नयी दिल्ली, तीन जुलाई (भाषा) अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने यौन शोषण की नाबालिग पीड़िता को 27 सप्ताह का गर्भ समाप्त करने की अनुमति देने वाले एक आदेश के खिलाफ बृहस्पतिवार को दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया।
उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने 30 जून को एम्स को 16 वर्षीय लड़की का गर्भपात करने का आदेश दिया था।
एम्स ने मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की पीठ के समक्ष दलील दी कि गर्भपात कराने से भविष्य में लड़की के प्रजनन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
पीठ ने नाबालिग लड़की की मां और मेडिकल बोर्ड के अध्यक्ष या सदस्य को दोपहर करीब 2.30 बजे उपस्थित रहने को कहा, जब सुनवाई जारी रहेगी।
अदालत ने यह भी कहा कि ‘‘बलात्कार पीड़िता को गर्भावस्था जारी रखने की सलाह देने से उसमें चिंता पैदा होगी’’, जिसका उसके मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।
एम्स की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि मेडिकल बोर्ड की राय है कि लड़की के स्वास्थ्य की रक्षा की जानी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं, आज न्यायालय के एक अधिकारी के रूप में आप सभी से आग्रह करता हूं कि आप इस छोटी बच्ची के ‘कानूनी संरक्षक’ बनें और उसकी रक्षा करें। वह बच्चा नहीं चाहती, यह समझ में आता है। हम, एम्स में बच्चे के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे।’’
अदालत ने जब पूछा कि क्या 34 सप्ताह के बाद गर्भपात कराना सुरक्षित होगा, तो भाटी ने हां में जवाब दिया।
हालांकि, उन्होंने मौजूदा नाजुक स्थिति और लड़की के कल्याण पर ध्यान दिलाया, जिसके चलते एम्स को अदालत का रुख करना पड़ा है।
भाटी ने कहा कि लड़की 27 सप्ताह की गर्भवती है और गर्भपात कराने से उसके प्रजनन स्वास्थ्य और भविष्य में गर्भधारण करने की संभावनाएं खतरे में पड़ जाएंगी।
इस संबंध में कानून का हवाला देते हुए भाटी ने कहा कि गर्भधारण की 24 सप्ताह की अवधि के बाद गर्भावस्था को केवल दो स्थितियों में समाप्त किया जा सकता है- यदि महिला के जीवन को गंभीर खतरा हो या भ्रूण में जन्मजात विसंगतियां हों।
एम्स ने एकल न्यायाधीश के 30 जून के उस आदेश के खिलाफ याचिका दायर की है, जिसमें यौन उत्पीड़न की पीड़ित नाबालिग को उसके 26 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी गई थी।
यह बात रिकॉर्ड में आई कि मेडिकल बोर्ड गर्भावस्था की समाप्ति की अनुमति देने के पक्ष में नहीं था, क्योंकि गर्भावधि उम्र अधिक होने के कारण संभवतः सिजेरियन सेक्शन प्रक्रिया की आवश्यकता होती, जिससे लड़की के भविष्य के प्रजनन स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता था।
मेडिकल बोर्ड ने कहा कि लड़की शारीरिक रूप से पूरी तरह स्वस्थ है।
हालांकि, लड़की और उसकी मां ने गर्भावस्था जारी न रखने पर जोर दिया।
डॉक्टरों ने गर्भ का चिकित्सकीय समापन (एमटीपी) अधिनियम के तहत प्रदत्त वैधानिक प्रतिबंधों के कारण गर्भपात करने में असमर्थता व्यक्त की थी जिसके बाद उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इस कानून के तहत सामान्य मामलों में गर्भपात कराने की प्रक्रिया को 20 सप्ताह तक तथा बलात्कार पीड़िता जैसी कुछ श्रेणियों में 24 सप्ताह तक सीमित कर दिया गया है।
लड़की के वकील के अनुसार, 2024 में दिवाली पर एक व्यक्ति ने नाबालिग का यौन उत्पीड़न किया था, लेकिन उसने इस घटना के बारे में किसी को नहीं बताया।
वकील ने बताया कि दूसरी घटना मार्च में हुई जब एक अन्य व्यक्ति ने उसका यौन उत्पीड़न किया और तब वह गर्भवती हो गई।
उसे गर्भावस्था के बारे में तब पता चला जब वह अपनी बहन के साथ डॉक्टर के पास गई । जब उसके परिवार के सदस्यों को यह पता चला, तो उसने यौन उत्पीड़न के बारे में उन्हें बताया, जिसके बाद प्राथमिकी दर्ज कराई गई।
जून में प्राथमिकी दर्ज कराने के समय, गर्भ की उम्र निर्धारित 24 सप्ताह की सीमा से अधिक हो गयी थी।
अदालत को बताया गया कि पुलिस ने मार्च में हुई यौन उत्पीड़न की घटना के आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है, जबकि पिछले साल उसके साथ यौन उत्पीड़न करने वाले व्यक्ति को अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया है।
उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने अपने फैसले में उच्चतम न्यायालय सहित अन्य निर्णयों को दर्ज किया, जिनमें 27 सप्ताह से अधिक और यहां तक कि 33 सप्ताह की गर्भावधि वाले मामलों में भी गर्भपात की अनुमति दी गई थी।
एम्स के डॉक्टरों को भ्रूण के ऊतकों को संरक्षित करने के अलावा प्रक्रिया का पूरा रिकॉर्ड रखने का आदेश दिया गया था। भ्रूण के ऊतकों का इस्तेमाल डीएनए पहचान और जांच के उद्देश्यों के लिए आवश्यक हो सकता है।
अदालत ने राज्य प्राधिकारियों को चिकित्सा प्रक्रिया, अस्पताल में लड़की के रहने का खर्च तथा ऑपरेशन के बाद की देखभाल का सारा खर्च वहन करने का निर्देश दिया।
भाषा गोला मनीषा
मनीषा
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.