नई दिल्ली: क्षेत्रीय भाषाओं में इंजीनियरिंग की पढ़ाई को लेकर छात्रों में कोई खास उत्साह नजर नहीं आ रहा है. दिप्रिंट को मिली जानकारी के मुताबिक, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) अपनी इस पहल के पहले साल में केवल 21 प्रतिशत सीटें भरने में ही सक्षम हो पाई है.
एआईसीटीई ने पिछले साल शैक्षणिक सत्र 2021-22 से क्षेत्रीय भाषाओं में इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों को मंजूरी दी थी. यह कदम नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा पर जोर देने की कवायद के तौर पर उठाया गया था—जिसकी वकालत राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 में भी की गई है. एनईपी में हर स्तर पर क्षेत्रीय भाषाओं में शिक्षा प्रदान करने की बात कही गई है.
एआईसीटीई अध्यक्ष अनिल सहस्रबुद्धे ने पिछले साल दिप्रिंट से बातचीत में कहा था कि एक सर्वे में देश भर के इंजीनियरिंग कॉलेजों के मौजूदा छात्रों में से लगभग 44 प्रतिशत ने क्षेत्रीय भाषाओं में पढ़ाई में रुचि दिखाई थी और आखिरकार अन्य बातों के साथ-साथ इस सर्वे को भी आधार बनाकर ऐसे पाठ्यक्रम शुरू करने का निर्णय लिया गया.
हालांकि, लगता है कि यह पहल बहुत कम संख्या में छात्रों को पसंद आई.
दिप्रिंट को हासिल आंकड़ों के मुताबिक शैक्षणिक सत्र 2021-22 के लिए एआईसीटीई ने देशभर के 19 इंजीनियरिंग संस्थानों में 1,230 सीटों को मंजूरी दी थी, जिसमें से 255 भरी जा चुकी हैं.
क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम चुनने वाले छात्रों ने हिंदी, मराठी, तमिल, तेलुगु और बांग्ला में पढ़ाई करने में रुचि दिखाई है. हालांकि, जैसा आंकड़ों से पता चलता है कि कन्नड़ में इंजीनियरिंग के लिए कोई उम्मीदवार आगे नहीं आया है. हिंदी में इंजीनियरिंग के इच्छुक छात्रों की संख्या सबसे अधिक थी, जिसे 116 छात्रों ने चुना. इसके बाद मराठी (60), तमिल (50), बांग्ला (16) और तेलुगु (13) का स्थान रहा.
एआईसीटीई के अधिकारियों का कहना है कि धीमी शुरुआत की एक वजह यह भी है कि छात्र इसे लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि क्षेत्रीय भाषाओं में पर्याप्त पाठ्य सामग्री उपलब्ध है.
एआईसीटीई के सदस्य सचिव राजीव कुमार ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारा मानना है कि कम प्रवेश का कारण यह भी है कि छात्रों को लगता है कि क्षेत्रीय भाषाओं में पर्याप्त पाठ्य सामग्री उपलब्ध नहीं होगी. यदि कोई छात्र अंग्रेजी को छोड़ किसी अन्य भाषा में इंजीनियरिंग का विकल्प चुन रहा है, तो उसे यह भरोसा होना चाहिए कि पाठ्य सामग्री मिल जाएगी. हमें इस बारे में छात्रों के बीच विश्वास बढ़ाना होगा.’
उन्होंने आगे कहा कि एआईसीटीई ने सभी भाषाओं में किताबें तैयार की हैं और अब सभी तकनीकी कॉलेजों में प्रथम वर्ष के छात्रों को इन्हें मुफ्त में उपलब्ध कराया जाएगा. राजीव कुमार ने कहा, ‘यह एक नई योजना है और शुरुआत में थोड़ी दिक्कतें तो आएंगी ही, लेकिन हम छात्रों के बीच भरोसा बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं और उम्मीद है कि आने वाले समय में इसमें सफलता मिलेगी.’
