देहरादून, आठ अगस्त (भाषा) रोंगटे खड़े कर देने वाली धराली आपदा के बाद चिंतित विशेषज्ञों ने नदियों के किनारों की पूरभूमि या बाढ़ के मैदान पर स्थित मौजूदा बसावटों के अध्ययन की जरूरत पर जोर दिया है।
विशेषज्ञों का मानना है कि धराली आपदा को एक अलग मामले के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए ।
देहरादून स्थित वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार ने कहा, ‘‘अब समय आ गया है कि उन सभी क्षेत्रों का अध्ययन किया जाए जहां नदियों और धाराओं की पूरभूमि पर बड़ी-बड़ी बसावटें हो गयी हैं।’’
पूरभूमि नदी के किनारे स्थित वे समतल क्षेत्र होते हैं जो समय-समय पर बाढ़ से ढंक जाते हैं। ये मैदान आमतौर पर नदी द्वारा जमा की गई मिट्टी, गाद, रेत और बजरी से बने होते हैं। पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होने के कारण यह भूमि उर्वर होती है जिससे ये कृषि के लिए भी बहुत उपयोगी होती है। इसी कारण पूरभूमियों में गांव और बस्तियां भी बस जाती हैं, लेकिन उनपर अक्सर बाढ़ के प्रकोप का संकट मंडराता रहता है।
डॉ. कुमार सहित अनेक वैज्ञानिकों का कहना है कि धराली से टकराने वाली मलबे से भरी जलधारा अपने मूल मार्ग पर ही थी जिसने अपने रास्ते में आए सभी होटलों, होमस्टे, रेस्तरां और मकानों को जमींदोज कर दिया ।
पिछले कुछ सालों में पर्यटन में आए उछाल को देखते हुए धराली में भी कुकुरमुत्तों की तरह दर्जनों होटल, रेस्तरां और होमस्टे उग आए हैं और धराली आपदा में तबाह हुई ज्यादातर इमारतें खीरगाड़ बरसाती नदी के किनारे पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करके बनायी गयी थीं।
पांच अगस्त को आयी इस आपदा ने गंगोत्री धाम के रास्ते में स्थित एक खूबसूरत पड़ाव को पलक झपकते ही मलबे के ऊंचे ढेर में तब्दील कर दिया।
लोगों का कहना है कि सरकार भी पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्रों में मानदंडों की अनदेखी पर आंखें मूंद लेती है जिनमें भागीरथी नदी के किनारे नए निर्माण पर रोक भी शामिल है।
राज्य सरकार के पर्यटन अधिकारियों ने भी माना कि पहाड़ी राज्य में नदियों के किनारे पूरभमि जैसे संवेदनशील स्थानों पर सैकड़ो होटल, रिजॉर्ट और होमस्टे बनाने के मामलों में आंखें मूंद ली गयीं ।
टिहरी से भाजपा विधायक किशोर उपाध्याय ने कहा, ‘‘धराली ही क्यों? जैसे ही हम ऋषिकेश से गढ़वाल की पहाड़ियों की तरफ बढ़ते हैं, नदियों के किनारे सैकड़ों होटल और रिजॉर्ट बने दिखाई देते हैं।’’
वर्ष 2023 में देहरादून के मालदेवता इलाके में सोंग नदी में आई भारी बाढ़ के बीच एक प्रशिक्षण अकादमी की बड़ी इमारत ताश के पत्तों की तरह ढह गई थी। विशेषज्ञों का कहना है कि इस इमारत का निर्माण पर्यावरणीय मानदंडों का घोर उल्लंघन करके नदी किनारे किया गया था।
पर्यावरणविद अनूप नौटियाल ने कहा कि निर्माण में पर्यावरणीय मानदंडों के उल्लंघन का सबसे ज्वलंत उदाहरण देहरादून में मौजूद है जहां बिल्कुल रिस्पना नदी के किनारे उत्तराखंड विधानसभा भवन बनाया गया है।
देहरादून में पिछले कुछ वर्षों में रिस्पना और बिंदाल नदियों के तट पर अतिक्रमण करके भगत सिंह कॉलोनी सहित दर्जनों बस्तियां बसा दी गई हैं। लोगों का कहना है कि ज्यादातर मामलों में सरकारी अधिकारियों की भूमाफिया से मिलीभगत होती है और पूरभूमि पर इमारतें बना दी जाती हैं।
एक विशेषज्ञ ने कहा, ‘‘ये लोग इतने ताकतवर हैं कि अगर आप आवाज उठाते हैं तो पता नहीं, आपका क्या हश्र होगा।’’
उत्तराखंड उच्च न्यायालय में देहरादून, ऋषिकेश और अन्य क्षेत्रों में अवैध निर्माण से पर्यावरण को हो रहे नुकसान को लेकर अनेक याचिकाएं दायर की गयी हैं।
उच्च न्यायालय भी राज्य सरकार से रिस्पना और बिंदाल नदियों के किनारे की भूमि पर से अतिक्रमण को हटाने के निर्देश दे चुका है, लेकिन कांग्रेस और कुछ सामाजिक संगठन इस कदम का विरोध कर रहे हैं।
भाजपा के एक नेता ने अपनी पहचान उजागर न किए जाने की शर्त पर कहा, ‘‘हम इन अतिक्रमण को नहीं हटा सकते क्योंकि इस पूरी प्रक्रिया में भ्रष्टाचार शामिल है।’’
देहरादून में राजपुर रोड से कांग्रेस के पूर्व विधायक राजकुमार ने कहा कि वह रिस्पना नदी के किनारे बसी इन बस्तियों को हटाए जाने के विरोध में नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम बस यह चाहते हैं कि उन्हें उजाड़ने से पहले उनका पुनर्वास कर दिया जाए।’’
भाषा दीप्ति
संतोष
संतोष
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