(शुभ्राजीत मुखर्जी, शिव नादर विश्वविद्यालय)
ग्रेटर नोएडा, दो दिसंबर (360इंफो)कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) प्राद्योगिकी का जैसे-जैसे विकास हो रहा है, इसकी क्षमताओं और सीमाओं का आकलन अब इस क्रांति के अग्रणी लोगों द्वारा किया जा रहा है। उदाहरण के लिए ओपनएआई के सीईओ सैम ऑल्टमैन भारी-भरकम बिजली खपत का आकलन कर रहे हैं।
ऐसा इसलिए है क्योंकि एआई को शक्ति प्रदान करने वाले डेटा केंद्र भारी मात्रा में बिजली की खपत करते हैं। अमेरिकी मीडिया ने हाल ही में बताया कि चैटजीपीटी का संचालन करने वाले ओपनएआई का लक्ष्य 2033 तक 250 गीगावाट ऊर्जा उत्पादन क्षमता का निर्माण करना है।
इसे इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो, विश्व के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश भारत की कुल स्थापित क्षमता ही जून 2025 में 476 गीगावाट थी।
बुनियादी भौतिक स्तर पर, यह बिजली की खपत इसलिए होती है, क्योंकि मेमोरी और प्रोसेसर के बीच डेटा ले जाने में ही बहुत अधिक ऊर्जा खर्च हो जाती है। अगर हमारे उपकरण एक ही जगह पर डेटा की गणना और भंडारण कर सकें, तो इससे बिजली की खपत में भारी कमी आएगी।
‘न्यूरोमॉर्फिक’ हार्डवेयर यही करने का वादा करता है। ‘न्यूरोमॉर्फिक’ शब्द मस्तिष्क जैसी प्रणालियों और उपकरणों को संदर्भित करता है।
मानव मस्तिष्क दक्षता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। आप अपने फोन पर नजर डालते हैं, कोई जानी-पहचानी धुन सुनते हैं, या रसोई से खाने की खुशबू आती है, और आपका मस्तिष्क तुरंत समझ जाता है कि क्या हो रहा है। यह सिर्फ महसूस ही नहीं करता; यह पहचानता है, निर्णय लेता है, और याद रखता है।
यह जादू इसलिए होता है क्योंकि अरबों न्यूरॉन आपस में जुड़े होते हैं और एक साथ क्रिया करते हैं, तथा उनके बीच के सूक्ष्म ‘जंक्शन’, जिन्हें सिनेप्स कहा जाता है, प्रत्येक अनुभव के साथ अपनी शक्ति बदलते हैं।
संवेदन, प्रसंस्करण और स्मृति का यह घनिष्ठ अंतर्संबंध हमें मात्र एक एलईडी बल्ब में इस्तेमाल बिजली के बराबर ऊर्जा का उपयोग करके चेहरों को पहचानने या कोई धुन गुनगुनाने में सक्षम बनाता है।
इसके विपरीत, पारंपरिक कंप्यूटर में एक साथ कई काम करने वाले उपकरण होते हैं। सेंसर डेटा इकट्ठा करते हैं, प्रोसेसर गणना करते हैं, और मेमोरी चिप्स परिणामों को संग्रहीत करते हैं। डेटा के प्रत्येक बिट को आगे-पीछे यात्रा करनी पड़ती है, जिससे समय और ऊर्जा की बर्बादी होती है। यह तथाकथित ‘वॉन न्यूमैन’ बाधा ही है जिसके कारण हमारी सबसे तेज चिप्स भी अत्याधिक ऊर्जा की जरूरत वाली कृत्रिम बुद्धिमत्ता के साथ संघर्ष करती हैं।
‘न्यूरोमॉर्फिक’ उपकरण इस मॉडल को पूरी तरह बदल देते हैं। यहां, स्मृति और गणना एक साथ होती है, ठीक वैसे ही जैसे मस्तिष्क करता है।
एक ऐसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरण की कल्पना कीजिए जो न केवल डेटा संग्रहीत कर सके या कोड का पालन कर सके, बल्कि दुनिया को समझ सके, उससे सीख सके और जो काम की चीज हो उसे याद रख सके। यह विचार, जो कभी विज्ञान कथा था, न्यूरोमॉर्फिक इलेक्ट्रॉनिक्स में एक वास्तविकता बन रहा है, जहां उपकरण छोटे दिमाग की तरह व्यवहार करने लगते हैं।