एआईसीटीई अध्यक्ष को भी उम्मीद है कि इसमें तेजी आएगी. सहस्रबुद्धे ने दिप्रिंट से कहा, ‘प्रवेश धीरे-धीरे बढ़ेगा.’
बेहतर नतीजों की उम्मीद के साथ आगे कोशिश करेगा कर्नाटक
कर्नाटक में किसी छात्र ने कन्नड़ भाषा में इंजीनियरिंग का विकल्प नहीं चुना जबकि हितधारकों में अनिश्चितता और प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस की तरफ से आलोचना किए जाने के बीच अगस्त 2021 में एनईपी पर अमल की घोषणा करने वाला पहला राज्य यही था.
इससे पहले, जुलाई 2021 में उच्च शिक्षा मंत्री और तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सी.एन. अश्वथ नारायण ने घोषणा की थी कि शैक्षणिक सत्र 2022-23 से कन्नड़ में इंजीनियरिंग और अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में प्रवेश शुरू हो जाएगा.
औपचारिक तौर पर इस पर अमल भी पिछले साल हो गया था जब राज्य नियामक ने कन्नड़ में इंजीनियरिंग कोर्स के लिए पांच इंजीनियरिंग कॉलेजों की पहचान की, जिसमें कैम्ब्रिज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, बेंगलुरु; एसजेसी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, चिक्कबल्लापुर; कुर्ग इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, पोन्नमपेट; तोंतादार्या कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, गडग और बीएलडीई कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, विजयपुरा शामिल हैं.
हालांकि, जब प्रवेश की प्रक्रिया शुरू हुई थी तब केवल तीन कॉलेजों—महाराजा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मैसूर; भीमन्ना खांद्रे इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, भालकी; और बेंगलुरु के पास स्थित एसजेसी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी—ने कन्नड़ में इंजीनियरिंग कोर्स के लिए 90 सीटें रखी थीं.
प्रवेश की अंतिम तिथि 31 दिसंबर 2021 तक तीनों कॉलेजों ने शून्य प्रवेश की सूचना दी. अधिकारियों ने कथित तौर पर कहा कि तीन छात्रों ने कन्नड़ भाषा में इंजीनियरिंग कोर्ट का विकल्प चुना था, लेकिन किसी ने भी कॉलेजों को सूचित नहीं किया.
दिप्रिंट से बातचीत में मंत्री अश्वथ नारायण ने कहा कि सरकार को बेहतर प्रतिक्रिया की उम्मीद थी.
उन्होंने कहा, ‘हमारा अनुमान था कि छात्र कन्नड़ में इंजीनियरिंग कोर्स में प्रवेश के लिए बहुत उत्सुक होंगे. सोचा था कि इससे छात्रों को एक ऐसे माहौल में पढ़ाई का अवसर मिलेगा जो उनकी अपनी भाषा कन्नड़ के अनुरूप होगा. जब हम मौका देंगे तभी प्रतिक्रिया का पता चलेगा और हमने ऐसा ही किया.
यह पूछे जाने पर कि क्या इसमें बहुत ज्यादा उत्साह न दिखने की वजह एनईपी पर जल्दबाजी में अमल किया जाना हो सकता है, मंत्री ने कहा कि और अधिक व्यावहारिक विकल्प अपनाने के उपाय किए जाएंगे.
उन्होंने कहा, ‘हम देखेंगे कि इन पाठ्यक्रम को और अधिक व्यावहारिक, स्वीकार्य, स्थायी कैसे बनाया जा सकता है. मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के साथ बातचीत के बाद हम छात्रों को इसे अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने का तरीके खोजेंगे.’ साथ ही जोड़ा कि संसाधनों की बात की जाए तो कन्नड़ में पाठ्यसामग्री और इस भाषा में पढ़ाने के लिए फैकल्टी तैयार है.
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