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Tuesday, 7 May, 2024
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मोनू मानेसर की जमानत याचिका के खिलाफ अभियोजन पक्ष ने कहा- प्रोटेक्शन मनी के लिए नासिर-जुनैद पर डाला दबाव

मानेसर की जमानत से इनकार करते हुए, राजस्थान अदालत ने कहा कि पुलिस जांच, गवाहों के बयान, कॉल विवरण, डीएनए रिपोर्ट के विश्लेषण से अपराध में मानेसर की संलिप्तता का संकेत मिलता है.

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गुरुग्राम: नासिर और जुनैद की कथित हत्याओं के सिलसिले में राजस्थान की जेल में बंद गोरक्षक मोनू मानेसर उन दोनों पर “प्रोटेक्शन मनी” के लिए दबाव बना रहा था. अभियोजन पक्ष ने उसकी जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा, “उनके अपहरण और हत्या की पूरी साजिश उसके निर्देश पर बनाई गई और उसे अंजाम दिया गया.”

मानेसर की जमानत याचिका 30 सितंबर को राजस्थान के कामां के अतिरिक्त जिला और सत्र न्यायाधीश विजय सिंह महावर ने खारिज कर दी थी. दिप्रिंट के पास इस आदेश की एक काॅपी भी है.

गुरुग्राम जिले के मानेसर निवासी उर्फ मोहित यादव (29) ने 19 सितंबर को निचली अदालत द्वारा इसी तरह की याचिका खारिज किए जाने के बाद न्यायाधीश के समक्ष आवेदन दायर किया था.

सोशल मीडिया पर उसके कथित “भड़काऊ भाषणों” को लेकर उसे 12 सितंबर को नूंह पुलिस की विशेष जांच टीम (एसआईटी) द्वारा गिरफ्तार किया गया था, जो 31 जुलाई की सांप्रदायिक झड़प की जांच भी कर रही है. अगले दिन राजस्थान पुलिस ने नासिर-जुनैद हत्याकांड के सिलसिले में मानेसर को रिमांड पर ले लिया था.

भरतपुर जिले के घाटमीका गांव के निवासी नासिर और जुनैद 14 फरवरी की रात को अपने घर से निकले थे और 16 फरवरी को एक गाड़ी में उनके जले हुए शव मिले थे. गोतस्करी के संदेह में गोरक्षकों ने कथित तौर पर दोनों को पीट-पीटकर मार डाला था.

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अदालत के आदेश के अनुसार 16 फरवरी को गोपालगंज पुलिस स्टेशन में आईपीसी की धारा 147 (दंगा), 148 (घातक हथियारों के साथ दंगा), 149 (गैरकानूनी सभा), 335 (चोट पहुंचाना), धारा 365 (किसी व्यक्ति को बंधक बनाने के लिए अपहरण करना) के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी.

367 (व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाने के लिए अपहरण करना), 368 (अपहृत व्यक्ति को छिपाना), 302 (हत्या), 201 (सबूत मिटाना), और 120-बी (आपराधिक साजिश) जैसी कई अन्य धाराएं भी लगाई गई थी.

मानेसर को जमानत देने से इनकार करने वाले अदालत के आदेश के अनुसार, जुनैद के चचेरे भाई इस्माइल (केवल पहले नामों का उल्लेख किया गया है) की शिकायत पर दर्ज की गई एफआईआर में कहा गया है कि वह 15 फरवरी की सुबह एक चाय की दुकान पर थे, जब किसी ने उन्हें बताया कि 8-10 लोगों ने गोपालगंज के पास पीरुका वन क्षेत्र से गुजर रही एक बोलेरो गाड़ी को रोका और उसमें सवार दो लोगों की बुरी तरह पीटाई की है.

आदेश के मुताबिक, इस्माइल ने कहा कि उन्होंने नासिर और जुनैद दोनों को फोन करने की कोशिश की लेकिन उनके फोन बंद थे. “मैंने अपने गांव घाटमिका में अपने परिवार को फोन किया जो फौरन दूसरे गाड़ी से फिरोजपुर झिरका पहुंचे. हम पीरुका वन क्षेत्र में गए जहां हमें एक गाड़ी के टूटे हुए कांच के टुकड़े मिले.”

आसपास मौजूद कुछ लोगों ने बताया कि कैसे बोलेरो कार में सवार दो लोगों पर एक समूह द्वारा हमला किया गया और उन्हें उनके वाहन के साथ ही ले जाया गया. इस्माइल ने अपनी शिकायत में कुछ नामों का जिक्र करते हुए कहा, “घटना को देखने वाले लोगों ने कुछ हमलावरों के नामों का भी खुलासा किया है.”

अपनी जमानत याचिका में मानेसर ने कहा कि उसे मामले में झूठा फंसाया गया है. यह दावा करते हुए कि घटना के दिन वह गुरुग्राम में था, उसने कहा कि उसका नाम राजनीतिक दबाव में लिया गया था और एफआईआर में उसके लिए कुछ आपत्तिजनक नहीं कहा गया था.

जमानत याचिका का विरोध करते हुए, अतिरिक्त लोक अभियोजक (एपीपी) शरीफ खान ने तर्क दिया कि अन्य आरोपियों के माध्यम से, मानेसर नासिर और जुनैद पर नियमित रूप से प्रोटेक्शन मनी देने के लिए दबाव डाल रहा था और जुनैद ने अपनी हत्या से कुछ दिन पहले अपनी पत्नी के साथ यह बात साझा की थी.

खान ने कहा कि 14 फरवरी को श्रीकांत और रिंकू सैनी ने अन्य आरोपियों के साथ मिलकर नासिर और जुनैद का अपहरण कर हत्या कर दी थी.

उन्होंने कहा कि दोनों लोगों ने मोनू मानेसर के निर्देश पर अन्य लोगों पर भी इसी तरह हमला किया था, उन्होंने कहा कि मोनू मानेसर के खिलाफ तीन अन्य मामले लंबित थे.


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कोर्ट ने क्या कहा

अदालत ने कहा कि यह सामने आया कि मानेसर ने सैनी से उस बोलेरो गाड़ी के बारे में व्हाट्सएप पर बातचीत की थी जिसमें नासिर और जुनैद मृत पाए गए थे.

अदालत ने कहा कि मोबाइल फोन के विश्लेषण से भी पुष्टि हुई है कि 16 फरवरी को मानेसर ने सैनी को अपना फोन बंद रखने के लिए कहा था.

इसमें आगे कहा गया कि पुलिस जांच, सीआरपीसी की धारा 161 के तहत दर्ज किए गए गवाहों के बयान, कॉल डिटेल, जब्ती, मोबाइल फोन के विश्लेषण और डीएनए रिपोर्ट के आधार पर प्रथम दृष्टया अपराध में मानेसर की संलिप्तता का संकेत मिला है.

अदालत ने कहा कि चूंकि मानेसर पर अपराध का आरोप है, इसलिए अगर उसे जमानत का लाभ दिया गया तो वह गवाहों को डरा सकता है.

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि किसी आरोपी को जमानत का लाभ देने के लिए उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि और अन्य परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना चाहिए.

(संपादन: अलमिना खातून)
(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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