ऐसे उपकरण केवल ऊर्जा संकट का ही समाधान नहीं करेंगे इससे परे जाएंगे। ये कंप्यूटिंग शक्ति में वृद्धि के स्थिर स्तर को भी दूर करेंगे, जो मूर के नियम के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में लगातार बढ़ रहा है, एक अनुमान के अनुसार, एक एकीकृत सर्किट पर ट्रांजिस्टरों की संख्या लगभग हर दो साल में दोगुनी हो जाती है।
दशकों तक लगातार लघुकरण के बाद, मूर का नियम धीमा पड़ रहा है। ट्रांजिस्टर अणु सीमाओं के करीब पहुंच रहे हैं, और उन्हें और छोटा करना अब संभव प्रतीत नहीं हो रहा है।
‘न्यूरोमॉर्फिक’ उपकरण एक नए ‘मोर देन मूर’ युग की शुरुआत का भरोसा देता है। कल्पना कीजिए कि ऐसे फ़ोन या सेंसर स्थानीय स्तर पर सीखें, बिना दूरस्थ क्लाउड सर्वर पर निर्भर हुए। एआई के लिए, इसका मतलब है तेज प्रतिक्रियाएं, कम ऊर्जा बिल और बेहतर गोपनीयता, जो सब कुछ जुड़े होने के इस युग में बेहद जरूरी हैं।
अति उच्च गुणवत्ता वाली सामग्रियों से बने उपकरण प्राप्त संकेतों से सीख सकते हैं और हर स्पंदन के साथ अपनी आंतरिक अवस्थाओं को समायोजित कर सकते हैं। समय के साथ, वे बिना सॉफ्टवेयर के उपकरण प्रशिक्षण तैयार करके पैटर्न को ‘याद’ रख सकते हैं।
अणु जैसे पतले पदार्थों का जादू
असली राज इन सामग्रियों में ही छिपा है। वैज्ञानिक इन मस्तिष्क जैसे उपकरणों को द्वि-आयामी (2डी) क्रिस्टल का उपयोग करके बना रहे हैं, जो कुछ और नहीं बल्कि ग्रेफीन के रूप में कार्बन की एक परमाणु परत जितनी पतली परमाणुओं की चादरें हैं।
ग्रेफीन, मोलिब्डेनम डाइसल्फाइड (एमओएस2) और हेक्सागोनल बोरॉन नाइट्राइड (एचबीएन) जैसी सामग्रियों को ईंटों की तरह जोड़कर नयी कार्य संरचना तैयार की जा सकती है, जो अकेले सिलिकॉन से संभव नहीं हो सकता। क्योंकि वे परमाण्विक रूप से पतले होते हैं, यहां तक कि एक छोटी सी संक्षिप्त विद्युत तरंग भी इलेक्ट्रॉन के प्रवाह को नाटकीय रूप से बदल सकती है, जिससे एक एकल ट्रांजिस्टर एक ट्यूनेबल सिनेप्स की तरह कार्य कर सकता है।
ट्यूनेबल सिनेप्स का उपयोग न्यूरोमॉर्फिक कंप्यूटिंग में किया जाता है, जिसके विद्युत गुणों को समायोजित किया जा सकता है, बहुत कुछ मस्तिष्क में न्यूरॉन्स के बीच संपर्क की तरह।
इस क्रांति के लिए ऐसे अनुसंधान की आवश्यकता है जो पदार्थ विज्ञान, क्वांटम भौतिकी और तंत्रिका विज्ञान से प्रेरित इलेक्ट्रॉनिक्स के बीच सेतु का काम करे।
पिछले कुछ वर्षों में, इस अनुसंधानपत्र लेखक सहित, इजराइल और सिंगापुर की प्रयोगशालाओं में काम कर रहे अनुसंधानकर्ताओं ने दिखाया है कि कैसे परमाणु सरीखे अति पतले पदार्थों को ऐसे उपकरणों में बदला जा सकता है जो समझ सकते हैं, सीख सकते हैं और यहां तक कि तार्किक निर्णय भी ले सकते हैं।
अदृश्य को समझाने की कला
एक लाइब्रेरियन (पुस्तकालय की देखरेख करने वाला) के बारे में सोचिए। एक पारंपरिक कंप्यूटर एक लाइब्रेरियन की तरह होता है, जिसे हर बार जब आप कोई सवाल पूछते हैं, तो दूर किसी अभिलेखागार में भागना पड़ता है। एक न्यूरोमॉर्फिक चिप वह लाइब्रेरियन होता है जो सबसे ज़्यादा इस्तेमाल की जाने वाली किताबों को नजदीक ही रखता है।
हम एक बदलाव की पहली झलक देख रहे हैं, जहां बुद्धिमत्ता को सॉफ्टवेयर में कोड करने के बजाय सीधे पदार्थ में ढाला जा रहा है। जब यह बदलाव परिपक्व होगा, तो अगली पीढ़ी के चिप्स सिर्फ गणना ही नहीं करेंगे। वे भी इंसानों की तरह ही अनुभूति करेंगे, सीखेंगे और याद रखेंगे।
(360 इंफो)
धीरज पवनेश
पवनेश
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