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Saturday, 21 December, 2024
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किसानों और जवानों के बाद अब विज्ञान के छात्रों ने खोला सरकार के खिलाफ मोर्चा

देश के विभिन्न उच्च स्तरीय विज्ञान संस्थानों के लगभग एक लाख से ज्यादा शोध छात्र अपनी फेलोशिप बढ़ाने के लिए देशभर में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं.

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नई दिल्ली: ‘जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान’ का नारा देने वाले देश में किसानों और जवानों के प्रदर्शन के बाद अब विज्ञान के छात्रों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला है. उनकी मांग है कि रिसर्च फेलोशिप बढ़ाई जाए. देश के विभिन्न उच्च स्तरीय विज्ञान संस्थानों के लगभग एक लाख से भी ज्यादा शोध छात्र अपनी फेलोशिप की राशि को बढ़ाने के लिए देशभर में धरना प्रदर्शन कर रहे हैं.

इन संस्थानों में आईआईएससी (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ सांइस) बैंगलोर, आईआईटी (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेकनोलॉजी) दिल्ली, आईएसएम (इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ माइनिंग) धनबाद के छात्र प्रमुख रूप से शामिल हैं. अपनी मांगों को लेकर छात्रों ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा था.

पत्र लिखने का यह सिलसिला जुलाई से चला आ रहा है. सरकार जहां एक तरफ कहती है कि विज्ञान के रिसर्च संबंधी मामलों में कोई कोताही नहीं बरती जाएगी, वहीं वह अब तक केवल मौखिक आश्वासन देने के अलावा जमीनीं तौर पर कुछ कर नहीं पाई है.

क्या है मांग

छात्रों को 2014 से पहले 16 हजार रुपये प्रति महीने फेलोशिप मिलती थी. इसको लेकर छात्रों ने कई धरना प्रदर्शन किया तो फेलोशिप बढ़ाकर 25 हजार रुपये प्रति महीना करने के साथ ही हर चार साल में फेलोशिप बढ़ाए जाने का वादा भी किया गया. लेकिन मार्च 2018 में चार साल पूरे होने के बाद भी अभी तक सरकार की तरफ से फेलोशिप बढ़ाने को लेकर कोई पहल नहीं की गई है.

सरकार जहां इसे 56 प्रतिशत बढ़ाने का दम भर रही है, वहीं छात्रों का कहना है कि मंहगाई के इस दौर में इसे 100 फीसदी बढ़ाया जाए. यानी जेआरएफ (जूनियर रिसर्च फेलोशिप) को 25 हजार रुपये से बढ़ा करके 50 हजार रुपये किया जाए और एसआरएफ (सीनियर रिसर्च फेलोशिप) को 28 हजार से बढ़ाकर 56 हजार कर दिया जाए.

अपनी मांग को लेकर बीते 21 दिसंबर को आईएससी बैंगलोर और तमाम अन्य संस्थानों के छात्रों ने साइलेंट प्रोटेस्ट किए. ऐसे में हमने देश के नंबर एक संस्थान आईएससी बैंगलोर के कुछ छात्रों से समस्याएं जाननी चाही.

आईएससी बंगलौर में पीएचडी कर रहे सचिन बताते हैं, ‘हमारी मिडिल क्लास फैमिली है और यहां आने वाले ज्यादातर बच्चे भी मध्यम वर्गीय परिवार से आते हैं. पीएचडी तक आते-आते हमारे ऊपर जिम्मेदारियां भी बढ़ जाती हैं. मंहगाई के बढ़ते दौर में हमारी फीस के साथ-साथ हमारे खर्चे भी बढ़ते चले जा रहे हैं. 25 हजार रुपये में ही हमें अपनी जरूरत के खर्च के अलावा रिसर्च पर आने वाला खर्च भी उठाना पड़ता है.’

बढ़ोतरी 100 परसेंट की ही क्यों, इस सवाल पर शोध छात्र मनोज बताते हैं, ‘आज से 6 साल पहले हमारी ट्यूशन फीस 5 हजार रुपये थी. वह बढ़कर अब 20 हजार हो गयी है. और इस फीस को सरकार हर साल 15 परसेंट बढ़ाती है. मेस का खर्च हर महीने अलग से बढ़ता है. ऐसे में 25 हजार रुपये में गुजारा करना मुश्किल है. पिछले चार सालों में बढ़ी मंहगाई और हमारे रहन-सहन के खर्चों के अलावा आप सांतवें वेतन आयोग की सिफारिश को भी अगर शामिल कर लें तो 100 फीसदी वृद्धि की हमारी मांग जायज है. इसके अलावा कंटेनजेंसी फंड के पैसे भी हमें बहुत देरी से मिलते हैं.’

