जो किसी भी तरह की बेबाक बातचीत में बाधा हो सकता है.’

डॉक्टरों को लगता है कि टेलीमेडिसिन मरीजों और डॉक्टरों दोनों के लिए भरोसेमंद बने इसके लिए इसे और यूजर-फ्रैंडली बनाना जरूरी होगा, लेकिन यह कोविड बाद की दुनिया में एक स्थायी व्यवस्था के लिहाज से उपयोगी है.

एम्स के वृद्ध चिकित्सा विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉ. विजय गुर्जर ने कहा, ‘कोई वजह नहीं कि मरीजों को सिर्फ परामर्श के लिए हजारों किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है, जबकि इसमें औसतन 5-10 मिनट लगते हैं. मुझे लगता है कि आने वाले समय एसटीडी/आईएसडी जैसे बूथ होंगे जहां से मरीज विशेषज्ञों से परामर्श ले सकेंगे.’


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ओपीडी में शारीरिक दूरी का पालन

इस बीच, ओपीडी की जगह साझा करने वाले विभाग यह निर्धारित करने में लगे हैं कि यहां आने वाले मरीजों के लिए किस तरह की व्यवस्था की जाए.

डॉ. विष्णु ने कहा, ‘उदाहरण के तौर पर हम कार्डियोलॉजी और न्यूरोसर्जरी विभागों के साथ अपना ओपीडी स्थान साझा करते हैं. अब तक (जून में ओपीडी खुलने के बाद से) ओपीडी में सिर्फ हमारे विभाग के मरीजों को आने दिया जा रहा था. अब हमें विभागों के बीच एक बैठक करने की जरूरत पड़ेगी ताकि यह तय किया जा सके कि ज्यादा संख्या में नए मरीजों के आने के आने की स्थिति में शारीरिक दूरी की व्यवस्था कैसे की जाए.’

गुर्जर ने कहा कि कुछ मरीजों को तमाम चिकित्सकीय परीक्षण कराने के लिए अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता होती है, जो लॉकडाउन के कारण बंद हो गया है.

उन्होंने कहा, ‘विशेष रूप से असाध्य रोगों और कैंसर के मामले में मरीजों को भर्ती करने की आवश्यकता होती है, लेकिन अस्पताल में वायरस की चपेट में आने के डर से वह इससे कतरा रहे हैं.’ साथ ही जोड़ा कि अस्पताल में जरूरी प्रक्रिया और जिन प्रक्रियाओं को टाला जा सके, उनके बीच एक संतुलन की जरूरत है.

वार्डों में ज्यादा सख्ती

एम्स नर्स यूनियन के संयुक्त सचिव मोहम्मद जेसल ने कहा, ‘कोरोनोवायरस महामारी से पहले, मैंने सिर्फ एक बार एम्स के डॉक्टरों को पूरी तरह पीपीई किट पहनकर मरीज का निरीक्षण करते देखा था…जब 2014 में ‘कांगो वायरस’ से पीड़ित एक मरीज यहां आया था. अब जब हम इमरजेंसी में होते हैं तो लेवल 3 पीपीई के बिना काम नहीं कर सकते. मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसी स्थिति आ जाएगी.’

जेसल ने बताया कि कोविड और गैर-कोविड दोनों ड्यूटी पर तैनात नर्स और डॉक्टर हर समय विभिन्न स्तर पर निजी सुरक्षा उपायों से लैस होते हैं. उन्होंने कहा, ‘हमें पता नहीं होता कि आपात स्थिति में कौन से मरीज आ रहे हैं. इसलिए वहां सभी को पीपीई पहनना होता है. लेकिन जब हम ओपीडी में किसी मरीज को देखते हैं, तो इसे पहनने की आवश्यकता नहीं होती है.’

प्रोटोकॉल के तौर पर इमरजेंसी में भर्ती होने वाले सभी मरीजों को संदिग्ध कोविड केस के तौर पर देखा जाता है और पहले रैपिड एंटीजन टेस्ट और फिर आरटी-पीसीआर परीक्षण किया जाता है. संस्थान ने उन सभी का परीक्षण शुरू कर दिया है जो यहां इलाज के लिए भर्ती हो रहे और जिनकी कोई सर्जरी होनी है.

वार्ड में हर मरीज के बिस्तर पर नीचे की तरफ उसे देखने के लिए आने वाले प्रत्येक डॉक्टर व स्वास्थ्य कार्यकर्ता का पूरा ब्योरा रखा जाता है ताकि कभी जरूरत पड़ने पर कांटैक्ट ट्रेसिंग में आसानी हो. डॉक्टर अब फिजिकल एक्जामिनेशन के बजाये मरीज की हिस्ट्री और जांच पर ज्यादा भरोसा करते हैं.

गैर-कोविड आईसीयू ड्यूटी में लगे इंटर्नल मेडिसन के सेकेंड इयर रेजिडेंट डॉ. उमंग अरोड़ा ने कहा, ‘एक तरह से यह काफी सख्त व्यवस्था है क्योंकि हम बीमारी को सही तरह से पकड़ पाएं इसके लिए मरीजों को ज्यादा से ज्यादा टेस्ट कराने को कहा जाता है.

कोविड के खतरे को देखते हुए आंतरिक अंगों की स्थिति का पता लगाने में अल्ट्रासाउंड की भूमिका बेहद अहम हो गई है क्योंकि डॉक्टर पीपीई पहने होने के कारण स्टेथोस्कोप का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं, और सभी मरीजों में सांस की समस्या जैसे लक्षण नहीं होते हैं.

कोविड वार्ड और आईसीयू में काम कर रही इंटर्नल मेडिसन की जूनियर रेजिडेंट डॉ. प्रेरणा गर्ग ने कहा, ‘स्टेथोस्कोप के इस्तेमाल के दौरान मरीज को गहरी सांसें लेने और छोड़ने को कहा जाता और यहां तक कि खांसने को भी कहा जाता है जो अब के समय में ठीक नहीं है. इसलिए हम न्यूमोनिया या संक्रमण का पता लगाने के लिए सीधे अल्ट्रासाउंड से ही फेफड़ों की जांच करते हैं.’

उन्होंने आगे कहा कि एम्स में ऐसा करना आसान है क्योंकि अल्ट्रासाउंड मशीनें इमरजेंसी यूनिट, वार्ड और आईसीयू में आसपास ही उपलब्ध हैं, और अब तो इंट्यूबेशन या वेंटिलेटर ट्यूब डालने की प्रक्रिया के दौरान भी इसका ज्यादा से ज्यादा उपयोग किया जा रहा है.


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संक्रमित स्वास्थ्यकर्मी

हर तरह की सावधानी बरते जाने के बावजूद एम्स में 5,000 नर्सों में से लगभग 200 कोविड से संक्रमित हैं.

संस्थान के कर्मचारी स्वास्थ्य विभाग, जो सभी कर्मचारियों और उनके परिजनों के कोविड टेस्ट के लिए खुला है, में काम कर रहे एक अन्य डॉक्टर ने बताया कि कोविड से संक्रमित डॉक्टरों, नर्सों, सफाई कर्मचारियों समेत हेल्थकेयर कर्मियों और उनके परिजनों की कुल संख्या 1000 से ऊपर हो चुकी है.

डॉक्टर ने बताया, ‘जून में प्रतिदिन किए गए 250-300 टेस्ट में से 50-75 मामले पॉजिटिव निकले, जो संख्या जुलाई में धीरे-धीरे घट रही है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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