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Friday, 15 November, 2024
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अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दिल्ली हाई कोर्ट में 27 फरवरी को होगा फैसला

केंद्र सरकार ने हलफनामे में कहा कि 'सशस्त्र बलों' में भर्ती एक पूरी तरह से अलग एवं महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा के रखरखाव से संबंधित है.

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नई दिल्ली: अग्निवीरों की भर्ती के लिए शुरू की गई अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच पर दिल्ली हाई कोर्ट 27 फरवरी को फैसला करेगा.

मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद्र शर्मा की अध्यक्षता वाली एक खंडपीठ, जिसमें जस्टिस सुब्रमणियम प्रसाद भी शामिल हैं, सोमवार को मामले पर फैसला सुनाने वाली है. पीठ ने 15 दिसंबर, 2022 को विभिन्न याचिकाकर्ताओं और केंद्र सरकार की ओर से दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था.

अदालत ने आदेश को सुरक्षित रखते हुए दोनों पक्षों को अपनी दलीलें लिखित रूप में देने को कहा था.

राष्ट्रीय सुरक्षा

सुनवाई के दौरान, एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने केंद्र सरकार की तरफ से अदालत को कहा कि ’10 लाख से अधिक उम्मीदवारों को आयु में छूट का लाभ दिया गया है. अग्निपथ योजना रक्षा कर्मियों की भर्ती प्रक्रिया में एक प्रमुख प्रतिमान बदलाव है. हम हलफनामे में सब कुछ नहीं डाल सकते लेकिन हम कह सकते हैं कि हमने इस मामले में नेक काम किया.’

केंद्र सरकार ने हलफनामे में कहा कि ‘सशस्त्र बलों’ में भर्ती एक पूरी तरह से अलग एवं महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जो सीधे तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा के रखरखाव से संबंधित है.

इसमें आगे कहा गया कि ‘नई अग्नि पथ योजना के माध्यम से भर्ती करने का केंद्र सरकार का निर्णय, राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से सरकार द्वारा लिया गया एक नीतिगत निर्णय है.’

योजना को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं में से एक अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि सरकार द्वारा किया गया निर्णय मनमाना और अनुचित है. निर्णय के पीछे कोई वास्तविक कारण नहीं है. उन्होंने यह भी तर्क दिया कि चुने गए उम्मीदवारों को ढाई साल तक प्रतीक्षा करने के लिए मजबूर किया गया था.

एएसजी भाटी ने विवाद का जवाब दिया और कहा कि चयन नियुक्ति का अधिकार नहीं देता है. एएसजी ने दलील दी कि कोविड की वजह से प्रक्रिया में देरी हुई.

मुख्य न्यायाधीश ने एएसजी से पूछा कि ‘जिन लोगों ने परीक्षा पास की थी वे इंतजार कर रहे है. आपने प्रक्रिया पूरी क्यों नहीं की? आप इसका क्या जवाब देंगे?’

एएसजी ने कहा कि जून 2021 में उच्चतम स्तर पर फैसला लिया गया था. यह स्पष्ट था कि अग्निपथ योजना एक आदर्श बदलाव है. जून 2021 के बाद हम भर्ती के तरीके में एक बड़ा बदलाव लाना चाहते हैं.

केंद्र सरकार की ओर से स्पष्ट किया गया कि अग्निवीर एक अलग कैडर है और इसका रैंक सिपाही से नीचे है.

पेंशन का कोई प्रावधान नहीं

बहस के दौरान अधिवक्ता अंकुर चिब्बर, जो कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए, ने तर्क दिया कि वेतन में असमानता नहीं हो सकती. बल में प्रवेश स्तर सिपाही है. एक अग्निवीर को एक सिपाही से कम वेतन मिलता है. समान काम के लिए समान वेतन मिलना चाहिए.

उन्होंने एक और मुद्दा उठाया कि एक अग्निवीर को 4 साल की सेवा के बाद चुने जाने पर नए सिरे से शामिल होना होगा. उनके पिछले 4 साल के अनुभव को नहीं गिना जाएगा.

हर्ष जय सिंह की ओर से पेश अधिवक्ता कुमुद लता ने तर्क दिया कि सेवाकाल 4 वर्ष है. अग्निवीर ग्रेच्युटी के हकदार नहीं होंगे.

उन्होंने यह भी मुद्दा उठाया कि अग्निवीरों के लिए पेंशन का कोई प्रावधान नहीं है. जिसके जवाब में जस्टिस प्रसाद ने कहा, यह एक नई योजना है जो एक युवा को ट्रेनिंग प्राप्त करने का विकल्प देती है. उसके बाद वह कोई भी काम कर सकता है. इसके अलावा, यह अनिवार्य नहीं है.

इससे पहले खंडपीठ ने अग्निपथ योजना पर रोक लगाने से इनकार करते हुए कहा था कि यदि याचिकाकर्ताओं को मामले में सफलता मिलती है तो उन्हें मिलेगी. हम कोई स्थगन या अंतरिम आदेश पारित नहीं करेंगे और मामले की अंतिम सुनवाई करेंगे.

सुप्रीम कोर्ट ने 19 जुलाई, 2022 को अग्निपथ योजना से जुड़ी विभिन्न याचिकाओं को दिल्ली हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया था कि अन्य विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली इसी तरह की अन्य याचिकाओं के संबंध में, संबंधित उच्च न्यायालयों को या तो याचिकाकर्ताओं को यह विकल्प देना चाहिए कि या तो वे अपनी याचिकाएं दिल्ली हाई कोर्ट में स्थानांतरित कर लें या अपनी याचिकाओं को उनके पास लंबित रखें.

शीर्ष अदालत ने भी दिल्ली हाई कोर्ट से इस मामले को उठाने और इसे शीघ्रता से निपटाने का अनुरोध किया था. दिल्ली, केरल, पंजाब और हरियाणा, पटना और उत्तराखंड के उच्च न्यायालय इन योजनाओं से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रहे हैं.


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