आपको बताते दें कंटेंजसी फंड में छात्रों को संबधित एजेंसियों द्वारा सालान पैसा मिलता है जिसमें उनके विदेशों में होने वाले एजुकेशनल टूर पर आने वाले खर्चे शामिल होते हैं.

इसपर आईएससी बैंगलोर के शोध छात्र निखिल के मुताबिक सीएसआईआर की तरफ से उन्हें 20 हजार रुपये सलाना मिलने थे. लेकिन दो साल बीत जाने के बाद भी उनके खाते में इसका एक रुपया भी नहीं आया. इसी बीच वह एक साल में दो बार शोध के लिए विदेशी टूर कर आए जिसमें उनका पंद्रह हजार के आसपास पैसा खर्च हो गया.

पीएचडी छात्रों को पांच वर्षों के लिए ही फेलोशिप मिलती है. उसके बाद भी अगर पीएचडी जारी रही तो यह संबधित संस्था पर निर्भर करता है कि वह कितना फेलोशिप देती हैं.

इस पर शोध कर रहे छात्र विक्की कहते हैं, ‘हम चाहते हैं कि संस्थान तय समय पर पीएचडी पूरा नहीं होने की स्थिति में हमें एक तय सीमा में खर्च देता रहे. इसके अलावा सरकार संस्थानों को यह कड़ा निर्देश दे कि छात्रों की पीएचडी पांच साल में पूरी हो जाए और जो छात्र उसके बाद भी जारी रखते हैं उन्हें पीएचडी का अनुभव सर्टिफेकेट देते हुए पीडीएफ (पोस्ट डॉक्टोरल फेलोशिप) में इनरोल कर दिया जाए.’

क्या है सरकार का रुख

देशभर में हो रहे छात्रों के प्रदर्शन के बीच बुधवार को नई दिल्ली में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने इस मुद्दे को लेकर प्रेस कांफ्रेंस किया था. उन्होंने अपने संबोधन में यूजीसी, एआईसीटीई और एमआचआरडी द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न छात्रवृत्तियों के बारे में बताया.

प्रकाश जावेड़कर ने छात्रवृत्ति में होने वाली देरी की समस्या को माना और इस समस्या के समाधान हेतु समूचे तंत्र के पुनर्निमाण की बात की. उन्होंने आगे कहा कि इस प्रक्रिया के तहत हर छात्र को महीने के आखिरी में छात्रवृत्ति पहुंच जाएगी. यह प्रक्रिया एक नवंबर से लागू है और पुराना बकाया क्लियर करने के लिए मंत्रालय ने 250 करोड़ अतिरिक्त राशि का आवंटन किया है.

लेकिन प्रकाश जावेड़कर ने शोध छात्रों द्वारा छात्रवृत्ति बढ़ाने की मांग को लेकर चुप्पी साधे रखी.

क्या छात्र प्रकाश जावेड़कर के बातों से खुश हैं?

प्रकाश जावेड़कर के फेलोशिप बढ़ाने से जुड़े मुद्दे पर खुल के कुछ नहीं बोलने से छात्रों में असंतोष है और अपनी मांगों को लेकर वे एक बार फिर से प्रदर्शन करने का मन बना रहे हैं.

शोध छात्र मनीष कहते हैं, हम लोगों को मानव संसाधन मंत्री से काफी उम्मीदें थीं. लेकिन वे उन उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे. ऐसे में आने वाले दिनों में हम लोग मीटिंग कर फेलोशिप की लड़ाई को आगे बढ़ाने पर विचार करेंगे.’

दिक्कते कहां आ रही हैं

फेलोशिप बढ़ाने के मुद्दे पर कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि देश में लाखों साइंस छात्र पीएचडी में दाखिला लेते हैं और उनमें से कई छात्र किसी कारणवश इसे पूरा नहीं कर पातें हैं. कई ऐसे भी होते हैं जिनकी एक संस्थान में पीएचडी चल रही होती है और दूसरे कॉलेज में वो एडहॉक पर पढ़ा रहे होते हैं. ऐसे में सरकार के पास बजट को खर्च करने के तरीके में भी दिक्कतें आती हैं.

अब ऐसे में ये देखना होगा कि मानव संसाधन मंत्री की तरफ से मिले आश्वासन से असंतुष्ट छात्र लैब से बाहर कितने दिन बिताते हैं.

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